Book Title: Vishsthanak Tap Vidhi
Author(s): Punyavijay
Publisher: Bhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra

View full book text
Previous | Next

Page 72
________________ वंदे मुणिसुव्वयं नमिजिणं च वंदामि रितुनेमि, पासं तह वद्धमाणं च. अवं मों अभिथुआ, विहुय-रय-मला-पहोणजर मरणा; चउवीसंपि जिणवरा, तित्थयरा मे पसीयंतु. ५ कित्तयवंदिय-महिया, जे अ लोगस्स उत्तमा सिद्धा; आरुग्ग बोहिलाभ, समाहिवर मुत्तमं दितु. ६ चंदेसु निम्मलयरा आइच्चेसु अहियं पयासयरा, सागरवरगंभीरा, सिद्धा सिद्धि मम दिसंतु.७ ___सालो अरिहंत चेइयाणं करेमि काउस्सग्गं, नंदण-वत्तिया पूअणवत्तिया सक्कारवत्तिया सम्माणवत्तियाए बोहिलाभवत्ति-या निरुवसग्गत्तिया, सद्धाओं मेंहाले धिइले धारणा अणुप्पे हाओ वड्ढमाणी ठामि काउस्सग्गं. अन्नत्थ ऊसासिअणा नीससिअॅणं खासिसेणं छोणं जंभाइअणं उड्डुअणं वाय-निसग्गेणं भमली पित्तमुच्छा मुहुमेहि अंग संचालहि सुहुमेहि खेल संबालेहि सुहमेहि विटिसंचालहि अबमाइहि आगरेहि अभग्गो अविराहिओ हुज्ज मे काउस्सग्गो, नाक अरिहंताणं भगनंताणं नमुक्कारेणं न पारेमि, ताव कायं ठाणेगं मोणणं झाणेणं अप्पाणं वोसिरामि. ( अंक नवकारनो काउस्सग ) पारीने बीजी थोय प्रपल रहे अरिहंत नमोजे, बीजे सिद्ध पवयण पद त्रीजे आचारज येरंडविजे ॥ उपाध्याय ने साधु ग्रहीजे, नाण सण पद विनय वहीजे, अगीयारमें चारित्र लोजे । बंभवयधारीणं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102