Book Title: Vishsthanak Tap Vidhi
Author(s): Punyavijay
Publisher: Bhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री 事 CCC wwwwwwww wwwwwww WELL 5 श्री जगवल्लभ पार्श्वनाथाय नमः श्री लब्धि भुवनतिलक गुरुवे नमः प्रेरक पू. कर्नाटक केशरि आचार्य श्री भद्रंकर सूरिश्वरजी महाराज EEM LIK वी 411118/10/15 श स्था न क त संपादक पू. पंन्यास प्रवर प श्री पुण्यविजयजी वि गणीवर : धी Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री विजय भुवनतिलकसूरीश्वर जैन ग्रंथमाला छाणी के : प्राप्य-- पुस्तको: १) अंतरिक्ष तीर्थ महात्म्य ( संस्कृत ) २) तत्त्वन्याय विभाकर भाग १, २ ३) , सटीक भाग १ ४) दशवैकालिक सूत्र, ५) उत्तराध्ययन सूत्र ६) भुवन काव्य केलि ( संस्कृत ) ७) ललितविस्तरा भाग १, २ ८) भगवद्भक्ति ( स्नात्रपूजा आदि नोटेशन ) ९) भुवनबोध ( आध्यात्मिक लेख संग्रह ) १०) ल. मृत्यु क्षण काव्य (संस्कृत) ११) अरिहंत आराधना १२) नवपद आराधन विधि १३) छाणी शतकम् १४) अक्षयनिधि तपो विधान १५) विविध भाषामें नवकारमंत्र, १६) संयमना ओवारे १७) प्रव्रज्याना पुनितपंथे, १८) आत्मनिदर्शन, १९) शत्रुजय गुणगुंजन २०) पच्चक्खाणदर्शन २१) जैन बाल बोथी २२) अध्यात्मसार ( प्रेशमें ) : प्राप्तिस्थान : भुवन - भद्रंकर साहित्य प्रचार केन्द्र Clo. V. V. VORA 34, KRISNAPPA NAICAN ST. MADRAS 600 001 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज वीश स्थानक तप विधि प्रेरक - पू. कर्नाटक केसरी आचार्य श्री. भद्रंकर सुरीश्वरजी महाराज संपादक W पू. पंन्यास श्री पुण्यविजयजी गणीवर मा. श्री कैलाससागर सूरि ज्ञान मंदिर श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोक Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशक भूवन भद्रकर साहित्य प्रचार केंद्र व्ही. व्ही. वोरा ३४, कृष्णाप्पा नायकन स्ट्रीट मद्रास, ६०० ००१ प्राप्तिस्थान : लब्धिभुवन जैन साहित्य सदन __शा. राजेश नटवरलाल भुवनतिलकनगर, छाणी ३९१७४० OD - भुवन तिलक कृपा मंदीर वर्धमान जे. मेहला जैन मंदीर, इस्लामपुर जि. सागरी मूल्य : रु. १-३० ( एक रुपया तीस पैसे ) लब्धि संवत वीर संवत २५०५ आ. सु. १ विक्रम संवत २०३५ सन १९७९ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वीशस्थानक यत्र सिटाणं Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वंदना प्रेरक और संपादक को पूज्य पन्यासप्रवर श्री पुण्यविजयजी गणीवर पूज्य कर्नाटक केशरि आचार्य श्री भद्रंकर सूरिश्वरजी महाराज Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री वीशस्थानक तप आराधन विधि. ___ साधु साध्वी जो अ तप करे तो जे पदना जेटल गुण होय तेटला लोगस्सनो काउस्साग, तेटला खमासमण अने में पदनी वीश नवकारवाली गणे. उपरांत अवकाश मलतो होय तो त्रण कालना देववंदन पांच शस्तव, त्रण चैत्यवंदन अने आठ स्तुतिओ बडे करे. आ तपना करनारा श्रावक श्राविका सवार सांज प्रतिक्रमण करे, वे वखत पडिलेहण करे, त्रिकाल पूजा करे, ब्रह्मचर्य पाले. असत्य, चोरी नो त्याग अने रागद्वषनी मंदता करे, बने तेटलो आरंभनो त्याग करे, न बने तो उदासीन भावथी, लूखा परिणामथी पोतानो निभाव करी ले. बाकीनी विधि-काउस्सरग, खमासमण, देवबंदन, वीश नवकारवाली विगेरे ऊपर कह्या प्रमाणे करे, शक्ति होय तो ते तप संबंधी उपवासने दिवसे देरासरमां पदना गुण प्रमाणो साथीआ करी तेनी ऊपर तेटलां फल, नैवेद्य अने द्रव्यादिक चड़ावे. अवी रीते अक अंक पदना आराधन माटे वर्तमान कालानुसारे यथाशक्ति वीश अट्टम, अथवा छट्ट, अथवा उपवास, अथवा आयंबिल, नीवी के ॲकासणा करे. अकासणाथी ओछो तप कराय नहि . प्रथम शुभ दिवस, बार, नक्षत्र, चंद्रबल जोइने गुरु पासे विधि सहित आ तप उच्चरे अने शरु करे जघन्य थी वे महिनामां अंक ओली करे, उत्कृष्ट थी छ महिनामां अक ओली पूर्ण करे. छ? अट्टमथी करनार अक वर्षमा एक ओली पूर्ण करे. तप पूरो थाय त्यारे गुरुमुखे धारी लडने यथाथशक्ति उजमण करे. Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २ ) प्रथम अरिहंत पद आराधन विधि परम पंच परमेष्ठि मां परमेश्वर भगवान | चार निक्षेपे ध्याइ, नमो नमो श्री जिनभारा ॥ नवकारवाली ॐ नमो अरिहंताणं अ पदनी वीश गंणवी. अरिहंतपदना बार गुण होवाथी १२ खमासमण नीचे प्रमाणे गुण कहीने आपवां गुणना नाम १ श्री अशोकवृक्षप्रातिहार्यशोमिताय श्रीमदर्हते नमः २ श्री पंचवर्णजानुदध्न पुष्पप्रकारप्रातिहार्यशोभिताय श्रीमदर्हते नमः ३ श्री अतिमधुरद्रव्यमाधुय्यं तोऽपि मधुरतम दिव्यध्वनिप्रतिहार्य. शोभिताय श्रीमदर्हते नमः ४ श्री हेमरत्नजडितदण्डस्थितात्युज्ज्वलचामरयुगलवीजितव्यजन क्रियायुक्तप्रातिहार्यशोभिताय श्रीमते नमः ५ श्री सुवर्णरत्नजड़ित सदासहचारिसिंहासन सत्प्रातिहार्य शोभिताय श्रीमदर्हते नमः ६ श्री तरुणतरणितेजसोऽप्यतिंभास्करतेजोयुक्तभामंडलप्रातिहा यशोभिताय श्रीमदर्हते नमः ७ श्री आकाश स्थित दुन्दुभिप्रभृत्य ने कवादित्रवदनरूपसत्प्रा तिहा शोभिताय श्रीमदर्हते नमः ८ श्री मुक्ताजालम्बनकयुक्त छत्र त्रय सत्प्रातिहार्यशोभिताय श्री मदर्हते नमः Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) ९ श्री स्वपरापायनिवारकातिद यधराय श्री महंते नमः श्री पंत्रिशवाणोगुणयुक्ताय सुरासुरदेवेन्द्र नरेन्द्राणां पूज्याय श्री मदहते नमः ११ श्री सर्वभाषानुगामिसकलसंशयीच्छेदकवचनातिशयोय श्री. ___महने नमः १२ श्री लोकालोकप्रकाशककेवलज्ञानरूपज्ञानातिशयेश्वराय श्रीमदहते नमः ओ प्रमाणे खामसमण दइने, पछी भगवाननी सामे अथवा उपाश्रय मां स्थापनाजी सामे इरियावही पडिक्कमी, अक लोगरसनो काउस्सग्ग करी प्रगट लोगस्स कहीं खमासमण दड़ इच्छा-कारेण संदिसह भगवन् ! अरिहंत पद आराधनार्थ का उस्सग करु? अम कही आदेश मांगे. (गुरु बेठा होय तो 'करेह' कहे) अटले पोते 'इच्छ' कही वंदणवत्तिया, अन्नथ्थ. कही २४ अथवा १२ लोग:सनो काउस्सग्ग मौन पणे करे, काउस्सग्ग मां लोगस्स 'चंदेसु निम्मलयरा' सुधी चितवे. पछी नमो अरिहंताण' कही, काउस्सग्ग पारी प्रगट लोगस्स कहे. पछी अंक खमासमण दइ 'विधि करतां अविधि थइ होय तो मिच्छामि दुक्कड" अ म कहें. गुरुनो योग न होय तो स्थापनाजो सामे आदेश मांगी इच्छं.'कहीने आ प्रमाणे विधि करे. आ पदनु ध्यान उज्ज्वल वणे करव आ पदनो आराधना करवाथी देवपाल तीर्थकर थया छे. Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ द्वितीय सिद्धपद आराधन विधि गुण अनंत निर्मल थया, सहज़ स्वरूप उजास। अष्ट कर्ममल क्षय करी; भये सिद्ध नमो तास । सिद्धपदना ३१ गुण होवाथी खमासमण ३१ नीचे प्रमाणे कहीने आपे अने २० नवकारवाली नमो सिद्धाणं पदनी गणे. १ मतिज्ञानावरणीयकर्मरहिताय श्री सिद्धाय नमः २ श्रुतज्ञानावरणीयकमरहिताय श्री सिद्धाय नमः ३ अवधिज्ञाननावरणीयकर्मरहिताय श्री सिद्धाय नमः ४ मनःपर्यवज्ञानावरणीयकर्मरहिताय श्री सिद्धाय नमः ५ केवलज्ञानावरणीयकर्मरहिताय श्रीसिद्धाय नमः ६ निद्रादर्शनावरणीयकर्मरहिताय श्री सिद्धाय नमः ७ निद्रानिद्रादर्शनावरणीयकर्मरहिताय श्री सिद्धाय नमः ८ प्रचलादर्शनावरनीयकमरहिताय श्री सिद्धाय नमः ९ प्रचलाप्रचलादर्शनावरणीयकर्मरहिताय श्री सिद्धाय नमः १० वीणद्धिदर्शनावरणीयकर्मरहिताय श्री सिद्धाय नमः ११ चक्षुर्दर्शनावरणीयकमरहिताय श्री सिद्धाय नमः १२ अचक्षुदर्शनावरणीयकमरहिताय श्री सिद्धाय नमः १३ अवधिदर्शनावरणीयकमरहिताय श्री सिद्धाय नमः १४ केवलदर्शनावरणीयकमरहिताय श्री सिद्धाय नमः Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५ सातवेदनीयकर्मरहिताय श्री सिद्धाय नमः १६ असातवेदनीयकर्मरहिताय श्री सिद्धाय नमः १७ दर्शनमोहनीयकर्मरहिताय श्री सिद्धाय नमः १८ चारित्रमोहनीयकमरहिताय श्री सिद्धाय नमः १९ नरकायुःकर्मरहिताय श्री सिद्धाय नमः २० तिर्यगायुःकर्मर हिताय श्री सिद्धाय नमः २१ ममुष्यायुःकमर हिताय श्री सिद्धाय नमः २२ देवायुःकर्मरहिता श्री सिद्धाय नमः २३ शुभनामकर्मरहिताय श्री सिद्धाय नमः २४ अशुभनामकर्मरहिताय श्री सिद्धाय नमः २५ उच्च गोत्रकर्मरहिताय श्री सिद्धाय नमः २६ नीचगोंत्रकर्मरहिताय श्री सिद्धाय नमः २७ दानान्तरायकमरहिताय श्री सिद्धाय नमः २८ लाभान्तरायकर्मरहिताय श्री सिद्धात नमः २९ भोगान्तरायकर्मरहिताय श्री सिद्धाय नमः ३० उपभोगान्तरायकर्मरहिताय श्री सिद्धाय नमः ३१ वीर्यान्तरायकमरहिताय श्री सिद्धाय नमः आ प्रमाणे खमासमण दइने पछी सिद्धना १५ भेद होवाथी १५ लोगस्स नो काउरसग्ग करे. आ पदनु ध्यान रक्तवर्णे करे. आ.पदनी अराधना करवाथी हस्तिपाल राजा तीर्थकर थया छे. Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध तृतीय प्रवचन पद आराधन विधि भावामय औषघसमी, प्रवचन अमृत वृष्टि त्रिभुवन ज़नने सुखकारी जय जय प्रवचन दृद्धि आ पदनी २० नवकारवालोॐनमो पवयणस्त अम कहा गणे. आ पदना गुण १२ अथवा २७ होवाथी १२ अथवा २ लोगस्सनो काउस्गग्ग करे. खमासमण २७ नीचे प्रमा कहिने आपे. १ सर्वतःप्राणातिपातविरताय श्रीप्रवचनाय नमः २ सर्वतो मृषावादविरताय श्रीप्रवचनाय नमः ३ सर्वतोऽदत्तादानविरताय श्रीप्रबचनाय नमः ४ सर्वतो मैथुनविरताय श्रीप्रवचनाय नमः ५ सर्वतःपरिग्रहविरताय श्रीप्रवचनाय नमः ६ देशतः प्राणातिपातविरताय श्रीप्रवचनाय नमः ७ देशतो मृषावादविरताय श्रीप्रवचनाय नमः ८ देशतोऽदत्तदानविरताय श्रीप्रवचनाय नमः ९ देशतो मैंथनविरताय श्री प्रवचनाय नमः १० देशतः परिग्रहविरताय श्री प्रवचनाय नमः ११ दिशिपरिमाणवतक्ताय श्री प्रवचनाय नमः Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) १२ भोगोपभोगपरिमाणव्रतयुक्ताय श्रीप्रवचनाय नमः १३ अनर्थदण्डबिरताय श्रीप्रवचनाय नमः १४ सामायिकव्रतयुक्ताय श्रीप्रवचनाय नमः १५ देश वगाशिकवतयुक्ताय श्रीप्रवचनाय नमः १६ पोसहोपवासतयुक्ताय श्रीप्रवचनाय नमः १७ अतिथिसंविभागवतयुक्ताय श्रीप्रवचनाय नमः १८ विधिसूत्रागमाय श्रीप्रवचनाय नमः १९ वणिकसूत्रागमाय श्रीप्रवचनाय नमः २० भयसूत्रागमाय श्रीप्रवचनाय नमः २१ उत्सर्गसूत्रागमाय श्रीप्रवचनाय नमः २२ अपवादसूत्रागमाय श्रीप्रवचनाय नमः २३ उभयसूत्रागमाय श्री रवचनाय नम २४ उद्यमसूत्रागमाय श्रीरवचनाय नमः २५ सर्वनयपमहात्मकाय श्रीप्रवचनाय नमः २६ सप्तभंगीरचनात्मकाय श्रीप्रचनाय नमः २७ द्वादशांगगणिपिटकाय श्रीप्रवचनाय नमः आ पद ध्यान उज्वल वणे करवू. आ पदनु ध्यान करवाथी जिनदत्त शेठ तीर्थङ्कर पदवी ने पाम्या छे. Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (6) अथ चतुर्थ आचार्य पद आराधन विधि. छत्रीश छत्रीशी गुणे, युगप्रधान मुणीट जिनमत परमत जाणता' नमो नमो ते सूरींद. आ पदना ३६ गुण होवथी काउस्सग्ग ३६ लोगस्सनो करवो. २० नवकारवाली ॐ नमो आपरियाणं ओ पदनी गणवी खमासमण ३६ नीचे प्रमाणे कहोने आपवा. १ प्रतिरूपगुणधराय श्रीआचार्याय नमः २ तेजस्विगुणधराय श्रीआचार्याय नमः ३ युग प्रधानागमाय श्रीआचार्याय नम : ४ मधुरवाक्यगुणधराय श्रीआचार्याय नमः ५ गम्भीरगुणधराय श्रीआचार्याय नमः ६ सुबुद्धिगुणधराय श्रीआचार्याय नमः ७ उपदेशतत्वराय श्रीआचार्यांय नमः ८ अपरिश्राविगुणधराय श्रीआचार्याय नमः ९ चन्द्रवत्सौम्यस्वगुणधाराय श्रीश्राचार्याय नमः १० विविधाभिग्रहमतिधराय श्रीआचार्यांय नमः " ११ अविकथकगुणधराय श्रीआचार्यय नमः १२ अचपल गुणधराय श्रीआचार्याय नमः १३ संयमशीलगुणधराय श्रीआचार्याय नमः Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ श्री प्रशान्तहृदयाय श्रीमदाचायोय नमः १५ , क्षमागुणधराय श्रीमदाचार्याय नमः १६ , मार्दवगुणधराय श्रीमदाचार्याय नमः १७ , आर्जवगुणधराय श्रीमदाचार्याय नमः १८ , निर्लोभितागुणधराय श्रीमदाचार्याय नमः १९ , तपोगुणयुक्ताय श्रीमदाचार्याय नमः २० , संयमगुणयुक्ताय श्रीमदाचार्याय नमः २१ , सत्यधर्मयुक्ताय श्रीमदाचार्यांय नमः २२ , शौचगुणयुक्ताय श्रीमदाचार्यांय नमः २३ , आकिंचन्यगुणयुक्ताय श्रीमदाचार्याय नमः ,, ब्रह्मचर्यगुणयुक्ताय श्रीमदाचार्याय नमः २५ , अनित्यभावनाभाविताय श्रीमदाचार्याय नमः ,, अशरणभावनाभाविताय श्रीमदाचार्याय नमः ,, संसारभावनाभाविताय श्रीमदाचार्यांय नमः २८ ,, ओकत्वभावनाभाविताय श्रीमदाचार्याय नमः २९ ,, अन्यत्वभावनाभाविताय श्रीमदाचार्याय नमः ३० , अशुचिभावनाभाविताय श्रीमदाचार्यांय नमः ,, आश्रवभावनाभाविताय श्रीमदाचार्याय नमः ,, संवरभावनाभाविताय श्रीमदाचार्याय नमः ३३ , निर्जराभावनाभाविताय श्रीमदाचार्याय नमः ३४ ,, लोकस्वभावभावनाभाविताय श्रीमदाचार्याय नमाः Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५ , श्री बोधिदुर्लभभावनाभाविताय श्रीमदाचार्याय नमः ३६ ,, धर्मसाधकअरिहंतदुर्लभभावनाभाविताय श्रीमदाचार्याय __ नमः आचार्यपदनुं ध्यान पीतवर्णे करवू से पदनु ध्यान कर. वाथी पुरुषोत्तम राजा तीर्थकर थया छे. अथ पंचम स्थविर पद आराधन विधि तजी परपरि ति रमणता, लहे निज भावस्वरू स्थिर करता भविलोकने; जय जय स्थविर अन् ___ आ पदनी २० नवकारवाली ॐनमो थेराणं आ पद बोलं गणवी. आ पदना आराधन माटे १० लोगस्सनो काउस करवे आ पदना १. खमासमण नीचे प्रमाणे बोलीने आपव १ सौकिकस्थविरदेशकाय श्रीलोकोत्तरस्थावराय नमः २ देशस्थविरदेशकाय श्रीलोकोत्तरस्थविराय नमः ३ ग्रामस्थविरदेशकाय श्रीलोकोत्तरस्थविराय नमः ४ कुलस्थविरदेशकाय श्रीलोकोत्तरस्थविराय नमः ५ लौकिककुलस्थविरदेशकाय श्रीलोकोत्तरस्थविराय नमः ६ लौकिकगुरुस्थविरदेशकाय श्रोलोकोत्तरस्थविराय नमः Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१) ७ श्री लोकोत्तरश्रीसंघस्थविगय नमः ८ ., लोकोत्तरपर्यायस्थविराय नमः ९ ,, लोकोत्तरश्रुतस्थविराय नमः १० , लोकोत्तरवयस्स्थविराय नमः आ पद ध्यान गौरवणे करव. आ पदनु आराधन करवायी पद्मोत्तर राजा तीथर थया छे. अथ षष्ठ उपाध्याय पद आराधन विधि. बोध सूक्ष्म विरा जीवन न होय तत्त्वप्रतीत। भगे भगवे सूत्रने' जय जय पाठकगीत ॥ आ पदनी नवकारवाली २० ॐ नमो उवज्झायाणं ओ पदवडे गणवी. आ पदना गुण २५ होवाथी २५ लोगस्सनो काउसग्ग करवो. खमासमण २५ नीचे प्रमाणे बोलीने आपव १ श्री आचारांगश्रतपाठक श्रीउपाध्यायेभ्यो नमः २ , सुअगडांगश्रुतपाठक श्रीउपाध्यायेभ्यो नमः ३ , ठाणांगश्रुतपाठक श्रीउपाध्यायेभ्यो नमः ४ ,, समवायांगश्रुतपाठक श्रीउपाध्यायेभ्यो नमः ५, विवाहपन्नतिअङ्गश्रुतपाठक श्री उपाध्यायेभ्यो नमः ६ ,. ज्ञाताधर्मकथाङ्गश्रुतपाठक श्री उपाध्यायेभ्यो नमः Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) ७ श्री उपासकदशांगश्रुतपाठक श्रीउपाध्यायेभ्यो नमः ८ अंतगडदशांगश्रुतपाठक श्रीउपाध्यायेभ्यो नमः ९ अनुत्तरोववाईअंगभुतपाठक श्रीउपाध्यायेभ्यो नमः १० प्रश्नव्याकरणॉगश्रुतपाठक श्रीउपाध्यायेभ्यो नमः ११,, विपाकांगश्रुतपाठक श्री उपाध्यायेभ्यो नमः १२,, उबबाइउपांग श्रुतपाठक श्री उपाध्यायेभ्यो नमः १३, रायपसेणिउपांगश्रुतपाठक श्री उपाध्यायेभ्यो नमः १४, जीवाभिगमउपांग श्रतपाठक श्री उपाध्यायेभ्यो नमः १५,, पत्रवणाउपांग श्रुतपाठक श्री उपाध्यायेभ्यो नमः १६,, जंबूद्वीपपन्नत्तिउपांग श्रतपाठक श्री उपाध्यायेभ्यो नमः १७ चन्दप प्रतिउपोगश्रुतपाठक श्री उपाध्यायेभ्यो नमः १८, सूरपन्नत्तिउपांगश्रुतपाठक श्री उपाध्यायेभ्यो नमः १९, निरयावलीउपांग श्रतपाठक श्री उपाध्यायेभ्यो नमः २०,, कपिउपांगवतपाठक श्री उपाध्यायेभ्यो नमः २१, पुष्किआउपांग श्रतपाठक श्रीउपाध्यायेभ्यो नमः २२,, पुष्कचूलिआउपांगनपाठक श्रीउपाध्यायेभ्यो नमः २३,, वन्हिदशा उपांग श्रुतपाठक श्रीउपाध्यायेभ्यो नमः २४,, द्वादशांगीश्रुतपाठक श्रीउपाध्यायेभ्यो नमः २५,, द्वादशांगी श्रुतार्थ अध्यापक श्रीउपाध्यायेभ्यो नमः 11 आ पदनु ध्यान नीलवर्णं बड़े करवु आ पदना आराधनथी श्री महेंद्रपाल तीर्थङ्कर थया छं. Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ सप्तम साधु पद आराधन विधि . स्याबाद गुण परिणाम्यो' रमता समता संग। साधे शुद्धानंदता, नमो साधु शुभरंग ॥ आ पदनी २० नवकारवाली ॐ नमो लोए सव्वसाहूणं अ पद बडे गणवी. आ पदना आराधननो काउस्सग्ग २७ लोगस्सनो करवो. आ पदना २७ खमासमण नोचे प्रमाण पदो बोलीने आपा. १ पृथ्विकायरक्षकेभ्यः श्री सर्वसाधुभ्यो नमः २ अप्कायरक्षकेभ्यः श्री सर्वसाधुभ्यो नमः ३ तेउ कायरक्षकेभ्यः श्री सर्वसाधुभ्यो नमः ४ वायु कायरक्षकेभ्यः श्री सर्वसाधुभ्यो नमः ५ वनस्पतिकायरक्षकेभ्यः श्री श्रर्वसाधुभ्यो नमः ६ त्रसकायरक्षकेभ्यः श्री सर्वसाधुभ्यो नमः ७ सर्वतः प्राणातिपातविरतेभ्यः श्री. सर्वसाधभ्यो नमः ८ मर्धतः मृषावादविरतेभ्यः श्री सर्वसाधुभ्यो नमः ९ सर्वतोऽदत्तादानविरतेभ्यः श्री सर्वसाधभ्यो नमः १० सर्वतो मैंथुनात् विरतेभ्यः श्री सर्वसाधुभ्यो नमः ११ सर्वतः परिग्रहात् विरतेभ्यः श्री सर्वसाधुभ्यो नमः Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) १२ सर्वतो रात्रिभोजनात विरतेभ्यः श्री सर्वसाधभ्यो नमः १३ क्रोधादिकषायचतुष्क निग्रहकेभ्यः श्री सर्वसाधुभ्यो नमः १४ श्रोत्रेन्द्रियविषयनिग्रहकेभ्यः श्री सर्गसाधुभ्यो नमः १५ चक्षुरिन्द्रियविषयनिग्रहकेभ्यः श्री सर्वं साधुभ्यो नमः १६ घ्राणेन्द्रियविषयविग्रहकेभ्यः श्री सर्वसाधभ्यो नमः १७ रसनेन्द्रियविषयनिग्रहकेभ्यः श्री सर्वसाधुभ्यो नमः १८ स्पर्शनेन्द्रियविषयनिग्रहकेभ्यः श्री सर्वसाधुभ्यो नमः १९ शीतादिपरीषहसहकेभ्यः श्री सर्वसाधुभ्यो नमः २० क्षमादिगुणधारकेभ्यः श्री ससाधुभ्यो नमः २१ भावविशुद्ध ेभ्यः श्री सर्वसाधभ्यो नमः २२ मनोयोगशुद्ध ेभ्यः श्री सर्वसाधुभ्यो नमः २३ वजनयोगशुद्धभ्यः श्री सर्वसाधुभ्यो नमः २४ काययोगशुद्ध ेभ्यः श्री सर्वसाधुभ्यो नमः २५ मरणान्तउपसर्गसह केभ्यः श्री सर्वसाधभ्यो नमः २६ अंगोपांगसंकोचनसंलीनतागुणयुक्तेभ्यः श्रीसर्व साधयो न‍ २७ निर्दोषसंयमयोगयुक्तेभ्य: श्री सर्वसाधुभ्यो नमः आ पदनु ध्यान श्यामवर्ण वडे करव् आ पदनु आराधन करवाथी श्री वीरभद्र तीर्थङ्कर थया छे. Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) अथ अष्टम ज्ञान पद आराधन विधि. अध्यातम ज्ञाने करी; विघटे भवमभीति । सत्य धर्म ते ज्ञानछे, नमो नमो ज्ञाननी रीति ॥ आ पदनी २० नमकारवाली ॐ नमो नाणस्स ओ पदवडे गणवी, आ पदना आराधन माटे ५१ लोगस्सनो काउस्सग्ग करवो खमासमण ५१ नीचे प्रमाणे पद बोलीने आपवा. १ स्पर्शनेन्द्रियव्यंजनावग्रहाय श्रीमतिज्ञानाय नमः २ रसनेन्द्रियव्यंजनावग्रहाय श्रीमतिज्ञानाय नमः ३ घ्राणेन्द्रियव्यंजनावग्रहाय श्रीमतिज्ञानाय नमः ४ श्रोत्रेन्द्रियव्यंजनावग्रहाय श्रीमतिज्ञानाय नम ५ स्पर्शनेन्द्रियव्यं जनावग्रहाय श्रीमतिज्ञानाय नमः ६ रसनेन्द्रियअर्थावग्रहाय श्रीमतिज्ञानाय नमः ७ प्राणेन्द्रिय अर्थावग्रहाय श्रीमतिज्ञानाय नमः ८ चक्षरिन्द्रिय अर्थावग्रहाय श्रीमतिज्ञानाय नमः ९ श्रात्रेन्द्रिय अर्थावग्रहाय श्रीमतिज्ञानाय नमः १० मनोऽर्थावग्रहाय श्रीमतिज्ञानाय नमः ११ स्पर्शनेन्द्रियइहासम्यक श्री मतिज्ञानाय नमः १२ रसनेन्द्रियइहासम्यक् श्रीमतिज्ञानाय नमः १३ प्रा०न्द्रियइहासम्यक् श्रीमतिज्ञानाय नमः Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ चक्षुरिन्द्रियइहासम्यक् श्रीमतिज्ञानाय नमः १५ श्रोत्रेन्द्रियइहासम्यक् श्रीमतिज्ञानाय नमः १६ मनइहासम्यक् श्रीमतिज्ञानाय नमः १७ स्पर्शनेन्द्रियअपायसम्यक् श्रीमतिज्ञानाय नमः १८ रसनेन्द्रियअपायसम्यक 'श्रीमतिज्ञानाय नमः १९ घ्राणेन्द्रियअपायसम्यक् श्रीमतिज्ञानाय नमः २० चक्षुरिन्द्रियासम्यक् श्रीमतिज्ञानाय नमः २१ श्रोत्रेन्द्रियापायसम्यक् श्रीमतिज्ञानाय नमः २२ मनोऽपायसम्यक् श्रीमतिज्ञानाय नमः २३ स्पर्शनेन्द्रियधारणाय श्रीमतिज्ञोनाय नमः २४ रसनेन्द्रियधारणाय श्रीमतिज्ञानाय नस: २५ घ्राणेन्द्रियधारणाय श्रीमतिज्ञानाय नम: २६ चक्षरिन्द्रियधारणाय श्रीमतिज्ञानाय नमः २७ श्रोत्रंरिन्द्रियधारणाय श्रीमतिज्ञानाय नमः २८ मनोधारणाय श्रीमतिज्ञानाय नमः २९ असर-श्रीश्रुतज्ञानाय नमः ३० अनक्षर-श्रीश्रुतज्ञानाय नमः ३१ संज्ञिश्रीश्रुतज्ञानाय नमः ३२ असंज्ञिश्रीश्रुतज्ञानाय नमः ३३ सम्यश्रीश्रुतज्ञानाय नमः ३४ मिथ्यात्वश्रीश्रुतज्ञानाय नमः Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) ३५ सादिश्रीश्रुतज्ञानाय नमः ३६ अनादिश्वीश्रुतज्ञानाय नमः ३७ सपर्यवसिश्रश्रुतज्ञानाय नमः ३८ अपर्यवसितश्रीश्रुतज्ञानाय नमः ३९ गमिक श्रीश्रुतज्ञानाय नमः ४० अगमिक श्रीश्रुतज्ञानाय नमः ४१ अंगप्रविष्ट श्रीश्रतज्ञानाय नमः ४२ अनंगप्रविष्टश्रीश्रुतज्ञानाय नमः ४३ आनुगामिकश्रीअवधिज्ञानाय नमः ४४ अननुगामिकश्रीअवधिज्ञानाय नमः ४५ वर्धमानश्री अवधिज्ञानाय नमः ४६ हीमानश्रीअवधिज्ञानाय नमः ४७ प्रतिपातिश्रीअवधिज्ञानाय नमः ४८ अप्रतिप्रातिश्रीअवधिज्ञानाय नमः ४९ ऋजुमतिश्रीमनः पर्यवज्ञानाय नमः ५० विपुलमति श्रीमानः पर्यवज्ञानाय नमः ५१ लोकालोकप्रकाशक श्री केवलज्ञानाय नमः आ पदनु ध्यान उज्ज्वलवर्णे करवं, आ पदनु आराधन कर वाथी जयंतराजा तीर्थङ्कर थयाछे. Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१८) अथ नवम दर्शन पद आराधन विधि लोकालोकना भाव जे. केवलि भाषित जेह. सत्य करी अवधारतो, नमो नमो दर्शन तेह. आ पदनी २० नवकारवाली ॐ नमो दंसणस्स अ पदवडे गणवी. समकितना ६७ बोल होवाथी ६७ लोगस्सनो काउस्सग्ग करवो. खमासमण ६७ नीचे प्रमाणे बोलीने आपवा १ तच्वपरिचयरूप श्रीसम्यग्दर्शनगुणधराय नमः २ तज्जसेवारूप श्रीसभ्यग्दर्शनगुणधराय नमः ३ कुलिगिसंगवर्जनरूप श्रीसम्यग्दर्शनगुणधराय नमः ४ मिथ्यादर्शनिसंसर्गवर्जनरूप श्रीसभ्यग्दर्शनगुणधराय नमः ५ जिनागमश्रवणपरमइच्छारूप श्रीसम्यग्दर्शनगुणधराय नमः ६ धर्मकरणे तीव्रइच्छारूप श्रीसम्यग्दर्शनगुणधराय नमः ७ वयावृत्त्यकरणतत्पररूप श्रीसम्यग्दर्शनगुणधराय नमः ८ श्री अरिहंतविनयकरणरूप श्रीसम्यग्दर्शनगुणधराय नमः ९, सिद्धविनयकरणरूप श्रीसम्यग्दर्शनगुणधराय नमः १० , जिनप्रतिमाविनयकरणरूप श्रीसम्यग्दर्शनगुणधराय नमः ११ ., श्रुतज्ञानविनयकरणरूप श्रीसम्यग्दर्शनगुणधराय नमः १२ ,, चारिवधर्मविनयकरणरूप श्रीसम्यग्दर्शनगुणधराय नमः १३ ,, साधुमुनिरोजविनयकरणरूप श्रीसम्यग्दर्शनगुणधराय नयः Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ श्री आचार्यविनय करणरूप श्री सम्यग्दर्शन गुणधराय नमः १५ ,, उपाध्यायविनयकरणरूप श्री सम्यगदर्शनगणधराय नमः १६ ,, प्रवचनरूपसंघविनयकरणरूप श्रीसम्यग्दर्शनगुणधराय नमः १७,, सम्यग्दर्शनविनयकरणरूप श्री सम्यग्दर्शनगुगधराय नमः १८ मनःशुद्धिरूप श्री सम्यग्दर्शनगुणधराय नमः १९ वचनशुद्धिरूप श्री सम्यगदर्श नगणराय नमः २० कायशुद्धिरूप श्री सम्यग्दर्शनगणधराय नमः २१ शंकादूषणत्यागरूप श्री सम्यग्दर्शनगुणधराय नमः २२ आकांक्षादूषणत्यागरूप श्री सम्यग्दर्शनगुणधराय नमः २३ विचिकित्सादूषणत्यागरूप श्री सम्ययगदर्शनगणधराय नमः २४ मिथ्याइष्टिसंसगवर्जनरूप श्रीसम्यदग दर्शनगणघराय नमः २५ मिथ्यादृष्टिप्रशांसावर्जनरूप श्रीसम्यग्दर्शनगुणधराय नमः २६ श्री प्रवचन प्रभावक श्री सम्यग्दर्शनगणधराय नमः २७ ,, धनकथक प्रभावक श्री सम्यगदर्शनगुणधराय नमः २८ ,, वादि प्रभावक श्री सम्यग दर्शनगुणधराय नमः २९ , निमित्तक प्रभावक श्री सम्यग दर्शनगुणधराय नमः ३० ,, तपस्वि प्रभावक श्री सम्यग दर्शनगुणधराय नम ३१ ,, विद्या प्रभावक श्री सम्यग दर्शनगणधराय नमः ___ Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०) U ३२ श्री सिद्ध प्रभावक श्री सम्यग दर्शनगुणधराय नमः ३३ , कवि प्रभावक श्री सम्यग दर्शनगुणधराय नमः ३४ ,, स्थैर्यंभूषणधारक श्री सम्यग दर्शनगुणधराय नमः ३५ ,, प्रभावनाभूषणधारक श्री सम्यग दर्शनगुणधराय नमः ३६ क्रियाकुशलभूषणधारक श्री सम्यग दर्शनगुणधराय नम: ३७ अंतरंगभक्तिभूषणधारक श्री सम्यग दर्शनगुणधारय नमः ३८ तीथसेवाभूषणधारक श्री सम्यग दर्शनगुणधराय नमः ३९ शमलक्षणधराक श्री सम्यग दर्शनगुणधराय नमः ४० संवेगलक्षषणधारक श्री सम्यग दर्शनगणधराय नमः ४१ निर्वेदलक्षणधारक श्री सम्यग दर्शनगुणधराय नम ४२ अनुकंपालक्षणघारक श्री सम्यग दर्शनगुणधराय नम ४३ आस्तिक्यता लक्षणधारक श्री सम्यग दर्शनगुणधराय नम ४४ अन्यदेवनमनत्यागरूप श्री सम्यग दर्शनगणधराय नम ४५ अन्यदर्शनि गृहीतजिनप्रतिमा नमन त्यागरूप , ४६ मिथ्यावर्शनि सह संलापत्यागरूप ४७ मिथ्यादर्शनि सह संलापत्यागरूप ४८ मिथ्यादर्शनिनां आहारदानत्यागरूप ४६ रियादर्शनिना आहारदानत्यागरूष ५० रावाभियोगेणं आगारवान , Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१) ५१ बलाभियोगेणं आगारवान् श्री सम्यग्दर्शन गुणधराय नमः ५२ गगाभियोगेणं आगारवान् श्री सम्यग दर्शन गुणधराय नमः ५३ देवाभियोगेणं आगारवात् श्री सम्यग् दर्शनगुणधराय नमः ५४ गुरुनिग्गहेणं आगारवान् श्री सम्यग्दर्शन गुणधराय नमः ५५ वित्तिकांतारेणं आगारवान् श्री सम्यग्दर्शनगणधराय नमः ५६ धर्मरूपवृक्षस्य मूलभूत श्री सम्यग्दर्शनगुणधराय नमः ५७ मोक्षरूपनगरस्य द्वारभूत श्री सम्यग्दर्शन गणधराय नमः ५८ धर्मरूपवाहनस्य पीठभूत श्री सम्यग्दर्शन गुणधराय नमः ५९ विनयादिगुणस्य आधारभूत श्रीसम्यग्दर्शनगुणधराय नमः ६० धर्मरूपअमृतस्य पात्रभूत श्री सम्यग्दर्शन गुणधराय नमः ६१ सत्नत्रयीणां निधानभूत श्री सम्यग्दर्शनगुणधराय नमः ६२ अस्ति आत्मा - इति निर्णयरूप ६३ नित्यानित्य आत्मा इति निर्णयरूप ६४ जीवः कर्मणः कर्ता इति निर्णयरूप ६५ जीवः कर्मणी भोक्ता इति निर्णयरूप ६६ अस्ति जीवस्य मोक्षः - इति निर्णयरूप ६७ मोक्षस्य अस्ति उपायः इति निर्णयरूप 31 11 19 " 11 आ पदनु ध्यान उज्ज्वल वर्णे करवु आ पदनु आराधन कर वाथी श्री हरिविक्रम राजा तीर्थकर थया छे. $1 Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२२) अथ दशम विनयपद आराधन विधि शौचमूलथी महागुरागी, सर्व धर्मनो सार; गुरण अनंतनो कंद श्रे, नमो विनय आचार. आ पदनी २० नवकारवाली ॐ नमः विनयगुणसंपन्नस्म ओ पदवडे गणवी. विनयपदा ५२ प्रकार होवाथी ५२ लोगस्सनो काउस्सग्ग करवो. खमासमण नीचे प्रमाणं पदो कहीने ५२ आपवा. १ श्रीतीर्थङ्कराणांअनाशातनारूप श्रीविनयगुणप्राप्तेिभ्योनमः २, तीर्थङ्कराणां भक्तिकरणरूप श्री विनयगुणप्राप्तेभ्यो नमः ३ ,, तीर्थङ्कराणां वहुमानकरणरूप श्रीविनयगुणप्राप्तेभ्यो नमः ४, तीर्थंकराणां स्तुतिकरणरूप श्री विनय गुणप्राप्तेभ्यो नमः ५, सिद्धानां अनाशातनारूप श्री विनयगुणप्राप्तेभ्यो नमः ६ , सिद्धानां भक्तिकरणरूप श्रीविनयगुणप्राप्तेभ्यो नमः ७,, सिद्धानां स्तुतिकरणरूप श्रीबिनयगुणप्राप्तेभ्यो नमः ८,, सिद्धानां बहुमानकरणरूप श्रीविनयगुणप्राप्तेभ्यो नमः ९, सुविहितचांद्रादिकुलानां अनाशातनारूप श्रीविनयगुण प्रान्तेभ्यो नमः Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२३) १० श्री सुविहितचांद्रादिलानां भक्तिकरणरूप श्रीविनयगुण प्राप्तेभ्यो नमः ११ , सुविहितचांद्रादिकुलानां ब्रहमान करणरूप श्रीविनय गुणप्राप्तेभ्यो नमः १२ , सुविहित वांद्रादिकुलानां स्तुति हरणरूप श्री विनयगुण प्राप्तेभ्यो नमः १३ ,, कोटिकादिगणोत्पन्न सुविहितमुनीनां अनाशातनाकर__णरूप श्रीविनयगुणप्राप्तेभ्यो नमः १४ ,, कोटिकादिगणोत्पन्न सुविहितमुनीनां भक्तिकरणतत्पर श्रीविनय गणप्राप्तेभ्यो नमः १५ , कोटिकादिगणोत्पन्न सुविहितमुनीनां बहुमानकरणत पर श्रीविनयगुणप्राप्तेभ्यो नमः १६ ,, कोटिकादिगणोत्पन्न सुविहितमुनोनां स्तुतिकरणतत्पर ___ श्रीविनयगुणप्राप्तेभ्यो नमः १७ , चतुर्विधसंघस्य आनाशातनाकरणरूप श्रीविनयगुण प्राप्तेभ्यो नमः १८ , समस्तसंघस्य भक्तिकरणतत्पर श्रीविनयगुणप्राप्तेभ्यो नमः १९ , समस्तसंघस्य वहमानकरणतत्पर श्रीविनयगणप्राप्तेभ्यो नमः 2. समस्तसंघस्य स्तुतिकरणलत्पर श्रीविनयग्रणमातेभ्यो Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४) २१ श्री शुद्धागमोक्त क्रियाकारकस्य अन ज्ञानाकरणरूप श्रीविनयगुणप्राप्तेभ्यो नमः २२, शुद्धागमोक्त क्रियाकारकस्य भक्तिकरणतत्पर श्रीविन यगुणप्राप्तेभ्यो नमः २३,, शुद्धागमोक्त क्रियाकारकस्य बहुमानकरणतत्पर श्रीविन यगुण प्राप्तेभ्यो नमः २४,, शुद्धागमोक्तक्रियाकारकस्य स्तुतिकरणतत्पर श्रीविन यगणप्राप्तेभ्यो नमः २५, जिनोक्तधर्मस्य अनाशातना करणरूप श्री विनयगुणप्रा भ्यो नमः जिनोक्तधर्मस्य भक्तिकरणतत्पर श्रीविनयगुणप्राप्तेभ्य 17 नमः २७ जिनोक्तधर्मस्य बहुमान करणतत्पर श्रीविनयगुणप्राप्ते भ नमः २८, जिनोक्तधर्मस्य स्तुतिकरणतत्पर श्रीविनयगणप्राप्ते नमः २९,, ज्ञानगुणप्राप्तस्य अनाशातनाकरणरूप श्रीविनयगुणः प्तेभ्यो नमः ३० श्री ज्ञानगुणप्राप्तस्य भक्तिकरणतत्पर श्रीविनयगुणः नमः ३१,, ज्ञानगुणप्राप्तस्य बहुमानकरणतत्पर श्रीविनयग प्राप्तेभ्यो नमः Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३ श्री ज्ञानगुणप्राप्तस्य स्तुतिकरणतत्पर श्रीविनयगुणप्राप्ते भ्यो नमः ३३ ,, ज्ञानस्य अनाशातनाकरणरूप श्रीविनयगणप्राप्तेभ्यो नमः ३४ ,, ज्ञानस्य भक्ति करणतत्पर श्रीविनयगणप्राप्तेभ्यो नमः ३५ ,, ज्ञानस्य वहुमान करणतत्पर श्रीविनवगुणप्रातेभ्यो नमः ३६ ,, ज्ञानरय स्तुतिकरणतत्पर श्रीविनयगुणप्राप्तेश्यो नमः ३७ श्रीमदाचार्यस्य आनाशातनरूप श्रीविनयगुणप्राप्तेभ्योनमः ३८ श्री मदाचार्यस्य भक्तिकरणतत्पर श्रीविनयगुणप्राप्तेभ्यो नमः ३९ श्रीमदाचार्यस्य बहुमानकरणतत्पर श्रीविनयगुणप्राप्तेभ्यो नमः ० श्रीमदाचार्यस्य स्तुतिकरणतत्पर श्रीविनयगुणप्राप्तेभ्यो नमः ४१ ,, स्थविरमुनीनां अनाशातनारूप श्रीविनयगुणप्राप्तेभ्यो नमः ४२ ,, स्थविरमुनीनां भक्तिकरणतत्पर श्रीविनयगुणप्राप्तेभ्यो नमः ४३ ,, स्थविरमुनीनां बहमानकरणतत्पर श्रीविनयगुणप्राप्ते भ्यो नमः ४४ , स्थविरमुनीनां स्तुतिकरणतत्पर श्रीविनयगुणप्राप्तेभ्यो नमः Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५ श्रीमदुपाध्यायस्य आनाशातनाकरणरूप श्रीविनयगुणप्रा प्तेभ्यो नमः ४६ श्रीमदुपाध्यायस्य भक्तिकरणतत्पर श्रीविनयगुणप्राप्तेभ्यो नमः ४७ श्रीमदुपाध्यायस्य बहुमान करणतत्पर श्रीविनयगुणप्राप्ते भ्यो नमः ४८ श्रीमदुपाध्यायस्य स्तुतिकरणतत्पर श्री विनयगुणप्राप्तेभ्यो नमः ४९ श्रीमद् गणावच्छेदकस्य अनाशातनाकरणरूप श्रीविनय गुणप्राप्तेिभ्यो नमः ५० श्रीमद् गणावच्छेदकस्य भक्तिकरणतत्पर श्री विनय गुणप्राप्तेभ्यो नमः ५१ श्रीमद् गणावच्छेदकस्य बहुमानकरणतत्पर श्रीविनयगुण प्राप्तेभ्यो नमः ५२ श्रीमद् गणावच्छेदकस्य स्तुतिकरणतत्पर श्री विनयगुण प्राप्तेभ्यो नमः आ पदनु ध्यान उज्ज्वल वर्णे करवू आ पदनु आराधन करवाथी धनशेठ तीर्थकर पद पाम्या छे. आ विनयपदना पांच, दश, तेर, बावन अने छासठ भे थाय छे, तेमांथी अहीं ऊपर प्रमाणे ५२ भेद लख्या छे. Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७) [थ अकादश चारित्र पद आराधन विधि नत्रयीं विणु साधना, निष्फल कही सदीवः वरयनुनिधान छ जय जय संयम जीव. आ पदनी २० नवकारवाली ॐ नमो चारितस्स अ पदवडे गणवो. आ पदना ७० भेद होवाथी ताउस्सग्ग ७० लोगस्सनो करवो. आ पदना खमासमण ७० नीचे प्रमाणे बोलीने आपंवा १ अर्वतः प्राणातिपातविरमणव्रतधराय श्रीचारित्राय नमः २ सर्वतः मृावादविरमणव्रतधराय श्रीचारित्राय नमः ३ सर्वतः अदत्तादानविरमणव्रतधराय श्रीचारित्राय नमः ४ सर्वतः मैंथनविरमणव्रतधराय श्रीचारित्राय नमः ५ सर्वनः परिग्रहविरमणवतधराय श्रीचारित्राय नमः ६ सम्यकक्षमागुणधराय श्रीचारित्राय नमः 9 सम्यग्मार्दवगुणधराय श्रीचारित्राय नमः ८ सम्यगार्जवगुणधराय श्री चारित्राय नमः १ सम्याक्तिगुणधराय श्री चारित्राय नमः • सम्यक्तपोगुणधराय श्री चारित्राय नमः १ सम्यक्संयमगुणधराय श्री चारित्राय नमः २ सम्यक्तत्यगुणधराय श्री चारित्राय नमः ३ सम्यकशौचगुणधराय श्री चारित्राय नमः Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ सम्यग् अकिचनगुणधराय श्री चारित्राय नमः १५ सम्यग्ब्रह्मचर्यगुणधराय श्री चारित्राय नमः १६ पृथ्वीकाय जीवरक्षकाय श्री चारित्राय नमः १७ अपकारक्षकाय श्री चारित्राय नमः १८ तेउकायरक्षकय श्री चारित्राय नमः १९ वाउकायरक्षकाय श्री चारित्राय नमः २० वनस्पतिकायरक्षकाय श्री चारित्राय नमः २१ बेइन्द्रियरक्षकाय श्री चारित्राय नमः २२ तेइन्द्रियरक्षकाय श्री चारित्राय नमः २३ चउंरिंद्रियरक्षकाय श्री चारित्राय नमः २४ पंचेन्द्रियरक्षकाय श्री चारित्राय नमः २५ अजीवसंयमाय श्री चारित्राय नमः (२८) २६ प्रेक्षासंयमाय श्री चारित्राय नमः २७ उपेक्षासंयमाय आरंभ उत्सूत्र भाषणत्यागाय श्रीचारित्राय नमः २८ प्रमार्जनसंयमाय श्री चारित्राय नमः २९ पारिष्ठापन संयम उपयोगयुक्ताय श्री चारित्राय नमः ३९ मनः संयमयुक्ताय श्रीचारित्राय नमः ३१ वच्चन संयमयुक्ताय श्रीचारित्राय नमः ३२ काय संयमयुक्ताय श्रीचारित्राय नम. १. यतनापूर्ण वर्तव' ते. २. मनगुप्ति. ३. वचनगुप्ति ४. कायगुप्ति, Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२९) ३३ श्रा आचायस्य वयावच्च करणरूप श्री चाारत्राय नमः ३४ ,, उपाध्यायस्य वयावच्चकरणरूप श्री चारित्राय नमः ३५ ,, तपस्वि-वैयावच्चकरणरूप श्री चारित्राय नमः ३६ ,, लघुशिष्यत्य वैयावच्चकरणरूप श्री चारित्राय नमः ३७ ,, ग्लानमुने बैंयावच्चकरणरूप श्री चारित्रीय नमः ३८ ,, स्थविरस्य वैयावच्च करणरूप श्री चारित्राय नमः ३९ , समनोजकसामाचारिकारकस्य वैयावच्चकरणर प श्री चारित्राय नमः ४० , श्रमणसंघस्य वयावच्चाकरणरूपं श्री चारित्राय नमः ४१ ,, चांद्रादिकुलम्य वैयावच्च करणरूप श्री चारित्राय नमः ४२ ,, कोटिकादिगणभ्य वैयावच्चकरणरूप श्रीचारित्राय नमः ४३ स्त्रीपशुपंड करहितसंतिवासि शुद्धब्रह्मवतयुक्ताय श्रीचा रित्राय नमः ४४ स्त्रीसहसरागवातीलापर्जकाय श्री ब्रह्मवतयुक्ताय श्रीची रित्राय नमः ४५ स्त्रीआसनवजाय श्रीब्रह्मवतयुक्ताय श्री चारित्राय नमः ४६ स्त्रोसरागअंगोपांगनिरीक्षणवर्जकाय श्री ब्रह्मवतयुक्ताय श्री चारित्राय नमः ४७ कुड्यांतरितस्त्रीपुरुषक्रीडास्थानवर्जकाय श्री ब्रह्मव्रत युक्ताय श्री चारित्राय नमः .४८ गृहस्थाश्रमे स्त्रीसंगक्रीड़ाविलासस्मरणवजकाय मा ब्रह्म व्रतयुक्ताय श्री चारित्राय नमः :: Fa ब्रह्मव्रतयक्त Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३०) ४९ सरस आहारवर्ज काय श्री ब्रह्मव्रतयुक्ताय श्री चारित्राय नमः ५० अतिमात्राहारवर्जकाय श्री ब्रह्मव्रतयुक्ताय श्री चारित्राय ५१ विभूषणादिशरीर शोभावजंकाय श्री ब्रह्मव्रतयुक्ताय श्री चारित्राय नमः ५२ श्री सम्यग् ज्ञानगुणयुक्ताय श्रीचारित्राय नमः ५३,, सम्यग् दर्शनसहिताय श्री चारित्राय नमः ५४,, सम्यक् चारित्रगुणयुक्ताय श्री चारित्राय नमः ५५,, अणसणतपोयुक्ताय श्री चारित्राय नमः ५६,, उणोदरींतपोयुक्ताय श्री चारित्राय नमः ५७,, वृत्तिसंक्षेप अभिग्रहधारकतपोयुक्ताय श्री चारित्राय नमः ५८,, रसत्यागरूपतपोयुक्ताय श्री चारित्राय नमः ५९,, लोचादिकायक्लेश सहनरूप तपोयुक्ताय श्रीचारित्राय नमः नमः ६० " संलीनता इन्द्रियवश्यकारकाय श्रीचारित्राय नमः ६१,, प्रायश्रित्तग्रहणरूप अभ्यंतरतपोयुक्ताय श्री चारित्राय नमः ६२, विनयकरणरूप अभ्यंतर तपोयुक्ताय श्री चारित्राय नमः ६३,, वैयावच्चाकरणरूप अभ्यंतरतपोयुक्ताय श्रीचारित्र. य नमः Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३१) ६४,, स्वाध्यायकरणरूप अभ्यंतर तपोयुक्ताय श्री चारित्राय नमः ६५,, शुभध्यानकरणरूप अभ्यंतर तपोयुक्ताय श्रीचारित्राय नमः ६६,, कायोत्सर्ग करणरूप अभ्यंतरतपोयुक्ताय श्रीचारित्राय नमः ६७ क्रोधजयकराय श्री चारित्राय नमः ६८, मानजयकराय श्री चारित्राय नमः ६९ ७० 11 मायाजयकराय श्री चारित्राय नमः लोभजयकराय श्री चारित्राय नमः 11 आ पदनु ध्यान उज्ज्वल वर्णे करवु आ पदना आराध थी वरुणदेव तीर्थङ्कर थया छे. [थ द्वादश ब्रह्मव्रतधारी पद आराधन विधि जनप्रतिमा जिनमंदिरां, कंचननां करे जेह. तथ बहु फल लहे; नमो नमो शिवल सुदेह. आ पदनी २० नवकारवाली ॐ नमो बंभवयधारिणं अ दवडे गणवी. आ पदना धाराधन माटे काउस्सग्ग १८ लोगसनो करवो. खमासमण १८ नीचे प्रमाणे बोलीने आपवा, मनमा औदा रिकविषय असेवनरूप श्रीब्रह्मचारिभ्यो नमः मनसा औदारिकविषय असेवानरूप श्रीब्रह्मचारिभ्यो नमः Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३ मनसा औदारिकविषम अननुमोदनरूप-श्रीबाह्मचारिभ्योममः ४ वचसा औदारिकविषय असेवनरूप श्री ह व्रतधारकेभ्यो नमः ५ वचसा औदारिकविषय असेवावनरूप श्रीब्रह्मवंतधार के. भ्यो नमः ६ वचसा औदारिकविषय अननुमोदनरूप श्रीब्रह्मव्रतधार केभ्यो नमः ७ लायेन औदारिकविषय असेवनरूप श्रीब्रह्मचर्यधारकेभ्यो नम ८ कायेन औदारिकविषय असेवावनरूप श्रीब्रह्मचर्यधारकेभ्योनम ९ कायेनऔदारिकविषय अननुमोदनरूप श्रीब्रह्मचर्यधारकेभ्यो न १० मनसा क्रियविषय असेवनरूप नोब्रह्मचारिभ्यो नमः ११ मनसा क्रियविषय अमेवावनरूप श्री ब्रह्मचारिभ्यो नम १२ मनसा क्रियविषय अननुमोदनरूप श्रीब्रह्मचारिभ्यो नम १३ वचसा क्रियविषय असेवनरूप श्रीब्रह्मव्रतधारकेभ्यो न १४ वचसा क्रियविषय असेवावनरुप श्रीब्रह्मवतधारकेभ्यो न १५ वचसाक्रियविनाय अननुमोदनरूप श्रीब्रह्मव्रतधारकेभ्यो न १६ कायेन क्रियविषय असेवनरूप. श्रीब्रह्मचर्यधराय नमः १७.कायेन क्रियविषय असेबाक्नरूप श्रीब्रह्मचर्यधराय नम १८ कामेन क्रियविषय. अननुमोदनरूप श्रीब्रह्मचर्य धराय नम आ पदना आराधनथी चंद्रवर्माराजा तीर्थङ्करपदने पम्या छ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ अयादश क्रियापद आराधन विधि आत्मबोध विशु जे क्रिया, ते तो बालक चाल. तत्त्वारथथी धारी नमो क्रिया सुविशाल. ___ आ पदनी नवकारवाली २० ॐ नमो किरियाणं मे पदद हे गणवी. आ पदना आराधन माटे काउस्सग्ग २५ लोगस्सनो करवो. खमासमण २५ नीचे प्रमाणेना शब्दो बोलीने आपकां. १ अशुद्ध कायिकक्रियाप्रवर्तनरहिताय श्रीक्रियागुणवते नमः २ आधिकरणकक्रियाप्रवतनरहिताय श्रीक्रियागुणवते नमः ३ पारितानिकक्रियाप्रवर्तनरहिताय श्रीक्रियागुणवते नमः ४ प्राणातिपातिकक्रियाप्रवर्तनरहिताय श्रीक्रियागुणवते नमः ६ आरंभिकक्रियाप्रवर्तनरहिताय श्रीक्रियागुणवते नमः ६ पारिग्रहिकक्रियाप्रवर्तनरहिताय श्रीक्रियागुणवते नमः ७ मायाप्रत्यायिकक्रियाप्रवर्तनरहिताय श्रीक्रियागुणवते नमः ८ मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकक्रियाप्रवर्तनरहिताय श्रीक्रियागुणवते नमः ९ अप्रप्याख्यानक्रियाप्रवर्तनरहिताय श्रीक्रियागुणवते नमः १० दृष्टिजीक्रियाप्रवर्तनरहिताय श्रीक्रियागुणवते नमः Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४) ११ स्पृष्टिज़ीक्रियाप्रवर्तनरहिताय श्रीक्रियागुणवते नमः १२ प्रातीत्यकक्रियाप्रवर्तनरहिताय श्रीक्रियागुणवते नमः १३ सामंतोपनिपातिकक्रियाप्रवर्तनरहिताय श्रीक्रियागुणवते नमः १४ नैसृष्टिकक्रियाप्रवर्तनरहिताय श्रीक्रियागुणवते नमः १५ स्वाहस्तिकक्रियाप्रवर्तनरहिताय श्रीक्रियागुणवते नमः १६ आनयनक्रियाप्रवर्तनरहिताय श्रीक्रियागुणवते नमः १७ विदारणिकक्रियाप्रवर्तनरहिताय श्रीक्रियागुणवते नमः १८ अनाभोगप्रत्ययिकक्रियाप्रवर्तनरहिताय श्रीक्रियागुणवते नमः १९ अनवकांक्षाप्रत्ययिकक्रियाप्रवर्तनरहिताय श्रीक्रियागणवते नमः २० आज्ञापनप्रत्ययिकक्रियाप्रवर्तनरहिताय श्रीक्रियागुणवते नमः २१ प्रायोगिकक्रियाप्रवर्तनरहिताय श्रीक्रियागुणवते नमः २२ सामुदानिकक्रियाप्रवर्तनरहिताय श्रीक्रियागुणवते नमः २३ प्रेमप्रत्ययिक़क्रियाप्रवर्तनरहिताय श्रीक्रियागणवते नमः २४ द्वषप्रत्यायिकक्रियाप्रवर्तनरहिताय श्रीक्रियागुणवते नमः २५ इरियापथिकक्रियाप्रवर्तनशुद्धाय श्रीमहामुनये नमः ___आ पदनुं आराधन करवाथी हरिवाहन राजा तीर्थकर पद पाम्या छे. Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३५) अथ चतुर्दश तपपद आराधन विधि. म खपावे चीकरणा, भाव मंगल तप जाण. वास लब्धि उपजे: जय जय तप गुराखारा आ पदनी २० नवकारवाली ॐ नमो तवस्स पदवडे णवी. आ पदना आराधननो काउस्सग्ग १२ लोगस्सनो करवो । पदना खमासमण १२ नीचे प्रमाणे बोलीने आपवा. श्री अणसणाभिषतपोयुक्ताय श्रीबाह्यतपोगुणाय नमः , ऊनोदरीतपोयुक्ताय श्रीबाह्यतपोगणाय नमः ,, वृत्तिसंक्षेपअनेकविधअभिग्रहधराय श्रीबाह्यतपोगुणाय नमः ,, रसत्यागरूपतपोयुक्ताय श्रीबाह्यतपोगुणाय नमः , कायकलेशलोचादिकष्ट सहकाय श्रीबाह्यतपोगुणाय नमः , संगीनताशरीरसंकोचकाय श्रीबाह्यतपोगुणाय नमः , प्रायश्रित्तग्राहकाय श्रो अभ्यंतरतपोगुणाय नमः ,, विनयगुणयुक्ताय श्रीअभ्यंतरतपोगुणाय नमः ,, वैयावचगणयुक्ताय श्रीअभ्यंतरतपोगुणाय नमः , सज्झायध्यानयुक्ताय श्रीअभ्यंतरतपोगुणाय नमः ,, आत्मध्यानरूप श्रीअभ्यंतरतपोगुणाय नमः ,, काउस्सग्गरूप श्रीअभ्यंतरतपोगुणाय नमः आ पदनुं ध्यान उज्ज्वल वर्णे करवं आ पदन आराधन स्वाथी कनककेतु राजा तीर्थकर थया छे. Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ पंचदश गोयम पद आराधन विधि छठ्ठ छ? तप करे पारगु, चउनारा गुराधाम असम शुमपात्रकोनहीं, नमो नमो ग़ोयमस्वाम, ___ आ पदनी २० नवकारवाली ॐ नमो गोयमस्स अ पदवडे गणवी. आ पदना आराधननो काउस्सग्ग ११ लोगस्सनो करवो आ पदना खमासमण १२ नीचे प्रमाणे बोलीने आपवा. १ ॐ हीं श्री गौतम गणधराय नमः २ ॐ ही, अग्निभूति गणधराय नमः ३ ॐ ही, वायुभूति गणधराय नमः ४ ॐ ही, व्यक्तस्वामि गणधराय नमः हो , सुधर्मरवामि गणधराय नमः ६ ॐ हो , मंडितस्वामि गणधराय नमः ७ ॐ हीं ,, मौर्यपुत्रस्वामि गणधराय नमः ॐ हो ,, अकंपितस्वामि गणधराय नमः ९ ॐ ही , अचलभ्रातृस्वामि गणधराय नमः १० ॐ ही , मेतार्यस्वामि गणधराय नमः ११ ॐ ही ,, प्रभामस्वामि गणधराय नमः १२ ॐ हो , चतुविशति तीर्थकरणां चतुर्दशशतद्विपंचाशा गणधरेभ्यो नमः । आ पदनुं आराधन करवायी हरिवाहन राजा तीर्थकर पदवी पा Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ षोडश जिनपद आराधन विवि दोष अढारे क्षय ग़याः उपना गुण जस अंग. वैयावच्च करीए मुदा; नमो नमो जिनपद संग. आ पदनी २० नवकारवाली ॐ नमः श्री विद्यमान जिनेश्रराय नमः अपदवडे गणवी. काउस्सरग २० लोगस्सनो करवो. खमासमण २० नीचे प्रमाणे बोलीने आपवा. १ श्री सीमंधरजिनेश्वराय नमः २ ,, युगमंधरजिने. राय नमः .३ ,, बाहुजिनेश्वराय नमः ४ ,, सुबाहुजिनेश्रराय नमः ५ , सुजातजिनेश्वराय नमः ६, स्वयंप्रभजिनेश्वराय नमः ७ , ऋषभाननजिनेश्वराय नमः ८ ,, अनंतवीर्यजिनेश्वराय नमः ९ , सुरप्रभजिनेश्वराय नमः १० , विशालजिनेश्रराय नमः ११ , वज्नधरजिनेश्वराय नमः १२ ,, चंद्राननजिनेशराय नमः १३ , चंद्रवाहुजिनेशराय नमः Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३८) १४ श्री भुजगा जनश्चराय नमः १५ , ईश्वरजिनेश्वराय नमः १६ , नेमिप्रभजिनेश्रराय नमः १७ , वीरसेनजिनेश्रराय नमः १८ , महामजिनेश्रराय नमः १९ , देवयशाजिनेचराय नमः २० , अजितवीर्यजिनेशराय नमः आ पदना आराधनथी जोमूतकेतु राजा तीर्थकर पद पामेल छ अथ सप्तदश संयमपद आराधन विधि. शुद्धातम गुणमें रमे, तजी इन्द्रिय आशंस, थिर समाधि संतोषमा, जय जय संयम वंश। ___ आ पदनी २० नवकारवाली ॐ नमः श्रीसंयमस्स अ पदवडे गणवी, आ पदना आराधननो काउस्सग्ग १७ लोगस्सनो करवो. आ पदना खमासमण १७ नीचे प्रमाणे बोलीने आपवा. १ सर्वतः प्राणातिपातविरताय श्रीसंयमधराय नमः २ सर्वतो मृषावादविरताय श्रीसंयमधराय नमः ३ सर्वतः अदत्तादानविरताय श्रीसंपमधराय नमः ___ Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३९) * सर्वतः मैथुनविरताय श्रीसंयमधराय नमः ५ सर्वतः परिग्रहविरताय श्रीसंयमधराय नमः ६ सर्वतः रात्रिभोजन विरमणव्रतधराय श्रीसंयमधराय नमः ७ इरियासमितियुक्ताय श्रीसंयमधराय नमः ८ भाषासमितियुक्ताय श्रीसंयमधराय नमः ९ ओषणासमितियुक्ताय श्रीसंयमधराय नमः • आदान भंडाम त्तनिक्खेवणासमितियुक्ताय श्रीसंयमधराय नमः १ पारिष्ठापनिकासमितियुक्ताय श्रीसंयमधराय नमः २ मनोगुप्तियुक्ताय श्रीसंयमधराय नमः ३ वचनगुप्तियुक्ताय श्री संयमधराय नमः ४ कायगुप्तियुक्ताय श्रीसंयमधराय नमः ५ मनोदंडरहिताय श्रीसंयमधराय नमः ६ बचन दंडरहिताय श्रीसंयमधराय नमः ७ कायदंडरहिताय श्रीसंयमधराय नमः आ पदनुं आराधन करवाथी पुरंदर राजा तीर्थकर थया छे. Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४०) अष्टादश अभिनवज्ञानपद आराधन वि ज्ञानवृक्ष सेनो भविक, चारित्र समकित मूल अजर अमरपद फल लहो ज़िनवरदवी फूल आ पदवी २० नवकारवाली ॐ नमो अभिनवनाणस्र पदवडे गणवी, आ पदना आराधननो काउस्सग्ग ५ अथवा ५ लोगस्सनो करवो. आ पदना खमासमण ५१ नीचे प्रणा बोलीने आपवा. नमः नम नमः नमः » تم नमः नमः م १ श्री आचारांगसूत्र श्रुतज्ञानाय २ ॥ सूअगडांगसूत्र श्रुतज्ञानाय ३” स्थानांगसूत्र श्रुतज्ञानाय , समवायांगसूत्र श्रुतज्ञानाय , भगवतीसूत्र श्रुतज्ञानाय , ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र "मरागसूत्र श्रुतज्ञानाय , उपासकदशांगसूत्र श्रुतज्ञानाय , अंतगडदशांगसूत्र श्रुतज्ञानाय , अनुत्तरोववाइअंगसूत्र श्रुतज्ञानाय , प्रश्रव्याकरणांगसूत्र श्रुतज्ञानाय , विपाकांगसूत्र श्रुतज्ञानाय १२ , उववाइउपांगसूत्र श्रुतज्ञानाय م नमः नमः م م नमः नमः नमः ه مه Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३ श्री रायवसेणीउपांगसूत्र श्रुतज्ञानाय नमः जीवाभिगमउपांगसूत्र श्रुतज्ञानाय नमः १४ " श्रुतज्ञानाय नमः १५ ” पनवणाउपांगसूत्र १६ " १७, १८ " १९ 13 11 11 २० पुष्कियाउपांगसूत्र श्रुतज्ञानाय नमः २१ पुष्कचू लिया उपांगसूत्र श्रुतज्ञानाय नमः कप्पिया उपांगसूत्र श्रुतज्ञानाय नमः २३, वह्निदसाउपांगसूत्र श्रुतज्ञानाय नमः २२ " २४ चउसरणपयन्नासूत्र श्रुतज्ञानाय नमः २५,” आउरपञ्चक्खाणपयन्नासूत्र श्रुतज्ञानाय नमः २६ महापञ्चक्खाणपयन्नासूत्र श्रुतज्ञानाय नमः भत्तपरिज्ञापयन्नासूत्र श्रुतज्ञानाय नमः तंदुलवियालिपयन्नासूत्र श्रुतज्ञानाय नमः चंदाविजयपयन्नासूत्र श्रुतज्ञानाय नमः 11 11 २७,” २८ २९ 33 11 (४१) जंबुद्दीवपन्नत्तिउपांगसूत्र श्रुतज्ञानाय नमः चंदपन्नत्तिउपांगसूत्र श्रुतज्ञानाय नमः 13 सूरपन्नत्तिउपांगसूत्र श्रुतज्ञानाय नमः निरियावलिउपांगसूत्र श्रुतज्ञानाय नमः ३० गणिविज्जापपन्नासूत्र श्रुतज्ञानाय नमः ३१, मरणसमाहिपयन्नासूत्र श्रुतज्ञानाय नमः ३२," संवारापनासूत्र श्रुतज्ञानाय नयः ३३ देवेन्द्रस्तवपयन्नासूत्र श्रुतज्ञानाय नमः Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ ३४ श्री दावैकालिकमूलसूत्र श्रुतज्ञानाय नमः ३५ ,, आवश्यकमूलसूत्र श्रुतज्ञानाय नमः ३६ , पिडनियुक्तिमूलसूत्र श्रुतज्ञानाय नमः ३७ , उत्तराध्ययनमूलसूत्र श्रुतज्ञानाय नमः ३८ , निशीथछेदसूत्र श्रुतज्ञानाय नमः ३९ , बृहत्कल्पछेदसूत्र श्रुतज्ञानाय नमः ४० ,, व्यवहारछेदसूत्र श्रुतज्ञानाय नमः ४१ पंचकल्पछेदसूत्र श्रुतज्ञानाय नमः ४२ ,, जोतकल्पछेदसूत्र श्रुतज्ञानाय नमः ४३ ,, महानिशीथछेदसूत्र श्रुतज्ञानाय नमः ४४ ,, नंदीसूत्र श्रुतज्ञानाय नमः ४५ , अनुयोगद्वारसूत्र श्रुतज्ञानाय नमः ४६ स्यादस्तिभंगप्ररूपकाय स्याद्वादश्रतज्ञानाय नमः ४७ स्याइनास्तिभंगप्ररूपकाय स्याद्वादश्रतज्ञानाय नमः ४८ स्यादस्तिनास्तिभंगप्ररूपकाय स्याद्वादश्रुतज्ञानाय नमः ४९ स्यादस्तिअवक्तव्यभंगप्ररूपकाय स्याद्वादश्रुतज्ञानाय नमः ५० स्यानास्तिअवक्तव्यभंगप्ररूपकाय स्याद्वादश्रुतज्ञानाय नमः ५१ स्यादस्तिनास्तिअवक्तव्यभंगप्ररूपकाय स्याद्वादश्रुतज्ञानाय नमः आ पदना आराधनथी सागरचंद तीर्थंकर पद पामेल छ आ पदनी महत्त्वतासूचक नीचे जणावेल पांच गाथाओ गुरुमुखती सांभलीने तेनो अर्थ तेनी नीचे लख्यो छ विवारवो. Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४३ ) सूत्रस्यार्थोभयस्याप्य - पूर्वस्थापि प्रयत्नतः अन्वहं यदुपादानं स्थानमष्टादशं हि तत् ॥ १ ॥ नाणेन सव्वभावा, युज्झति सुहुमबायरा लोओ ॥ तुम्हा नाणकुसलेग, सिक्खिअव्वं पयत्तेण ॥ २ ॥ अपूर्वज्ञानग्रहणं, महती कर्मनिर्जरा ॥ सम्यग्दर्शननंत्यात्, कृत्वा तत्त्वप्रबोधनं ॥ ३ ॥ छठमदसमवालसेहि, अबहुसुअस्स जा सोही ॥ इत्तो अ अनंतगुणा, सोही जिमियस्स नाणिस्स || ४ || अपूर्वज्ञानग्रहणात्तीर्थकृत्पदमुत्तमं ॥ लभते भावनायोगे, प्राणी सागरचंद्रवत् ॥ ५ ॥ अर्थ - सूत्रनुं, अर्थनुं अने ते बनेनुं पण जे अपूर्वनुं प्रयत्न बडे निरंतर ग्रहण कर ते अढारमुं अभिनव ज्ञानग्रहण पद छे १. ज्ञानवडें लोकमां रहेला सूक्ष्म बादर सर्व भाव जाणी शकाय छे. तेथी ज्ञानकुशल अवा अनुष्ये अवश्य प्रयत्नवडे धुं नवं ज्ञान ग्रहण करवुं २. अपूर्व ज्ञान ग्रहण करवथी मोटी कर्मनी निर्जरा थाय छे वली सम्यग्दर्शननुं निर्मलपण थवाथी तत्त्वनो प्रबोध पण थाय छे . ३ छठ्ठ अट्ठम दशम अने दुवालस विगेरे तप करवायी अवहुश्रुतनी जेटली आत्मशुद्धि थाय छे, ते करतां दररोज जमनोरा ज्ञानीनी अनंतगुणी शुद्धि ताना बलथी थाय छे. ४ अपूर्व ज्ञान ग्रहण करवथी शुभ भावनाना योगवडे प्राणी सागरचंद्रनी जेम तीर्थकर पदने प्राप्त कर छे. ५ Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४४) अकोनविंशतितम श्रुतपद आराधन विधि . वक्ता श्रोता योगर्थी, श्रुत अनुभव रस पीन, ध्याता ध्येयनी कता, जय जय श्रुतसुखलीनं. आपदनी २० नवकार वाली ॐ नमो सुअस्स अ पदवडे नजवी. आ पदना आराधन माटे २० लोगस्सनो काउस्सग्ग करवो. आ पदना खमासमण २० नीचे प्रमाणे बोलीने आपवा. १ श्री पर्याय तज्ञानाय नमः २ ३ ४ ६ ५ 11 ९ १० ११ १२ 31 v " 33 ८ " संघातसमासश्रुतज्ञानाय नमः " प्रतिपत्तिश्र तज्ञानाय नमः प्रतिपत्तिस सामश्र तज्ञानाय नमः अनुयोगश्रुतज्ञानाय नमः अनुयोगसमासश्रुतज्ञानाय नमः ,” पदश्रुतज्ञानाय नमः " पदसमासश्रुतज्ञानाय नमः ७ संघातश्रुतज्ञानाय नमः 11 पर्यायसमासश्र तज्ञानाय नमः अक्षर तज्ञानाय नमः अक्षरसमासश्रुतज्ञानाय नमः "1 11 9 ७ Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४५) ११३ श्री पाहुडपाहुड श्रुतज्ञानाय नमः १४ ,, पाहुडपाहुडलमालश्रुतज्ञानाय नमः १५ , पाहुडश्रुततानाय नमः १६ , पाहुड समासश्रुतज्ञानाय नमः १७ , वस्तुश्रुतज्ञानाय नमः १८ , वस्तुसमासश्रुतज्ञानाय नमः १९ ॥ पुर्वश्रुतज्ञानाय नमः २० , पूर्वसमासश्रुतज्ञानाय नमः आ पदनुं शुभ भाववडे आराधन करवाथी रत्नचूड तीर्थकर पद पाम्या छे. १0 वीशमा तीर्थपदना आराधन नी वीधि. तीर्थयात्रा प्रभाव छ. शासन उन्नति काज. रमानंद विलासता. जय जय तीथे जहाज़. आ पदनी २० नवकारवाली ॐ नमो तित्थस्स मे पदबडे गगवी. आ पदनी आरोधना माटे काउस्सग्ग ३८ लोगस्सनो फरवो. खमासमण ३८ नीचे प्रमाणे बोलीने आपवा. १ सर्वया प्राणातिपातविरतिवत् श्रीसाधतीर्थगुणाय नमः २ सर्वथा मृपावादविरमणवतू श्रीसाधुतीर्थगुणाय नमः ३ सर्वथा अदत्तादानविरमणवत् श्रीसाधुतीर्थगुणाय नमः ४ सर्वथा मैथुनत्यागवत् श्रीसाधुतीर्थगुणाय नमः ५ सर्वथा परिग्रहत्यागवत् श्रीसाधतीर्थगुणाय नमः Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४६) ६ समस्त पृथ्वीकायजीवरक्षकाय श्रीसाधुतीर्थगुणाय नमः ७ समस्त अपकायजीवरक्षकाय श्रोसाधुतीर्थंगुणाय नमः ८ समस्त तेजस्कायजीवरक्षकाय श्रीसाधतीर्थगुणाय नमः ९ समस्त वायुकायजीवरक्षकाय श्रीसाधुतीर्थगुणाय नमः १० समस्त वनस्पतिजीवरक्षकाय श्रीसाधतीर्थगुणाय नमः ११ समस्त त्रसकायजीवरक्षकाय श्रीसाधुतीर्थगुणाय नमः १२ सर्वथा क्रोधदोषरहिताय श्रीसाधतीर्थगुणाय नमः १३ सर्वथा मानदोषरहिताय श्रीसाधतीर्थगुणाय नमः १४ सर्वथा मायादोषरहितायाश्रीसाधतीर्थगुणाय नमः १५ सर्वथा लोभदोषरहिताय श्रीसाधतीर्थ गुणाय नमः १६ सर्वथा रागांशदोषरहिताय श्रीसाधतीर्थगुणाय नमः १७ सर्वथा द्वेषांशदोषरहिताय श्रीसाधतीर्थगुणाय नमः १८ सर्वसम्यक्त्वगुणजननी लज्जागणयुक्ताय देशविरतिरूप श्री तीर्थगणाय नमः १९ दयागुणयुक्ताय देशविरतिरूप भीतीर्थगुणाय नमः २० कुमतिकदाग्रहकुयुक्तिपक्षपातरहिताय मध्यस्थगुणयुक्ताय श्री देशविरतिरूप श्रीतीर्थगणाय नमः २१ सर्वमनवचन कार्यः क्रूरतादोषरहिताय सौम्यगणयुक्ताय देशविरतिरूप श्रीतीर्थगुणाय नमः २२ विद्वान सर्वसम्यगगणरागरूप देशविरतिरूप श्री तीर्थ ग्रणाय नमः ___ Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३ क्षुद्रतातुच्छतादोषरहित अतिगंभीर उदारतागुणमाहित स्वपरभेदरहित परजनआदिसर्वजनोपकारि श्रीदेशविरतिरूप श्रीतीर्थगुणाय नमः २४ पूर्वभवकृतदयाधर्मफलेन सर्वजनदर्शनीय सर्वागउपांगसं पूर्णाग शुद्धसंघर्याण धर्मप्रभावक देशविरति श्रीतीर्थग णाय नमः २५ पापकर्मजित जगन्मित्र सुखोपासनीय सौम्यप्रकृति श्री देश विरतिरूप श्रीतीर्थगुणाय नमः २६ द्रव्यक्षेत्रकाभानैः लोकविरुद्ध धर्मविरुद्धवर्जनरूप श्रीदेश विरतिरूप श्रीतीर्थगुणाय नमः २७ मलिनक्लिष्टक्रूरतादोषरहित सदयमोज्ञरूप श्रीदेशविर तिरूप श्रोतीर्थगणाय नमः २८ इहपरलोकापायदायक राग, द्वेष, जन्म, जरा, मरण, दुर्गतिपातनरूप अड़सठ लौकिक तीर्थवर्जक श्रीदेशविरतिरूप श्रीतीर्णगुणाय नमः २९ सर्वजनावंचक विश्वसनीय प्रशंसनीय भानैकसनजनघर्मो द्यमकारि देशविरति श्रीतीर्थगुणाय नमः ३० स्वकार्यगौ गगणक परकार्यमुख्यकर साधक सर्वजनउपा देयवचनरूप दाक्षिण्यवद् देशविरति श्रीतीर्थगुणाय नमः ३१ यथातथ्यधर्मज्ञापक परविषयअद्वषप्रकृति अनर्थवर्जक सौ भ्यरूपदृष्टिमध्यस्थ देशविरति श्रीतीर्थगुणाय नमः ____ Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४८) ३२ श्री धमतत्त्वज्ञापक शुभकथाकथक विवेकगुणोद्दीपक अशुभ कथावर्जक देशविरत श्रीतीर्थगुणाय नमः ३३ श्री आप्तधर्मशील परिवारकुटुंबअनुकूल विनरहित धर्म साधने साहय्यकारि सुगक्षि देशविरति श्रीतीर्थगुणाय नमः ३४ अतीतानागवर्तमानहेतु कारणकार्यशि सर्वथा स्वाहित कार्यकरणरूप दीर्घदर्शि देशविरति श्रीतीर्थगुणाय नमः ३५ सर्वपदार्थगुणदोषज्ञायक सुसंगि विशेषज्ञ देशविरति श्रीतीर्थगुणाय नमः ३६ वृद्धपरंपराज्ञायक सुसंगतिरूप वृद्धानुगामि देशविरति श्रीतीर्थगुणाय नमः ३७ सर्वगणमूल रत्नत्रयो तत्त्वत्रयशुद्धिप्रापक विनयरूप देश विरति श्रातीर्थगुणाय नमः ३८ श्रीधर्माचास्य बहुमानकर्ता स्वल्पमपि उपकारकारिन्यो आवस्मारक परापकारकरणतत्पर कृतज्ञ सदापरहितोपदेशकरण शील श्री देशविरति श्रीतीर्थगणाय नमः आ पदनु आराधन करवाथी मेरूप्रभ तीर्थकर थया छे. वीतमा पदनो अराधना करीने जैन तीर्थोनी यात्रा, श्रीसंघपूजा, स्वामीवात्सल्य, तीर्थोद्धार. रथयात्रा, दीनदुःस्थित अनाथादि सुखीकरण विगेरे कार्यों करीने जैन शसननी उन्नति करवी. जैनधर्मने दीपाववो. Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४९) श्री वींशस्थानक तप संबंधी उजमसानी विग़त शक्ति होय तो २० नवा देरासर बंधाववां शक्ति होय तो २० जीर्णोद्धार करावा. शक्तिवाने नीचे जणावेली दरेक वस्तु २०-२० मकवी. उजमणामां मूकवानी वस्तुओ. (देरासरने लगता उपगरणो.) थाल, रकेबी, वॉटकी, सुखंडना ककडा, केशर-बरामना पडीकां, ओरशीया, जिनबिव नवा. वीशस्थानकना गटा, सिद्धचक्रना गटा, मौरपीछौ, थाली, दीवी फानस, घूपधाणा, दंडासणकलश, कलशा, प्याला, सिंहासन, बाजोठना त्रिक, घंट. झालर, घंटेडी, त्रांवाकडी , आरती मंगलदीवी, पुंठीआ, चंदरवां तोरण घीतिआं, उत्तरासण, मुखकोष, अंगलुहणां, पाटलुहणां, ज़डेंलांतिलक, मुकुट आभरणो, बालाकुंची, नवकारवाली, आचमनी, अष्टमंगलिक, सोनाना वरगनी अने रूपाना वरगनी थोकडीओ, वासकुंपी, चामर, छत्रना त्रिको ध्वजा, हांडा, अगर वैसीनां पडीका अगरनों पडीकां पाटला बाजोठी, विगेरे. ज्ञानना उपकरणो. शक्ति होय तो धर्मशालाओ अथवा उपाश्रयो २० कराववा स्थापनाचार्य, ठवणी, सापड़ा, सापड़ो. बाजोंठी, पुस्तक, पाठां, चावखी, कवली, चंदरवा, पुंठोआ, तोरण, रुमाल, Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५०) चाकू, कातर, लेखण, खडीआ, पांच पदनी टोप, नवपदनी टीप, पाटी, पुस्तकना डाबड़ा विगेरे- शक्तिवाने २० ज्ञान भंडार कराववा. __ चारित्रना उपकरणो कटासणां, मुहपत्ति, चरवला, चरवली, चोलपट्टा, कपड़ कामली खभानी, डंडासण, सुपडी, डांडा, झोली, पड़ला पातरा, तरपणी, ठवणी, संथारीआ, नवकारवालोनी डाबर्ड स्थापनाचार्यना डाबढ़ा कंदोरा माटे दोरा विगेरे. अथ वीशस्थानकनु चैत्यवंदन पहेले पदे अरिहंत नमुं, १ बीजे सर्व सिद्ध २ ॥ प्रोजे प्रवचन मन धरो३, आचारज प्रसिद्ध ॥ १ ॥ नमो थेराणं पांचमे५ पाठक गुण छठू६ ॥ नमो लोओ सव्व साहूणं, जे छे गुण गरि ॥ २ ॥ नमो नाणस्स आठमे, दर्शन मन भावो ॥ विनय करो गुणवंतनो, चारित्र पद ११ ध्यावो ॥ ३ । नमो बंभवयधारिणं१२, तेरमे किरियाणं१३ ॥ नमो तवस्स चउदमें १४, गोयम १५ नमो जिणाणं १६ ॥४ चारित्र: ज्ञान १८सुअस्सा ने अ,नमो तित्थस्स २० जाणी । जिन उत्तम. पद पद्मने, नमतां होय सुखखाणी ॥ ५ ॥ अथ वौशस्थानक तपना काउसग़ानु चैत्यनंद Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५१) चोवीश पन्नर पोस्तालीशना, छत्राशनो करिये ।। दश पचवीश सत्तावीशनो, काउस्सग्ग मन धरीये ॥ १ ॥ पंच सड़सठ्ठी दश वली, सित्तेर नव पणवीश ॥ बार अडवीश जोगस्स तणो, काउस्सग्ग थरो गुणीश ॥२॥ वीश सत्तर अकावन्न, द्वादश ने पंच ॥ अणि परे काउस्सग जो करे, तो जाये भव संच ॥ ३ ॥ अनुक्रमें काउस्सग्ग मन धरो' गुणि लेजो वीश ।। वीश स्थानक अम जाणी, संक्षेपथी लेश ॥ ४ ॥ भाव धरी मनमां घणो, जो अंक पद आराधे ॥ जिन उत्तम पद दद्मने, नमी निज कारज साधे ॥ ५ ॥ श्री वींश स्थानकनु स्तवन सदगुरु चरण नमी करीजी, समरी सरस्वती माता, वीश स्थानक तर वरणकुंजी. समकितने अवदात, मन मोहन जिनजी, हवे झाल्यो तुम हाथ, ते नवी छोडं साहिबाजी, विना सिध्ये निज काज. मन०१ पहेले पद अरिहा नमोजी, बीजे सिद्ध अनंत, त्रीजे पवयण मन धरोजी, चोथे सूरि गुणवंत. मन० २ थिविर नमो पद पांवमें जी, पाठक प्रवचन जाण, साधु नमो सवि सातमेजी, आठमे निरमल नाण मन० ३ समकित दरमण मन धरोजो, विनय करो गुणवंत, चारित्रपद अगीयारमेजी, बारमें धरो ब्रावत. मन० ४ Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रियाशुद्धि कोजीओजी, चौदमे तप निरधार; पन्नरमे गौंयम नमोजी, सोलमे जिनवर भाण. मन ५ सत्तरमे संजम भजो ज्ञान लहो गुण खाण ; सूत्र सिद्धांत ओगणीशमेजी, वीशमे तीरथनी जाव. मन०६ चोवीश पंदर बारनोजी, छत्रीस दस पणवीशः मंगवी पण सडसँठतणोजी, दस सित्तर नव पणवीश मन०७ बार अडवीश चोवीस सत्तरजी, इगवन पीस्तालीश पांच, अनुक्रमें काउस्सग्ग जे करेजी, ते पामें शिव वास. मन० ८ खट मासे अम कीजीयेजि, ओली एक सुजाण, पडिकमां दोय टंकनाजी; पडिलहण वे बारः मन० ९ देववंदन त्रण टंकनाजी, देवपूजे त्रिकाल, गुणण गणो मन थिर करीजी, गुरु वंयावच्च सार. मन० १० तपथी सवी संकट टलेंजी तपथी जाये क्लेश ; तपथी मनवांछित फलेजो; दुःख न पामे लेश. मन० ११ शुध्ध मने आराधतांजी; तीर्थकर पद जास; मोहन मुनिना हेमनेजी; द्यो समकित दुण पास. मन० १२ ४ श्री वीश रथानकनु स्तवन हारे मारे प्रणमुं सरस्वती माँग्रे वचन विलास जो, वीशेरे तप स्थानक महिमा गाइशं रे लोल; हारे मारे प्रथम अरिहंत पद लोगस्स चौवीश जो बीजे रे सिद्ध स्थानक पंदर भावशू रे लोल. Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हारे मारे जीजे पवयण गणो लोगस्स पीस्तालोश जो, चोथेरे ओयरियाणं छत्रीशनो सही रे लोल, हारे मारे थेरणं पद पांचमे दश उदार जो. छ? रे उवज्झायाणं जचवीशनो सही रे लोल. ॥२॥ सातमे नमो लोों सव्व साह सतानीश जो, अ ठमे नमो नाणस्स पंच भावशू रे लोल, हारे नवमें दरिसण सडसठ मनने उदार जो, दासे नमो विणयस्य दश वखाणीों रे लोल, ॥ ३ ।। हारे अग्यारमे नमो चारित्तस्स लोगस्स सत्तर जो, बार मे नमो बंभस्स नव गणो सही रे लोल, हारे किरयाणं पद तेरमें वली पचवीश जो, चौदमें नमो तवस्स बार गणो सही रे लोल. हारे पंदर में नमो गोयमस्स अट्टावीश जो, नमो जिणागं चउवीश गणशं सोलभे रे लोल, सत्तरमे नमो चारित्त लोगस्स सित्तेर जो, नाणस्सनो पद गणशं अकावन अढारमें रे लोल. ॥ ५॥ हारे ओगणोशमें नमो सुअस वीश पोस्तालीश जो, वींशमे नमो तित्थस्स वीश प्रभावशं रें लोल, हारें में तपनो महिमा चारशें ऊपर वीश जो, पट मासे अक ओली पूरी कोजियेरे लोल हारें तप करतां बली गणी दोय हजार जो, नवकारवाली वोशे स्थानक भावशं रे लोल, Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५४) ।। ७ ।। हारे प्रभावना संघ स्वामीवच्छल सार जो, उनमणा विधि कीजे विनय लोजीओरे लोल, हारे अ तपनो महिमा कहें श्री वीर जिनराय जो, विस्तारे इस संबंध गोयम स्वामोने रे लोल, होर तप करतां वली तीर्थङ्कर पद होय जो, देव गुरु इम कांति स्तवन सोहामणो रे लोल. अथ वींश स्थानकना तपनी स्तुति ।। ८ ।। पूछे गौतम बोर जिणंदा, समवसरण बेठा सुखकंदा, पूजित अमर सूरिंदा || केम निकाचे पद जिनचंदा, किण विध तप करतां भव फंदर, टाले दुरित दंदा || तब भाखे प्रभुजी गतनिदा । सुण गौतम वसुभूति नंदा, निर्मल तप अरविंदा || वीश थानक तप करत महिंदा, जिम तारक समुदाये चंदा, तिम ओ सवि तप इंदा ।। १ ।। प्रथम पदे अरिहंत नमीजे, बीजे सिद्ध पवयण पद त्रीजे, आचारज थेर ठविजे ।। उपाध्याय ने साधु ग्रहीज, नाम दंसण पद विनय वहीजे अगीयारमे चारित्र लीजे ॥ बंधवयधारोण गणीजे, किरियाण तवस्स करीजे गौयम जिगाणं लहोजे ॥ चारित्र नाणः श्रुत तित्थस्स कीजे, त्रीजे भव तप करत सुणीजे, ओ सवि जिन तप लीजे ॥ २ ॥ आदि नमो पद सघले ठवीश, बार पन्नर बार वली छत्रीश, दंश पणवीश सगवीश || पांच ने सडसठ तेर गणोश, सतर नत्र किरिया पचवीश, बार Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अठ्ठावीश चउ वीश ।। सित्तेर इगवन्न पोस्तालीश, पांच लोगस्स काउस्सग्ग कहींश नोकारवाली वीश ॥ अक अंक पदे उपतास ज वीश, मास खटे अक ओली करीश, इस सिध्धांत जगोश ॥ ३ ॥ शक्ते अकासगं तिविहार, छठ्ठ अठ्ठम मासखमण उदार, पडिकमणां दोय वार ।। इत्यादिक विधि गुरुगम धार, अंक पद आराधन भव पार उजमण विविध प्रकार ।। मातंग यक्ष करे मनोहार, देवी सिद्धाइ शासन रखवाल, संघविधन-अपहार ॥ खिमाविजय जस ऊपर प्यार, शुभ भावियण धर्मे आधार, वीरविजय जयकार ।।४।। ७. श्री वींश स्थानकनी स्तुति. वश स्थानक तप विशमां मोटो; श्री जिनवर कहे आप जी ।। वांधे जिनपद श्रीजा भवमां, करीने स्थानक नापजी थया थशे मवि जिनवर आरिहा, अॅ तपने आराधीजी ।। केवलज्ञान दर्शन सुख पाम्या, सर्वे टाली उपाधिजी ॥१॥ अरिहंत सिद्ध पक्यण सूरि स्थविर वाचक साध नाणजी, दर्शन विनय चरण वंभ किरिया, तप करो गोयम ठाणजी ।। जिनवर चारित्र पंचविध नाण, श्रुत तीर्थ अह नामजी ।। ओ वीश स्थान आराधे ते पामे शिवपद धामजी ।। २ ॥ दोय काल पडिकमण पडिलेहण देवनदब ऋण वारजी ।। नोकारवाली वीश गुणोजे, काउस्सग्ग गुण अनुसारजों ॥चरसो उपवासा करो चित्त चोखे, उजमण करो सारजी। पडिमा ___ Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भरावो संघ भक्ति करो, में विधि शस्त्र मोझारजी ।। ३ ॥ श्रेणिक सत्यकी सुलसा रेवती । देवपाल अवदात जी ॥ स्थानक तप सेवा महिमा थया जगमांहि विख्यातजी । आगमविधि सेवे जे तपिया, धन्य धन्य तस अवतारजी ॥ विघ्न हरे तस शासनदेवी सौभाग्य लक्ष्मी दातारजी ॥ ४ ॥ ८. श्री वीश स्थानकनी सज्झाय. अरिहंत पहले स्थाने गणोओ, बोजे पद सिद्धाणं, त्रीजे प्रवचन आचार्य चोथे, पांचमे पदवी थेराणं रे ॥ १ ॥ भको आं वीश स्थानक तप कीजे. ओली नीश करीजेरे, भ० गुणणं ॲह गणोजेरे भ० जिमी जिनपद पामोजे रे, भ० नरभव लाहो लीजे रे, भ० अ आंकणी. उपाध्याय छठे सन्न साहुणं सातमे आठमे नाण, नव मे दर्शन दशमे निणयस्स, चारित्र अग्यारमे जाण रे, भ० ॥२॥ बारमे ब्रह्मव्रतधारीणं तेरे में किरियाणं, चौंदमें तप पंदरम गोयम, सोलसमें नमो जिणाणं रे, भ० ॥३॥ चारितस्स सत्तरमें जपीओ, अट्ठारस्समें नाणस्स, ओगणीशमे नमो सुयस्स संभारो, गोशमे नमो तित्थस्त रे, भ० ॥४॥ अकासणादि तप देववंदन, गुण दोय हज़ार, सत्यविजय बुधशिष्य सुदर्शन, जपे अह विचार रे, भ० ॥ ५ ॥ (ज्ञाननिमलसूरिकृत) Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५७) ६. श्री वीशस्थानक सज्माय. (सारदबुधदाइ- देशी) अरिहंत प्रथम पदे, लोगस्स चोवीश बार, बीजे पद सिद्धा अडवन पनर विचार, पवयणपदे नव सग, सूरि पद छत्तोश, थिविरे दश वाचके, द्वादश वली पणवीश. ॥१॥ त्रुटक-तिम इगवीस अने सगवीश, साधुपद आराधो; नाण पदे पण दंसणं सतसठि, विनयपदे दश साधो, चरितपदे खट् सतर कहीजे, बंभ पदे नव जाणो, किरिया तेर अणे पणवीसा, बारस तप मुनि आणो, ॥२। गोयम पदे इगदस लोगस दश जिन नाम, चरितपदे सगदस, नाणे पण अभिराम इम वली पण लोगस, श्रुतपदे काउसग कोजे, पण लोगस वीश, तीर्थपदे प्रणमीजे. ॥३॥ त्रुकट तिम कीजे दोय सहस गुणनस्यु, स्थानक आराधीजे, वीश वार इग विधिश करतां, तीथंडर पद लीजे, नाम फेर दीसे बहु ग्रंथे, पण परमारथ अक, उभय टंक आवश्यक जयणा, कोजे धरिये विवेक. ॥४॥ काउसग्गनो विधि जे दाख्यो, तप आराधन हो, शास्त्रमाही ते नवि दीसे तोही परंपरा विगते, चोथे अथवा छ8 स्थानक, करतां लहोजे पार, धीरविमल कवि-सेवक नय कहे, तप शिवसुख दातार. इति श्री वीश स्थानक तपनी विधि: शुभ मुहूर्ते गुरु समोक्षे आ तप विधिपूर्वक शरु करवो. अक ओली छ महिनामां पूर्ण करवी जोइ. न थाय तो ते Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५८ चलती ओली फरीथी शुरु करवी पडे दश वरसमां वीसे ओली पूर्ण करवी जोइ, दरेक ओली २०-२० उपवास छठ्ठ अठ्ठमादि, आयंबिल, कासगु', के नोवोथो पण करी शकाय छे. शक्ति होय तो उपवासादिथि ज करवी जोइ, आ तप (४०० उपवासादि थी)वीस ओलीओ पूर्ण थायपूर्ण थया पछी शक्ति मुजब उजमणु' कर१५ मी ओली 'नमो गोयमस्स' नी छ? तपथी आराधवी जोइ. Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १० 200 ११ १२ १३ १४ १५ १६ १७ १८ १९ २० 11 ॐ नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाणं नमो पवयणस्स "" " नमो आयारयाण " नमो थेराणं " नमो उवज्झायाणं " नमो लोओ सव्वसाहू " नमो नाणस्स नमो दंसणस्स "" " नमो विणयसंपन्नस्स " नमो चारित्तस्स " नमो बंभववधारिणं " नमो किरियाण " नमो तवस्स " नमो गोयमस्त " नमो जिणाण " नमो संजमस्स (५९) वीस पदनुं गुणगु आदि नीवे प्रमाण पदोनां नाम " " " नमो अभिनवनाणस्स TERJIE १२ ३१ २७ ३६ १० २५ २७ ६७ ७० १८ २५ १२ १२ ३१ २७ १२ २० ३६ १० 2 5 2 3 ŵ & 9 २५ २७ ५१ ५१ ६७ ५२ ५२ ५२ ७० १८ २५ १२ ६७ ७० १८ २५ १२ १२ २० १२ ३ १ २७ ३६ १० १७ २५ २७ 1 १२ २० 2 १७ ५१ ५१ नमो सुयल्स २० २० नमो तिथप ३८ १ कोइ कोइ स्थले साथि बगेरेनी संख्यामां फेरफार आवे छे. १७ ५१ २० ३८ ३८ ० २० २० २. २० २० २० २० &&&&&&&&& २० २० २० २० २० २० २० २० २० २० २० Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६.) -: नेदवंदन विध :इच्छामि खमासमणो ! नदिउं जावणिज्जाए निसीहिआए मथएण मंदामि । इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! इरियावहिलं पडिक्कमामि ? इच्छं, इच्छामि पडिक्कमिउं ॥१॥ इरियावहियाए विराहणाए ॥२॥ गमणा गमणे ॥३॥ पाणक्कमणे, वोयक्कमणे, हरियक्कमणे, ओसाउत्तिगपणग-दग-मट्टी-मक्कडा संताणा-संकम ॥ ४ ॥जे मे जीवा विराहिआ ॥५॥ एगिदिया, बेइंदिया, तेइंदिया चरिंदिया, पंचिदिया ॥६॥ अभिया, वत्तिया, लेंसिया संघाइया, संघट्रिया, परियाविया, किलामिया उद्दविय ठाणाओ ठाणं संकामिया, जीवियाओ ववरोविया, तस्स मिरछामि दुक्कडं ॥७॥ तस्स उत्तरी करणणं, पायच्छित्त करणेणं, बिसोही करणेणं विसल्ली करणेणं, पावाणं कम्माणं निग्धायणदाए, ठामि काउ. सग्गं ॥१॥ .. अन्नत्थ ऊपसिएणं, नीससिएणं खासिएणं, छीएणं जंभाइएणं उड्डुएणं बायनिसग्गेणं भमलीए, पित्त मुच्छाए १ सुहुमेह अंगसंत्रालहिं सुहुमेहिं खेलसंजालेहि सुहुमेहि दिट्टिसंचालहि : एवमाइएहि आगारेहि, अभग्गो, अविराहिओ, हुज्ज मे काररसग्गं ३ जान अरिहताण भगवंताणं नमुक्कारेणं न पारेमि, ६ तार कायं ठाणेणं, मोणेणं, अप्पाणं वोसिरामि ॥ Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६१) (एक लोगस्सनो काउस्सग्ग चंदेसु निम्मलयरा सुधी. न आवडे तो चार नवकार.) लोगस्स उज्जोअगरे, धम्म तित्थयरे जिणे ; अरिहंते वित्त इस्सं, चउधोसं पि केवलो ॥१॥ उसभमजिअं च वंदे, संभवमभिगंदणं च सुमइं च; पउमप्पहं सुपासं, जिणं च चंदप्प हं वंदे ॥२॥ सुविहिं च पुप्फदंतं, सीअल सिज्ज स वासुपुज्ज च; विमलमणंतं च जिणं, धम्म संति च वंदामि ॥३॥ कुंथं अरं च · मल्लि, वंदे मुणि सुव्वयं नमि जिणं च वंदामि; रिठ्ठनेमि पास तह वद्धमाणं च ॥४॥ एवं मए अभिथुआ, विहुय र यमला पहीण जरमरणा; चउवीसं पि जिणवरा, तित्थयरा मे पसीयंतु ॥५॥कित्तिय नंदिय माहिया, जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा; आरुग्ग बोहिलाभ, समाहिवरमुत्तमं दितु ॥ ६ ॥ चंदेसु निम्मल बरा, आइच्चेसु अहियं पयासयरा; सागर वर गंभीरा, सिद्धा सिद्धि मम दिसंतु ॥७॥ इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए निसीहिआए, मत्थएण बंदामि। इच्छाकारेण संदिर ह भगवन् ! चैत्यवंदन करुं? इच्छं सकलकुशलवल्ली, पुष्करावर्तमेघो, दुरिततिमिरआनुः, कल्पवृक्षोपमानः, भवजलनिधिपोतः, सर्गसंपत्तिहेतुः स भवतु सतसं वः, श्रेयसे शांतिनाथः श्रेयसे पार्थ नाथ: Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -: डीसस्थान कनु चैत्यवंदन. :पहेले पद अरिहंत नमु, बीजे सर्व सिद्ध ॥ त्रीजे प्रवचन मनधरो, आचारज' प्रसिद्ध । नमो थेराणं५ पांचमे, पाठ ६ गुण १ ॥ नमो लोओ सन्न साहूणं, जे छे गुण गरि? ।। नमो नाणस्स ८ आठमे दर्शन मन भावो ॥ निवय १०करो गुणवंतनो, चारित्र पद ११ध्यावो। नमो बंभवयधारिणं, १२ तेरमे किरियाणं१३ ॥ नमो तवस्स १४चउदमे,गोयम' 'नमो जिणाणं ६ ॥ चारित्र ज्ञान १८सुअस्स'ने में नमो तित्थस्स'जाणी ॥ जिन उत्तम पद पद्मने, नमतां होय सुख खाणी । जंकिंचि नाम तित्थं, सग्गे पायालि मा मुसे लोए; जाई विवाइं, ताइं सव्वाइं वंदामि । नमुत्थुणं अरिहंताणं, भगवंताणं १ आइगराणं, तित्थयराणं सयं संबुद्धाणं २ पुरिसृत्तमाणं, पुरिसवरपुंडरीआणं, पुरिसबर गंध हत्यीणं ३ लोगुत्तमाणं, लोगनाहाणं, लोगहिआणं लोगपईवाण, लोगपज्जोअगराणं ४ अभयदयाणं, चवखुदया, मग्गदयाणं, सरणदयाणं. बोहिदयाणं ५ धन्नदयाणं, धम्मदेसयाणं, धम्मनायगाणं, धम्मसारहीणं, धम्मवरचाउरंतचक्कवहोणं६अप्पडिहय-वरनाणसणधराणं, वि अट्ट छ उमाणं ७जिणानं Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३३ ) याणं, तित्राणं तारयाणं, बुद्धणं बोयाणं, मुत्ताणं मोअगाणं ८ सव्वन्नूण, सादरसीणं, सिव-मयल मरुअ-मणंत मक्खयसव्वा वाह-मपुण वित्त- सिद्धिगइ नामधेयं, ठाणं संपत्तणं, नमो जिण णं जिअभयाण ९ जे अ अइआ सिद्धा, जे अ भविस्सँति जागए काले संपइ अ वट्टमाणा, सच्चे तिविण नंदा न १० जय बोधराय ! जयगुरु ! होउ ममं तुह पभावओ भयवं भवनिओ मग्गा गुसारिया इट्ठफलसिद्धि १ लोग विरुद्वन्द्वाओ, गुरुजण पूत्रा परत्थ करणं च, सुहगुरु जोगो तव्वयण-सेवणा आभवमखंड़ा, इच्छामि खमासमणो दिउं जावणिज्जअ निसीहीआओ मत्थण वदामि. इच्छाकारेण संदिसह भगवन्! चैत्यवदन करु? इच्छं. -: चैत्यवंदन. : 7 चोवीश पन्नर पीस्तालिशनो, छत्रीशनो करिये ॥ दश पचवीश सत्ताबीशनो, काउस्सग्ग मन धरीये ॥ पत्र सडसट्टी दश वली, लित्तेर नव पणवीश || बार अडवीश लोगग्न लगो, काउसग्ग धरोगुणीश || बोस सत्तर अकावन, द्वादश ने पंच ॥ अंगोरे काउस्सग्ग जो करे, तो जाये भव संच ॥ अनुक्रमें काउस्सग्ग मन धरो, गुणि लेजो वीश ॥ वीश स्थानक ओम जाणीओ, संक्षेपथी लेश || Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६४) भाव धरी मनमां घणो, जो एक पद आराधे || जिन उसम पद पद्मने, नमी निज कारज साधे || किचि नान तित्थं सग्गे पायालि माणुसे लोए; जाई ज़िण बिबाई ताई सच्चाई वदामि १ नत्थूणं, अरिहंताणं भनवंताणं १ आइगरानं, तित्यराणं सयं संबुद्धाण पुरिसुत्तमाणं पुरिससीहाणं, पुरिसवरपुंडरीआणं, पुरिसवर गंध दत्यीण ३ लोगुत्तमण, लोगनाहाणं, लोगहिआणं, लोगपईवाण, लोगवज्जोअगराणं ४ अभयदयानं चक्खुदयाणं, मग्गदयाणं, सरणदयादयाणं, बोहिदयाण, घामदयाण, धम्मनायगाणं, धम्मसारहीण, धम्मवरचाउरंतचक्कट्टी, ६ अप्पड़िहय-वरनागदंसण-धराणं, विअट्टछउमाणं ७ जिणाण जावयाण, तिन्नाण, तारयाण, बुद्धाणं बोहयाण, नुद्याण, मोअगाण ८ सव्वनृणं सव्वदरिसीण, सिव-मयल मरुअ मर्णत - मक्ख मव्वाबाह - मदुरावित्ति सिद्धि गई नामधेयं ठाणं संपत्ताणं, नमो जिणाणं जिअभयाण, ९ जे अ अइआ सिद्धा, जे अ भविस्संति नागए काले, संपइ अबट्टमाणा, सव्वे तिविर्हेण वंदामि । 1 ( पछी उभा थईने ) अरिहंत चेइयाणं करेमि को उस्सग्ग, गंदणवत्तियाओं पूअणषत्तियाओ सक्कारवत्तियाओ सम्माणवत्तियाओं, बोहिलाभवत्तियाओ, निस्वसग्गवत्तियाओ, सद्धाओ मेंहाओ, धिइओ, धारणाओं अणुप्पेहाओ वड्ढमाणीओ ठामि काउस्त Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६५) अन्नत्थ ऊससिओणं नोस सिण खासिण छोओण जंभाइण उडडुअण वायनिसगोणं भमलीओ पित्तमुच्छाओ सुमेहि अन्य संवालेहि सुहमेहि खेल संचालेह सुहुमेहि दिट्ठी संचालेहि अत्रमा अहि. आगारेहिं अभग्गो अविराहिओ हुज्ज मे काउसगो, जाव अरिहंताणं भगवंताणं नमुक्कारेणं न पारेमि, ताव कार्य ठाणं झणेणं अप्पाणं वोसिरामि. ( अंक नवकारतो काउस्सग्ग ) पारीने नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधुभ्यः कही थोय कहेंवी. थोय 1 पूछे गौतम कीर जिणंदा, ममवसरण बेठा सुखकंदा पूजित अमर सूरिदा || केम निकाचे पद जिणचंदा, किण विध तप करतां भव फंदा, टाले दुरित दंदा || तब भाखे प्रभुजी गनदा, सुण गौतम वसुभूति नंदा, निर्मल तप अरविदा || वीश थानक तप करत महिंदा, जिम तारक समुदाये चंदा, तिम ओ सवि तप इंदा ॥ १ ॥ ( पछी लोगस्स कहेवो ) लोगस्स उज्जोअगरे, धम्मतित्थयरे जिणे; अरिहंते कित्तहस्सं चउवीसंपि केवल, १ उसभमजिअं च वंदे, संभवमभिणंदणं च सुमइंच पउमप्यहं सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वंदे. २ सुविहिं जपुप्फदंतं, सीअल सिज्जस वासूपुज्ज च; विमलमणंत च जिणं, धम्मं संति च वंदामि ३ कुंथुं अरं च मल्लि Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वंदे मुणिसुव्वयं नमिजिणं च वंदामि रितुनेमि, पासं तह वद्धमाणं च. अवं मों अभिथुआ, विहुय-रय-मला-पहोणजर मरणा; चउवीसंपि जिणवरा, तित्थयरा मे पसीयंतु. ५ कित्तयवंदिय-महिया, जे अ लोगस्स उत्तमा सिद्धा; आरुग्ग बोहिलाभ, समाहिवर मुत्तमं दितु. ६ चंदेसु निम्मलयरा आइच्चेसु अहियं पयासयरा, सागरवरगंभीरा, सिद्धा सिद्धि मम दिसंतु.७ ___सालो अरिहंत चेइयाणं करेमि काउस्सग्गं, नंदण-वत्तिया पूअणवत्तिया सक्कारवत्तिया सम्माणवत्तियाए बोहिलाभवत्ति-या निरुवसग्गत्तिया, सद्धाओं मेंहाले धिइले धारणा अणुप्पे हाओ वड्ढमाणी ठामि काउस्सग्गं. अन्नत्थ ऊसासिअणा नीससिअॅणं खासिसेणं छोणं जंभाइअणं उड्डुअणं वाय-निसग्गेणं भमली पित्तमुच्छा मुहुमेहि अंग संचालहि सुहुमेहि खेल संबालेहि सुहमेहि विटिसंचालहि अबमाइहि आगरेहि अभग्गो अविराहिओ हुज्ज मे काउस्सग्गो, नाक अरिहंताणं भगनंताणं नमुक्कारेणं न पारेमि, ताव कायं ठाणेगं मोणणं झाणेणं अप्पाणं वोसिरामि. ( अंक नवकारनो काउस्सग ) पारीने बीजी थोय प्रपल रहे अरिहंत नमोजे, बीजे सिद्ध पवयण पद त्रीजे आचारज येरंडविजे ॥ उपाध्याय ने साधु ग्रहीजे, नाण सण पद विनय वहीजे, अगीयारमें चारित्र लोजे । बंभवयधारीणं Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) गणीजे, करियाणं तवस्स करीजे; गोयम जिणाणं लहीजे ॥ चारित्र नाण श्रुत तित्थस्स कीजे, त्रीजे भव तप करत सुणीजे, अ सवि जिन तप लीजे ॥ २ ॥ . पुक्खगवर दीवड्ढे, धायइसंडेय जंबुहीवे य, भरहेग्वय विदेहे, धम्माइ गरे नम॑सामि १ तमतिमिर - पड़ल-विद्ध ं सणस्स, सुरगणनरंद महियस्स, सीमाधरस्स गंदे, पष्फोडिय मोहजा लस्स. २ जाइ-जरा-मरण-सोग पणासणस्स, कल्लाण पुक्खलविसाल-सुहा-वहस्त को दव दाणव- नरिंदगणच्चियस्स धम्मस्स सारमुवलब्भ करे पमायं, ३ सिद्ध भो! पयओ णमो जिणमओ नंदी सया संजभे, देव-नाग-सुवन्न- किन्नर गण-स्सकभूअ - भावचिअ लोगो जत्थ पइटुओ जगमिणं तेलुक्कमचासुरं, धम्मो वड्ढउ सामओ विजयओ धम्मुत्तरं वड्ढउ ४ , सुअस्स, भगवओ करेमि काउस्सग्गं. गंदणवत्तियाओ पूअणवत्तिया सक्कार-वंत्तियाए, सम्माण - वत्तियाए, बोहिलाभ वतियाए, निरुठणसग्ग-बत्तिया सद्धाए मेहाअ घिई धारजाओ अगुप्पेहाओ बड्ढमाणीओ ठामि काउस्सग्गं. क अन्नत्थ ऊस सिअ णं, नीस सिगं खासिअ गं छीअगं जंभाअणं उड्डुअणं वायनिसग्गेणं भमलीओ पित्त-मुच्छा, सुहुमेहि अगसंचालह सुमेहि खेल संचालेहि सहुमेहि दिट्टिसंचाहि अवमाइ हि आगारेहिं अभग्गो अविराहिओ हुज्ज ! Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६८) म काउस्सग्गा, जाव अरिहंताणं भगवंताणं नमुक्कारेणं न पारेमि, ताव कार्य ठाणेणं मोऐणं झाणेणं अप्पाणं वोसिरामि. ओंक नवकारनो काउस्सग्ग पारिने त्रीजी थोय आदि नमो पद सघले ठवीश, बार पन्नर बार वलीं छत्रीश, दश पणवीश सगवीश || पांच ने सड़सठ तेरे गणीश, सत्तर नव किरिया पचवीश, बार अट्ठावीस चउवोश ।। सित्तेर इगल पोस्तालीश, पांच लोगस्स काउस्सग्ग कहीश, नोकारवाली बीश ॥ अक ओक पदे उपवास ज वीश, मास खटे ओक ओली करोश, इम सिद्धांत जगीश ॥ ३ ॥ सिद्धाणं बुद्धाणं, पार-गयाणं परंपरगयाणं, लोअग्गमुवगयामं, नमो सया सव्व-सिद्धाणं १ जो देवाण वि देवो, जं देवा पंजली नमसंति तं देवदेव-महिअ सिरस गंदे महावीरं २ इक्कोवि नमुक्कारो, जिणवर-वसहस्त वद्धमाणस्स संसार सागराओ तारेइ नरं व तारि वा ३ उज्जित सेल-सिहरे, दिक्खानाणं निसीहिआजस्स, तं धम्म चक्कवट्ट, अनिमि नम॑सामि ४ चत्तारि अठ्ठ दस दोअ, नंदिआ जिणवरा चउग्गी, मरमठ्ठ निट्टि अठ्ठा, सिद्धा सिद्धि मम दिसँतु ॥ ५ ॥ auraarराणं संतिगराण सम्मदिठि समाहिगराण करेसि काउल्हागं । असत्य ऊससिएन, नीमसिएन, खासिएणं, छोएणं, जंभाइए, उदडुए गायनिलगोणं भमलीए, पित्त मुछाए १ सुमे Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६९) अंगसं वालेंहि, सुहमेहि खेल संचालहि सहुमेहि दिट्ठिसंचालहिं २ एवमाइएहि आगारेहि, अभग्गो, अविराहिओ, हुज्ज मे काउस्सग्गो ३ जाम अरिहंताणं भगवंताणं नमुक्कारेणं न पारेमि, ४ ताव कायं ठाणेणं, मोणेणं, झानेणं, अप्पाणं वोसिरामि ॥ (अक नवकारनो काउस्सग्ग) पारीने नमोऽहंत सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधुभ्यः शक्ते अकासगु तिविहार छठ्ठ अटूठम मासखमण उदार पडि फमणां दोय बार ॥ इत्यादिक विधि गुरुगम धार, अंक पद आराधन भना पार, उजमणु विविध प्रकार ॥ मातंग यक्ष करे मनोहार, देवी सिद्धाइ शासन रखवाल, संघविधन अपहार ॥ खिमाविजय जस ऊपर प्यार शुभ भवियण धर्मे आधार, वीरविजय जयकार । ४॥ नमुत्थुणं अरिहंताणं भगवंताणं १ आइगराणं, तित्थयराणं सयंसंबुद्धाणं २ पुरिसुतमाणं, पुरिससीहाणं, पुरिसवरपुंडरीआणं पुरिसवर गंध हत्योणं ३ लोगुतमाणं, लोनाहाणं, लोगहिआणं, लोगईवाणं, धोपज्जोअगराणं ४ अभयदयाणं, चक्खुदयाणं, मग्गदवाणं, सरगदयाण, बोहिंदयाणं ५ धम्मदयणं, धम्मदेसयाणं, धम्मनायगाणं, धम्मसारहीणं, धम्मवरचाउरंतचक्कवढीणं ६ अप्पडिहय-वरनाणदंसणधराणं, विअट्ट छउमाणं ७ जिणाणं जावयणं, तिन्नाणं, तारयाणं, बुद्धाणं, बोहयाणं, मुत्ताणं Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोगाणं ८, सव्वदरिसोणं सिव सवल मरुझ मणतमक् वयमव्वाबाह म णराबित्ति सिद्धिगइ-नामध्ोयं, ठाणं संपता नमो जिनणं चिअभयाणं ९ जे अ अइसा सिद्धा, जे भविस्संति पागएकले, संदइ अ वट्टमाणा, सब्बे तिविण नंदामि १० ७० १ ( पछी उभा थइने अरिहंत चेइआणं कहेवुं ) अरिहंत केइयाणं करेमि काउस्सग्गं, वंदणवत्तियाओ पूअणवत्ति या सक्कारबत्तियाओ सम्नाणवत्तियाओ, बेहिला भवत्ति याओ freeraशयाओ, सद्धाओ, मेहाओं, धिइओ धारणाओं अणुष्पपेहाओ वड्ढमाणीओ, ठामि काउस्सगं । अन्तत्थ उपसिओणं नीससिणं खासिणं छीओणं जंभाई अणं उड्डुअणं नायनिसरगेणं भमलिए पित्तमुच्छाओं, सुहुमेहि अंगसंचाललेह सुडुमेहि खेलसंचालेहि सुहुमेहिं विटिठ संचालहि tantra हि आगारेहिं अभग्गो अविराहिओ हुज्ज मे फ़ाउस जब अरिहंताणं भगवंताणं नमुक्कारेण न ताव कार्य ठाण मोनेणं झाणं अव्यानं बोसिरामि । [ अक नवक़रानो काउस्सग्ग ] पारीने नमर्हस सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वं साधुभ्यः कही थोय कहेंवी. थोय A वीश स्थानक तप विश्वमां मोटो, श्री जिनवर व हे आपजी || "जिनपद त्रीजा भवमां, करोने स्थानक जापजी ॥ थया Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७१) थशे सवि जिनबर अरिहा, अ तपने आराधं जी ॥ केवलज्ञान दर्शन सुख पाम्या, सर्वे टालो उपाधिजी ॥१॥ (पछी लोगस्त कहेंवो) लोगस्स उ जोनगरे, धामतित्ययरे जिणे, अरिहंले कित्तइस्सं, च उवीसंपि केवलि. १ उसभमजिअं च वंदे, संभवमभिणंदणं च सुमई च, पउमप्पहं सुपासं जिणं च चंदप्हं वंदे. २ सुविहि च पुष्फ़दंत, सी ल सिज्जन वायुज्ज च, विमलमणंटं च जिणं धम्म संति च वन्दामि. ३ कुथु अरं च मल्लिा, बांदे मुणिसुव्वयें नमिजिणं च, मंदामि टिनेमि, पासं तह तद्धमाणं च अ म अभिथुआ, विय-रय-मला पहीणजर- मरणा, चस्वीॉपि जिणवरा तित्थयरा, मे पसीयंतु ५ कित्ति-नदिय महिया, जे अॅ लोगस्स उत्तमा सिद्धा, आरुग्ग बोहिलाभ, समाहिवर मुत्तमं दितु । ६ चंदेसु निम्मलयरा, आइच्चेसु अहियं पयास यरा, सागरवरगंभीरा, सिद्धा सिद्धि मम दिसंतु ७ अन्लोडं अरिहंत चेइयाण करेमि काउस्सागं, दण-बत्ति यापूअणवत्तिया सक्कारवतिया सम्माणबत्तियों वोहिलाभवत्तिया निरुवसग्गवत्तिया, सद्धाओं मेहाओं धिइअ धारणा अगुप्पेहा वड्ढमाणी ठामि काउस्तगयं । अन्नत्थ ऊससिओणं नीसिअण खासिोंग छीअणं जंभाइअणं उड्डाणं वायनिग्गेण भसलीों पित्तमुच्छा, सुमेहि Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७२) अंग संचालेहि सुहुमेहि खेल संचालहि सहुमेहि दिट्ठि संचालेहि अवमाइओहि आगारेहि अभग्गो अविराहिओ हुज्ज में काउस्सग्गो, जाव अरिहंताणं भगवंता नमुक्कारे न पारेमि, बाव कायं ठाणेणं मोणेण झणेण अप्पाण वोसिरामि. (अक नवकारनो काउस्सग्ग) पारोने बीजो थोय कहेवी। अरिहंत सिद्ध पवयण सूरि स्थाविर, वाचक साँध नाणजी, दर्शन विनय चरण बंभकिरिया, तप करो गोयल ठाणजी। जिनवर चारित्र पंचविध नाण, श्रृत तीर्थ अह नामजी ।। अॅ वीश स्थानक आराधे ते शिवपद धामजी ।। २ ॥ ( पछी पुक्खरवरद्दीवडूढ़े कहे ) पुक्खरवरदीवड्ढे धायइ संडे य बुदीवे य, भरहेरवय विदेहे, धम्माइगरे नमसामि । ॥१॥ तमतिमिरपडलविद्धसणस्स, सुरगणनरिंदमहिअस्स सीमाधरस्स बंदे पप्फोडिय मोहजालस्स । जाई जरा मरण सोग पणोसणस्स, कल्लाण पुक्खल विसाल सुहावहस्स, को देव दागव नरिंद गणच्चियस्स धम्मस सारमुलब्भ करे पमाणें । ॥३।। सिद्धे भो पयओ णमो, जिणमों नंदी सया संजमे, देवं नाग सुवन किन्नर-गणस्सन्भूअ भावच्चिों, लोगो जत्थ दईटिठिो जगमिण तेलुक्कमच्चासुर, धम्मो वड्ढउ सासओ विजयओ धम्मुत्तर ६ डूउ ॥ ४ ॥ सुअस्स भगवाओ करेमि काउस्सग्गं Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७३) वंदणवसियाओ पुत्रणवत्तियाओं सक्कारवत्तियाओ सम्माणवत्तियाओ बोहिलाभवत्तियाओ, विरुवसग्गवत्तियाओ, सद्धाओ, मेहाओ, विइओ, धारणाओ अगुप्पेहाओ वदमाणीओ, ठामि काउस्सग्गं, अन्नत्थ, ऊससिओणं नोससिएणं खासिओगं छोयेनं जंभाइअणं उड्डुअणं वायुनिसग्गेणं, भमलीए पित्तमुच्छाए, सुहुमेह अंगसंचाहि सुमेहि खेल संचालह सुहमेहि दिट्ठि संचालहि अब माई अहि आगारेहिं अभग्गो अविराहिओ हुज्न मे काउस्सग्गो, जाव अरिहंताणं भगवंतानं ननुक्कारेणं न पारेमि, ताव कार्य ठाणेणं मोजेणं झाणेणं अप्पाणं वोसिरामि । ( ओक नबकारनो काउस्सग्मं करवो) पारीने त्रीजी भोय कहेवी । > दोय काल पडिक्रमणं पडिलेहण, देववंनद त्रण वारजी ॥ नोकारवाली बीस गुणजे, काउस्सग्ग गुण अनुसारजी ॥ चारसो उपवास करी चित चोखे, उजमणुं करो सारजी, पडिमा भरावो संघ भक्ति करो, अ विधि शास्त्र मोझारजी ॥३॥ ( पछी सिद्धाणं बुद्धाणं कहेवुं ) सिद्धाणं बुवाणं पारयागं परंपरगयाणं; लोअग्गमुबगयागं नमो सया सुव्व सिद्धाणं । ॥। १॥ जो देवाण वि देवो जं देवा पंजलि नम्मंसंति, तं देवदेवमहिअं, सिरसा गंदे महावीरं ॥२॥ इक्कोवि नमुक्कारो, जिणवर वसहस्स वद्धमाणस्स, संसार सागराओ तारेइ नरं व नारि वा । ||३|| उज्जित सेलसिहरे, दिक् Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७४) खानाणं निसीहिआ जस्स, तं धम्मचक्कट्टि, अरिठ्ठनेमि नमसामि ।।४।। चत्तारि अटु दश दो अ, वंदिआ जिणवरा चउंविसं, परमट्ठ निट्टि अट्टा सिद्धा सिद्धी मम दिसंतु। ॥५॥ क्यावञ्चगराणं संतिगराणं सम्मदिदिठसमाहिगराणं करेमि काउस्सागं । 'अन्नत्थ ऊससिएणं, नोससिएणं, खासिएणं, छोएणं, जभाइएणं, उडू डुएणं, वायनिसग्गेणं भमलीए, पित्तमुच्छाए १ सुहु मेहि अंगसँचालेहि, सृहुमेहि खेलर्सचालेहि सुहुमेंहिं दिसंचा लेहि २ एवमाइएहि आगारेहि, अभग्गो अधिराहिओ, हुज्ज मे काउस्सग्गो ३ जाव अरिहंताणं भगवंताणं ममुक्कारेणं न पा. रेमि; ४.. ताव कायं ठाणं मोणेणं, झाणेणं, अप्पाणं बोसिरामि ॥ ( एक नवकानो काउस्सग्ग पारोने ) नमोऽहंतू सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधुभ्यः कही थोय कहेवी. श्रेणिक सत्यकी सुलसा रेवती, देवपाल अवदातजी ।। स्थानक तप सेवा महिमा, थया जगमांहि विख्यातजो ।। आगम विधि सेवे जे तापिया, धन्य धन्य तस अवतारजी ॥ विध्न हरे तस शासनदेवी, सौभाग्य लक्ष्मी दातारजी ॥४॥ ( पछी बेसीने नमुत्थुणं कहेवू ) नमुल्य अरिहंताणं, भगवंताणं १ आइमराणं तित्थयराण सगं संवद्यामं २ पुरिसुतमाणं. पुरिससीहाणं. पुरिसवरपुंरोडआण Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७५) पुरिसवर गंध हत्थीर्णं ३ लोगुत्तमाणं, लोगनाहाणं, लोगहिआणं, लोगपईवाणं, लोगज्जोअगराणं ४ अभयदयाणं चक्खुदयागं, मग्गदयाणं, सरणदयाणं बोहिदयाणं, ५ धम्मदवाणं धम्मदेसयाण धम्मनायगाण, धम्मसारहीण, धम्मवर चाउरंतचक्कवट्टीणं ६ अप्पsिहय-बरनाण- दंसणधराणं विअट्ट छउमाणं ७ जिणाणं, जावयाणं, तिन्नाणं, तारयाणं, बुद्धाणं बोहयाणं मुत्ताणं मोअगाणं ८ सव्व नृणं सव्वदरिसीणं सिव-मयल मरुनमगंत- मक्खय-मव्वा बाह-मपुगरावित्ति सिद्धि-गइ-नामधे - यां, ठाणं संपत्ताणं नमो जिणाण जिअभयाणं ९ जे अ आईआ सिद्धा. जे अ भक्तिसंति नागए काले संपइ अ वट्टमाणा, सव्वे तिविहण वंदामि ॥९॥ जानंति चेइआई, उड़ढे अ अहे अ तिरिअलोए अ सब्वाई ताई वन्दे, इह सन्तो तत्थ संताई ॥१॥ इच्छामि खमासमणो नंदिउं जावणिज्जाओ निसीहिआओ मत्थअण वंदामि । जावंत केवि साहू, भर हेरवय महाविदेहे अ; सव्वेसि तेसि पणओ, तिविहेण तिदंड विरयाणं १ नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधुभ्यः । Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७६) श्री वीश स्थानकनु स्तवन हारे मारे प्रणमें सरस्वती मांगुं वचन विलास जो, वोशेरे तप स्थानक महिमा गाइशं रे लोल हारे मारे प्रथम अरिहंत पद लोगस्स चोवीश जो, बीजे रे सिद्ध स्थानक पंदर भावशू रे लोल. ॥१॥ हारे मारे बीजे पवयण गणो लोगस्स पोस्तालीश जो, बोथेरे आयरियाणं छत्रोशनो सही रे लोल, हारे मारे थेरानं पद पांचमे दश उदार जो , छठे रे उवज्झायाण पचवीशनो सही रे लोल. ॥२॥ सातमे नमो लोअ. सव्व साहु सत्तवीश जो, आठमें नमो नाणस्स गंच भावशं रे लोल. हारे नवमे दरिसण सडसठ मनने उदार जो, दशमे नमो विणयस्त दश वखणीऑरे लोल, ॥३॥ हारे अग्यारमे नमो चारित्तस्स लोगस्स सत्तर जो, बारमें नमो बंभस्स नव गणो सही रे लोल, हारे किरियाण पद तेरमे वली पचवीश जो, चोदमे नमो तवस्सा बात गणो सही रे लोल ॥४॥ हारे पंदरमे नमो गोयमस्स अठ्ठावीश जो, नमो जिणाणचउवीश गणशं सोलमेरे लोल, Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७७) सत्तरमे नमो चारित्त लोगस्स सित्तरे जो, नाणस्स नो पद गण° अकावन अढारमें रे लोल ॥५॥ हारे ओगणीशमें नमो सुअस्स वीश पीस्तालीश जो, वीशमे नमो तित्थस्स वीश प्रभावशुं रे लोल, हारे में तपनो महिमा चारशे ऊपर वीश जो, पट मासे अंक ओली पूरी कीजियेरे लोल, हारे तप करतां वली गणीजे दोय हदार जो, नवकारवाली वीशे स्थानक भावशं रे लोल, हारे प्रभावना संघ स्वामीवच्छल सार जो, उजमणा विधी कीजे विनय लीजिअरे लोल, ॥७॥ हारे अ तपनो महिमा कहे श्री वीर जिनराय जो, विस्तारे इन संबंध गोयम स्वामीने रे लोल हारे तप करतां वली तीर्थकर पद होय जो, देव गुरु इम कांति स्तवन सोहामणो रे लोल, ॥८॥ (पछी जयवीयराय कहेवा) जयवीयराय ! जगगुरु ! होउ ममं तुम पभावओ भयवं! भवनिव्वेओ मग्गाणुसारिआ इठ्ठफलसिद्धि ॥१॥ लोग विरुद्धचाओ, गुरुजणपूआ परस्थकरणं च सुहगुरु जोगो तन्वयण सेवणा आभवमखंडा. २ Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७८) इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिजार निसीहिआओ मत्थअण वंदामि. इच्छाकारेण संदिसंह भगवन् ! चैत्यवंदन करु? इच्छं. बार गुण अरिहंत देव, प्रणमीजें भावे, सिद्ध आठ गुण समरतां दुख दोहरा जावे, १ आचारज गुण छत्रीस, पचवीस उवज्झाय, सत्तावीस गुण साधुना, जपतां सुख थाय २ अष्टोत्तर शत गुण मलीओ, इम समरो नवकार. धीरविमल पंडित तणो, नय प्रथमे नित सार ३ जकिचि नाम तित्थं संग्गे पायलि माणुसे लोए; जाई जिण बिबाई ताई सव्वाई वंदामि १ नमुत्थुणं, अरिहंताणं भगवंताणं १ आइगराणं, तिस्थयराणं सयं संबुद्धाणं पुरिसुत्तमाणं, पुरिससीहाणं, पुरिसवरपुंडरी आणं, पुरिसवर गंध हत्थीणं ३ लोगुत्तमाणं, लोगनाहाणं लोग हिआणं, लोगपईवाणं, लोगपज्जोअगराण ४ अभयदयाणं, चवखुदयाण, मग्गदयाण, सरणदयार्ण, बोहिदयाणं, ५. धम्मदयार्ण, धम्मदेसयाणं, धम्मनायगाणं, धम्मसार होणं, धम्मवरचाउरतचक्कवट्टीणं ६ अप्पडिय-वरनाणदंसण-धराणं, विअट्ट छउमाणं ७ जिणाणं- जावयाणं, तिन्नाणं, तारयाणं, बुद्धाणं बोहयाणं, Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुत्तार्ण मोअगाणं ८ सव्वन्तुर्ण, सव्वदरिसीणं, सिव-मयल मरुअमत मक्खय- मध्वाबाह-मपुणरावित्ति सिद्धि गइ-नामधेयं ठाणं संपत्ताणं, नमो जिणाणं जिअभवाणं ९ जे अ अइआ सिद्धा, जे अ भविस्संति णागए क़ाले, संपइ अ वट्टमाणा, सव्वे तिविहेण वंदामि । जय वीयराय ! जगगुरु ! होउ ममं तुह पभावओ भयवं भवनिव्वेओ मग्गा - णुसारिया इट्ठफलसिद्ध १ लोग बिरुद्धञ्चाओ, गुरुजण पूआ परथ करणं च, सुहगुरु जोगो तव्वयण-सेवणा आभवमखंडा, (७९) वारिज्जई जइवि नियाण बंधणं वोयराय! तुह समये तहवि मन हुज्ज सेवा, भवे भवे तुम्ह चलगाणं, ३ दुखओ कम्मक्खओ. समाहि मरणं च बोहिलाभो अ. संपन्नउ मह अअं, तुह नाह पणाम करणेणं सर्वमंगल मांगल्यं, सर्वं कल्याण कारणं; प्रधानं सर्वधर्माणां, जैनं जयति शासनम् । • NAG इच्छामि खमासमणो नंदिउं जावणिज्जाओ निसीहिआओ मत्थमेण वंदामि अविधि आशातना मिच्छामि दुक्कडं. Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८०) सवारमा ऊपर मुजब देववंदन करीने उपरथी सज्झाय कहेवी, बपोरे तथा साँजे सज्झाय कहेवी नहीं. इति देवनंदन विधि. -: पच्चवखारा पारवानी विधि :-- इच्छामि खमासमणो ! नंदिउं जावणिज्जाए निसीहिआए मत्थएण दामि। इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! इरियावहियं पडिक्कमामि ? इच्छं, इच्छामि पडिक्कामिउं ॥१॥ इरियावहियाए विराहजाए ॥२॥ गमणा गमणे ॥३॥ पाणक्कमणे, बीयक्कमणे, हरियक्कमणे, ओसाउत्तिगपणग-दग-मट्टी-मक्कडा संताणा-संकमणे ॥४॥जे मे जीवा विराहिआ ॥५॥ एगिदिया, बेइंदिया, तेइंदिया, चरिंदिया, चिदिया ।६॥ अभिहया, वत्तिया, लेसिया, संघाइया, संघट्टिया, परियाविया, किलामिया उद्दवि• या ठाणाओ ठाण संकामिया, जीवियाओ ववरोविया, तस्स मिच्छामि दुक्कडं ॥७॥ तस्स उत्तरी करणेणं, पायच्छित्त करणेणं, विसोही करणेगं मिसल्ली करणेणं, पावाणं कम्माणं निग्धायणठाए, ठामि काउस्सग्ग।।१॥ अन्नत्थ ऊससिअणं नीससिअणं खासिअण छीॲणं, जंभाइअग उड्डअणं वायनिसग्गेणं भमलो पित्तमुच्छाओ, सुहमेंहि अंग संचाहिं सुहुमेहिं खेल संवाहिं सुहुमेहि दिठ्ठि संचाहिं Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८१) अवमाईआहे आगारेहिं अभग्गो अविराहिओ हुन्ज मे का उस्सग्गो, जाव अरिहंताणं भगवंताणं नमुक्कारेण न पारेमि, ताव कायं ठाणणं मोणेणं झाणं अप्पाणं बोसिरामि. (एक लोगस्सनो काउस्सग्ग चंदेसु निम्मलयरा सुधी. न यावडे तो चार नवकार.) लोगस्स उज्जोअगरे, धम्म तित्ययरे जिणे; अरिहंते कित्तइस्सं, चउबोसं पि केवली ।।१।। उसभमजिअं च वंदे, संभवमभिणंदणं च सुमई च; पउमप्पहं सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वंदे ॥२॥ सुविहिं च पुप्फदंतं, सीअल सिज्जंस वासुपुज्जं च; विमलमणंतं च जिणं, धम्म संति च वंदामि ॥