Book Title: Vishsthanak Tap Vidhi
Author(s): Punyavijay
Publisher: Bhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra

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Page 69
________________ ( ३३ ) याणं, तित्राणं तारयाणं, बुद्धणं बोयाणं, मुत्ताणं मोअगाणं ८ सव्वन्नूण, सादरसीणं, सिव-मयल मरुअ-मणंत मक्खयसव्वा वाह-मपुण वित्त- सिद्धिगइ नामधेयं, ठाणं संपत्तणं, नमो जिण णं जिअभयाण ९ जे अ अइआ सिद्धा, जे अ भविस्सँति जागए काले संपइ अ वट्टमाणा, सच्चे तिविण नंदा न १० जय बोधराय ! जयगुरु ! होउ ममं तुह पभावओ भयवं भवनिओ मग्गा गुसारिया इट्ठफलसिद्धि १ लोग विरुद्वन्द्वाओ, गुरुजण पूत्रा परत्थ करणं च, सुहगुरु जोगो तव्वयण-सेवणा आभवमखंड़ा, इच्छामि खमासमणो दिउं जावणिज्जअ निसीहीआओ मत्थण वदामि. इच्छाकारेण संदिसह भगवन्! चैत्यवदन करु? इच्छं. -: चैत्यवंदन. : 7 चोवीश पन्नर पीस्तालिशनो, छत्रीशनो करिये ॥ दश पचवीश सत्ताबीशनो, काउस्सग्ग मन धरीये ॥ पत्र सडसट्टी दश वली, लित्तेर नव पणवीश || बार अडवीश लोगग्न लगो, काउसग्ग धरोगुणीश || बोस सत्तर अकावन, द्वादश ने पंच ॥ अंगोरे काउस्सग्ग जो करे, तो जाये भव संच ॥ अनुक्रमें काउस्सग्ग मन धरो, गुणि लेजो वीश ॥ वीश स्थानक ओम जाणीओ, संक्षेपथी लेश || Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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