Book Title: Vishsthanak Tap Vidhi
Author(s): Punyavijay
Publisher: Bhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra

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Page 92
________________ ( ८६ ) इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! पञ्चखाण पार्यु ? तहत्ति, कही मुठी बाली कटासणा ऊपर स्थापी अंक नवकार गणवो. __नमो अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं, नमो आयरियाणं, नमो उवज्झायाणं, नमो लोअ सव्वसाहूणं असो पंचनमुक्कारो, सम्वपावप्पणासणो, मंगलाणं च सव्वेसि, पढ़म हवइ मंगलं. उपवास नुपच्चवखारा पारवा माटे सूरे अग्गो अन्भत्तट्ट पच्चखाण कर्यु तिविहार पोरिस. साढपोरिसि (सूरे उग्गले पुरिमड्ढ) मुठ्ठि सहिअं पच्चक्खाण र्य पाणहार, पच्चकखाण फासि, पालिअं, सोहिअं, तीरिअं किट्टि आराहिअं, जं च न आराहिलं, तस्स मिच्छामि दुक्कडं. (पछी मुठो वालो अक नवकार गणवो) अकासगु-बियासणु-आयविल नुपच्चक़खार पारवा माटे अग्गो सूरे नमुक्कारसहिअं पोरिसिं, साढपोरिसि उग्गों परिपड्ढ अवड्ढ) मुट्टिसहि पच्चकखाण कर्यु चोबि हार ) [आयंबील, अकासगुं] बियासणुं पच्चकक्खाण कर्य तिबिहार, पच्चकखाण फासि, पालि, सोरिअं, तोरिअ किट्टि, आराहि, चन आराहि तरस मिच्छामि दुक्कर Qजे पच्चकख ण क यु होय ते बोलव. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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