Book Title: Vishsthanak Tap Vidhi
Author(s): Punyavijay
Publisher: Bhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra

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Page 83
________________ (७७) सत्तरमे नमो चारित्त लोगस्स सित्तरे जो, नाणस्स नो पद गण° अकावन अढारमें रे लोल ॥५॥ हारे ओगणीशमें नमो सुअस्स वीश पीस्तालीश जो, वीशमे नमो तित्थस्स वीश प्रभावशुं रे लोल, हारे में तपनो महिमा चारशे ऊपर वीश जो, पट मासे अंक ओली पूरी कीजियेरे लोल, हारे तप करतां वली गणीजे दोय हदार जो, नवकारवाली वीशे स्थानक भावशं रे लोल, हारे प्रभावना संघ स्वामीवच्छल सार जो, उजमणा विधी कीजे विनय लीजिअरे लोल, ॥७॥ हारे अ तपनो महिमा कहे श्री वीर जिनराय जो, विस्तारे इन संबंध गोयम स्वामीने रे लोल हारे तप करतां वली तीर्थकर पद होय जो, देव गुरु इम कांति स्तवन सोहामणो रे लोल, ॥८॥ (पछी जयवीयराय कहेवा) जयवीयराय ! जगगुरु ! होउ ममं तुम पभावओ भयवं! भवनिव्वेओ मग्गाणुसारिआ इठ्ठफलसिद्धि ॥१॥ लोग विरुद्धचाओ, गुरुजणपूआ परस्थकरणं च सुहगुरु जोगो तन्वयण सेवणा आभवमखंडा. २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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