३॥ कुंथु अरं च मल्लि, वंदे मुणिसुव्वयं नमि जिणं च वंदामि; रिट्टनेमि पासं तह वद्धमाणं च ॥४॥ एवं मए अभिथुआ, बिहुय रयमला पहीण जरमरणा; चउवीसं पि जिगवरा, तित्थयरा मे पसीयंतु ॥५॥ कित्तिय वंदेय महिया, जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा; आरुग बोहिलाभ, समाहिवरमुत्तमं दितु ।।६।। चंदेसु निम्मलयरा, आइच्चेसु अहिणं पयासयरा; सागर वर गंभीरा, सिद्धा सिद्धि मम दिसंतु ॥७॥ इच्छामि खमासमणो ! बँदिउं जावणिज्जाए निसीहिआए, मत्थएण नंदामि । इच्छाक रेण संदिसह भगवन ! चैत्यवंदन करु ? इच्छं Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८२) --: जगचिंतामणि चैत्यवंइन :जाँचतामणि! जगनाह ! जगगुरु ! जगरक्वण ! जगबंधइ! जगसत्थवाह! जगभाव विअक्खण! ,अठावयसंठविअरूव! कम्मठ्ठ विणासण! ; चउवीसंपि जिणवर जयंतु अप्पडिहय सासण! १ कम्मभूमिहिं कम्मभूमिहिं पढसंघणि, उक्कोसय सत्तरिसय, जिणवराण विहरंत लब्भइ; नवकोडिहिं केव लोण, कोडिसहस्स नवसाहु गम्मइ संपइ जिणवर वीस मुणि बिहु कोडिहिं वरनाण, समणह कोडि सहस्सदुअ, थुणिजइ निच्च विहाणि. २ जय उ सामिय ! जयउ सामिय रिसह सत्तुंजि; उजिति पहुनेमिजिण ! जय उ वीर! सच्चउरिड़मण ! भरुअच्छहि मुणिसुचय ! मुहरि पास दुह दुरिअ खंडण ! अवर विदेहि तित्ययरा बिहु दिसि विदिपि जिके वि, ती आणागय संपइअ नंदु जिण सवेवि. ३ सत्ताणवइ सहस्सा, लक्खाछप्पन्न अट्ठकोड़ीओ; बत्तीसय बासीयाई, तिअलो चेइ गंदे. ४ पनरस कोडि सयाई, कोडि बायाल लक्ख अडवना छत्तीस सहस असीइं, सामय बिबाई पणमामि. ५ जं किचि नाम तित्थं सग्गे पायालि मागुसे लोए; जाई जिणं बिंबाई ताई सव्वाइं नंदामि १ नमुत्थुणं अरिहंताणं, भगवंताणं १ आइगराणं, तित्थयराणं सयंसंबुद्धाणं २ पुरिसुत्तमाणं, पुरिससोहाणं, पुरिसवरपुंडरीआणं पुरिसवर गंध हत्थीणं ४ लोगुत्तमार्ण, लोगनाहाणं, लोगहिआणं, Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८३) लोगपईवाणं, लोगपज्जोअगराण ४ अभयदयाणं, चवखुदयाणं, मग्गदयाणं, सरणदयाणं, बोहिदयाणं ५ धम्मदयःणं, धम्मदेसयाणं, धम्मनायगाणं, धम्मसारहिणं, घम्मवरचाउरंतचक्कवट्टीणं ६ अप्पडिहय-वरनाणदंसणधराणं, विअट्टछ उमाणं ७ जिणाणं जावयाणं तिन्नाणं तारयाणं, बुद्धाणं बोहयाणं, मुत्ताणं मोअगाणं ८ सव्वन्तूणं, सव्वदरिसीणं, सिव-मयल मरुअ-मणंतमक्खय-मव्वा-बाह-मपुणरावित्ति-सिद्धिगइ-नामधेयं, ठाणं सपताणं, नमो जिणाणं जिअभयाणं ९ जे अ अइआ सिद्धा, जे अ भविस्संतिणागए काले, संपइ अ वट्टमाणा, सव्वे तिविहेण नंदामि १० जाति चेइआई, उढ्ढ़े अहे अतिरिअलोए अ, सवाई ताई वन्दे, इह सन्तो तत्थ संताई ॥१॥ ___ इच्छामि खमासमणो नंदिउं जावणिज्जारों निसीहिआओ मत्थअण नंदामि. ज.नंत केवि साहु, भरहेरवय महाविदेहे अ, सव्वेसिं तेसि पणओ तिविहेण तिदंड विरयाणं १ नमोऽहंसिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधुभ्यः । -: उवसगहरं :उबसगहरं पासं पासं गैंदामि कम्मघणमुक्कं; विसहर विसनिनास, मगल कल्लाण आवासं१विसहर फुलिंग मंतं, कंठे धारेइ जो सया मगुओ; तस्स गह रोग मारी, दुट्ठजरा जति उवसामं Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८४ ) २ चिट्ठउ दूरे तो तुज्झ पणामोवि बहुफलो होइ; नर तिरिअसुवि जीव', पावति न दुकख दोगच्च ३तुम सम्मते लद्ध चितामणि कप्पपायायबभहिले; पावंति अविग्धणं, जीवा अयरामरं ठाणं: ४ इअ संथुओ महायस ! भलिब्भर निब्भरेण हिअअण; ता देव ! दिज्ज बोहि. भवे भवे पासजिणचंद ! ५ जायवीयराय ! जगगुरु होउ ममं तुह पभावओ भय, भवनिवेओ मग्गाणुसारिआ इठ्ठफल सिध्धी, १ लोग विरुद्धच्चओ, गुरुजणपूआ परत्थरणं च, सुहगुरु जोगो तव्वयण, सेवणा आभवमखंडा २वारिज्जइ जइ विनियाण, बंधणं वीयराय ! तुम सम, तहवि मम हुज्ज सेना, भवे भवे तुम्ह चलणाणं. ३ दुक्खक्खओ कम्मक्खओ, समाहि मरणं च बोहिलाभो अ सपज्जउ महअन्अ, तुहनाह पणाम करणेण४ सर्व मंगल मांगल्यं सर्व कल्याण कारण प्रधानं सर्व धर्माणं, जैनं जयति शासनम्. ५ इच्छामि खमासमयो नंदिउं जानणिज्जा निसीहिआले मत्थअण वंदामि. इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! सज्झाय करु ? इच्छं, नमो अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं, नमो आयरियाणं, नमो उनझायाण नमो लोए रावसाहणं, असो पंच नमुक्कारो, सन्नपावप्पणासणो; मंगलाणं च सव्वेसि, पढमं हवाइ मंगलां, Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८५) -: सम्झाय : मन्ह जिणाणं आणं, मिच्छं परिहरह धरह समत्तं; छव्विह आवस्सयंमि, उज्जुत्तो होइ पइ दिवसं. १ पव्वेसु पोसहवयं, दाणं सीलं तवो अ भावो अ; सज्झाय नमुक्कारो परोवयारो अ यजणा अ. २ जिणपूआ जिण थुणणं, गुरुथुअ साहम्मिआण वच्छलं; ववहारस्स य सुद्धी, रहजत्ता तित्थजत्ता य. ३ उवसम विवेग संवर, भासासमिइ छजीब करुणा य; धमिअज़ण संसग्गो, करणदमो चरण परिणामो ४ संघोवरि बहुमाणो, पुत्थय लिहणं पभावणा तित्थे; सड्ढाण किच्चमेअं, निञ्च सुगुरुवअसेणं. इच्छामि खमासमणो बंदिउं जावणिज्जाओ निसीहिआए मत्यण वंदामि इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! मुहपत्ति पडिलेहु ? इच्छं, कही मुहपत्ति पडिलेहवी, पछी इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाओ निसीहिओ ओ मत्थअण वंदामि, इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! पञ्चकखाण पारु ? यथाशक्ति इच्छामि खमाममणो बंदिउं जावणिज्जाओं निसी हिआओं मत्थण वंदामि Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८६ ) इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! पञ्चखाण पार्यु ? तहत्ति, कही मुठी बाली कटासणा ऊपर स्थापी अंक नवकार गणवो. __नमो अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं, नमो आयरियाणं, नमो उवज्झायाणं, नमो लोअ सव्वसाहूणं असो पंचनमुक्कारो, सम्वपावप्पणासणो, मंगलाणं च सव्वेसि, पढ़म हवइ मंगलं. उपवास नुपच्चवखारा पारवा माटे सूरे अग्गो अन्भत्तट्ट पच्चखाण कर्यु तिविहार पोरिस. साढपोरिसि (सूरे उग्गले पुरिमड्ढ) मुठ्ठि सहिअं पच्चक्खाण र्य पाणहार, पच्चकखाण फासि, पालिअं, सोहिअं, तीरिअं किट्टि आराहिअं, जं च न आराहिलं, तस्स मिच्छामि दुक्कडं. (पछी मुठो वालो अक नवकार गणवो) अकासगु-बियासणु-आयविल नुपच्चक़खार पारवा माटे अग्गो सूरे नमुक्कारसहिअं पोरिसिं, साढपोरिसि उग्गों परिपड्ढ अवड्ढ) मुट्टिसहि पच्चकखाण कर्यु चोबि हार ) [आयंबील, अकासगुं] बियासणुं पच्चकक्खाण कर्य तिबिहार, पच्चकखाण फासि, पालि, सोरिअं, तोरिअ किट्टि, आराहि, चन आराहि तरस मिच्छामि दुक्कर Qजे पच्चकख ण क यु होय ते बोलव. Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८७) ( पछी मुठी बाली अक नवकार गणवो. ) इति पच्चक्खाण पारवानी विधि पाणहारनु पच्चक्खाण पाणहार दिवस चरिमं पञ्चकुखाइ अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं महत्तरागारेण सव्वसमाहिवत्तिआगारेणं वोसिरे. Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अशुध्दः तिशयेश्चराय ज्ञानना ममुष्यायुः रहिता दत्त [ पहले शुध्द करने के बाद पीछे पुस्तक को - - विधिमें युक्त करें ] - शुध्दि-दर्शन सिश्रींत अवथि हीमान चारिवधर्म धराक लक्षषण संलाप -: व्रतस्ताय आपरियाणं वजनयोग चक्षरिन्द्रिचासम्यक् आहार सत्नत्रयीणां वांन्द्रादि प्रातेभ्यो प्रातमः शुध्दः तिशयेश्वराय ज्ञाना मनुष्यायुः रहिताया दत्ता व्रतयुक्ताय आयरियाणं वचनयोग चक्षुरिन्द्रियापाय सम्यक् सितश्री अवधि हीयमान चारित्रधर्म धारक लक्षण आलाप गंधपुष्पादि रत्नत्रयीणां : चान्द्रादि प्राप्तेभ्यो प्राप्तेभ्यो नमः पेज : 11 १४ १६ १७ ܙ ܙ 13 १८ २० " 31 ܕܙ २१ २३ २३ २४ लाइन: ६ ७ ८ १६ १९ ५ १२ ७ 1 ३ ११ १२ १८ ८ ९ १२ १८ ११ ५ २१ १९ Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अशुध्द : - शुध्द : पेज : लाइन: प्रातेभ्यो प्राप्तेभ्यो अर्वत : सर्वत : २७ ७ प्रायश्रित प्रायश्चित असेवानरुप असेवावनरुप लायन कायेन कायिक कायिकी [शेष २४ पदमें की कर देना. ] प्रभाम प्रभास ३६ जिनेश्चराय जिनेश्वराय ३७ [शेष वीश पदमें ऐसा कर देना] विरमणव्रतधराय विरताय ३९ श्रतज्ञानाय श्रुतज्ञानाय ४१ १६ [ शेष सब पदमें श्रुत कर देना ] अनुष्य ___ मनुष्ये ४३ ससामश्रत समासश्रुत सदयमोज सदयमनोज्ञ विश्रसनीय विश्वसनीय नागंवर्त नागतवर्त धर्माचय॑स्य धर्माचार्यस्य शसननी शासननी दमने जाव विणयस्य विणयस्स __79 22v92m my-22. M2. " . . . . पद्मने जाण Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अशुध्द : थेरणं जचवीश उनमणा विश्रमां देवनदब चरसो शस्त्र जिमी लोगस त्रुट वेदवंदन विध संजाले हि अनु : सतस पार्श्व सप्त निवय जाई पुरिसुत्तमाणं वित्त त्तणं जावणिज्जए उसम भनवंताण दत्थीथं m शुध्द : थेराणं पंचवीस उजमणा विश्वमां देववंदन चारसो शास्त्र जिरे लोगस्स त्रुटक देववंदन विधि संचालेहि भानु : सततं पार्श्व सव्व विनय जाइं जिण पुरिसुत्तमाणं पुरिससिहाणं वित्ति त्ताणं जावणिज्जाओ उत्तम भगवंताणं हत्थीणं पेज : ५३ " ५४ ५५ 31 ܕܙ ५६ 17 ५३ ६१ 1) 11 ६२ " 11 11 ६३ " 11 ६४ 17 11 लाइन ११ १९ २० १० ९ १२ १ १८ १३ २१ 11 ७ १३ २५ ३ "" २० Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अशुध्द : दयादयाणं दयाणं नुद्याण मक्ख पत्तियाए झण ममवसरण ज कित्तय आगरेहि पुक्ख गवर जंबुहीवे सामओ मरमठ्ठ नीमसि एण जाम लोनाहाणं लोगईवाणं द्योपज्जोअगराणं धम्मदयणं जावयणं जिनणं चिअभयाणं जे प्पा गएकले शुध्द : दयाणं दया, धम्मदेसयाणं मुत्ताणं मक्खय वत्तियाए झाणेणं समवसरण च कित्तिय आगारेहि पुवखरवर जंबूदीवे सासओ परमठ्ठ नीस सिए जाव लोगनाहाणं लोगपवाणं लोगपज्जो अगराणं धम्मदयाणं जावयाणं जिणाणं जिअभयाणं जे अ नागएकाले पेज : ६४ ܕܙ 21 " " ६५ ६५ ६६ 31 ६७ " A ६८ - ६९ ܕܐ - " 11 ܕܙ ७० 31 31 2) लाइन : १० १३ १४ १९ २० ३ २५ ४ 37 १२ १७ २० ३ १५ १६ 11 १७ २० Po " .. ४ Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पेज: लाइन: १ अशुध्द : संद केइआणं निरुसग्ग अणुप्पपे नायनिसग्गेणं न ताव नमर्हम् उज्जोनगरे चंदप्हं वंदामिट्टिनेमि कित्ति अग्लो वत्तियों नीसिअणं भसली गोयल सारमुलब्भ दईििठओ ननुक्कारेणं देववंद पारयागं दिद्वसंचालेहि संवदाणं पुरीडआणं लोगज्जोअगराणं शुध्द : संपइ चेइआणं निरुवसग्ग अणुप्पे वायनिसग्गेणं न पारेमि ताव नमोऽर्हत् उज्जोअगरे चंदप्पहं वंदमिरिठ्नेमि कित्तिय सव्वलो वत्तियाए नीससिअणं भमलीओ गोयम सारमवलब्भ पईठिओ नमुक्कारेणं देववंदन पारगयाणं दिटिठसंचालेहिं संबुदाणं पुंडरिआणं लोगपज्जोअगराणं , २१ ___ Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पेजः लाइन: ७५ ११ अशुध्दः तिविहण सत्तवीश वखणी मिसल्ली पढसंधयणि परत्थरणं भजणा अग्गो अब्भत्त पोरिस अग्गो उग्गए सोरिअं शुध्दः तिविहेण सत्तावीश वखाणीों विसल्ली पढमसंधयणि परत्थकरणं जयणा उग्गए उपवास पोरिसि उग्गए सूरे उग्गए सोहिअं Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ಲಲಲಲಲ್ಲ * साहित्य सूर्य का प्रकाश हेतू जैन धर्म के प्राचीन सिद्धांतका ज्ञान प्राप्त करने हेतु आपके घरमे लब्धि कृपा मासिक का आगमन होना जरूरी है। जिनका चंदा वार्षीक रु. ११, द्विवार्षीक रु. २१, पंचवार्षीक रु. ५१, दशवार्षीक रु. ८१, आजीव रु. १३१ आजहि आप शीघ्र M. O. से भेज देना जरूरी समझलो। पता- " लब्धिकृपा" सी. एम्. शाह __ वाणीयावाड, छाणी ३९१७४० ಲಲ೧೦ ೩೨ಲಲ್ಲಿ प्राचीन संग्रह का उपयोगी प्रकाशन रोज देव वंदन, प्रतिक्रमण में सभी को उपयोगी स्तवने, चैत्य वंदने, संज्जाओ, स्तुतिों और नेमनाथजी के सलोका आदि के लीये २५०पेजका प्लॅस्टीक कवरवाला "आवश्यक सज्जाय संग्रह " बुक आप शीघ्र प्राप्त * कर ले। मूल्य- पोस्टेज के साथ सिर्फ रु. ५ पता- भुवन भदं कर साहित्य प्रचार केंद्र ___v. V. VORA ३४, कृष्णप्पा नायकन स्ट्रीट, मद्रास ६०० ००१ Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीतरागाय नमः महाहर बन आराधना पन जीनगर, दिन-382 माँ-बापको भूलो नहि नित किया प्यार जिन्होने उन पावन चरण को भूलो नहीं। दीपक बनो उनकी राहपर मां-बाप को भूलो नही ॥धृ॥ लाख है एहसान उनके ऐसे मेहरबाँ कोई नहीं / अनंत दुख ताप साहकर तुम्हे दिखाई दुनिया नई / भले ही भूलो तुम सबको इन अमृत दाताको न भूलो। भुके रहकर तुम्हे खिलाया वो पावन चरण नित छुलो / संगदील बनकर हृदयको ठेस उनकें पहुँचाना नही / / 1 / / नाजोंसे पालकर बडा किया पलकोंपे झुलाया है तुमको। एहसान मंद रहो सदा भूलकरभी न भुलो कभी उनको। है खाँक कमाई लाख की गर भूल गये जो तुम उनको। है आँस सबही तुम उनकी जो होगी नीज सुतसे तुमको / जैसी करणी वैसी भरणी याद रहे कभी भूलो नही // 2 // खुद पीकर घुट आँसुओंके तुम्हे चैनकी नींद सुलाई है। खुद चलकर काँटोपे तुम्हारे पगपग फुल बिखैरे है / है जैसे पावन माँ-बाप जिनकी महानताका अंत नही। है सेवामें स्वर्ग उन्हीके सुख शांती भी मिले वही। धनसे मिलत सब जगतमें मां-बाप कहीं मिलत नही / / 3 / / कवि- सुधांशु अनु. हिरालाल शाह, कराड सहायक शा. तिलोकचंदजी धजिगजी भंडारी कराड