Book Title: Vishsthanak Tap Vidhi
Author(s): Punyavijay
Publisher: Bhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra

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Page 70
________________ (६४) भाव धरी मनमां घणो, जो एक पद आराधे || जिन उसम पद पद्मने, नमी निज कारज साधे || किचि नान तित्थं सग्गे पायालि माणुसे लोए; जाई ज़िण बिबाई ताई सच्चाई वदामि १ नत्थूणं, अरिहंताणं भनवंताणं १ आइगरानं, तित्यराणं सयं संबुद्धाण पुरिसुत्तमाणं पुरिससीहाणं, पुरिसवरपुंडरीआणं, पुरिसवर गंध दत्यीण ३ लोगुत्तमण, लोगनाहाणं, लोगहिआणं, लोगपईवाण, लोगवज्जोअगराणं ४ अभयदयानं चक्खुदयाणं, मग्गदयाणं, सरणदयादयाणं, बोहिदयाण, घामदयाण, धम्मनायगाणं, धम्मसारहीण, धम्मवरचाउरंतचक्कट्टी, ६ अप्पड़िहय-वरनागदंसण-धराणं, विअट्टछउमाणं ७ जिणाण जावयाण, तिन्नाण, तारयाण, बुद्धाणं बोहयाण, नुद्याण, मोअगाण ८ सव्वनृणं सव्वदरिसीण, सिव-मयल मरुअ मर्णत - मक्ख मव्वाबाह - मदुरावित्ति सिद्धि गई नामधेयं ठाणं संपत्ताणं, नमो जिणाणं जिअभयाण, ९ जे अ अइआ सिद्धा, जे अ भविस्संति नागए काले, संपइ अबट्टमाणा, सव्वे तिविर्हेण वंदामि । 1 ( पछी उभा थईने ) अरिहंत चेइयाणं करेमि को उस्सग्ग, गंदणवत्तियाओं पूअणषत्तियाओ सक्कारवत्तियाओ सम्माणवत्तियाओं, बोहिलाभवत्तियाओ, निस्वसग्गवत्तियाओ, सद्धाओ मेंहाओ, धिइओ, धारणाओं अणुप्पेहाओ वड्ढमाणीओ ठामि काउस्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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