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चोवीश पन्नर पोस्तालीशना, छत्राशनो करिये ।। दश पचवीश सत्तावीशनो, काउस्सग्ग मन धरीये ॥ १ ॥ पंच सड़सठ्ठी दश वली, सित्तेर नव पणवीश ॥ बार अडवीश जोगस्स तणो, काउस्सग्ग थरो गुणीश ॥२॥ वीश सत्तर अकावन्न, द्वादश ने पंच ॥ अणि परे काउस्सग जो करे, तो जाये भव संच ॥ ३ ॥ अनुक्रमें काउस्सग्ग मन धरो' गुणि लेजो वीश ।। वीश स्थानक अम जाणी, संक्षेपथी लेश ॥ ४ ॥ भाव धरी मनमां घणो, जो अंक पद आराधे ॥ जिन उत्तम पद दद्मने, नमी निज कारज साधे ॥ ५ ॥
श्री वींश स्थानकनु स्तवन सदगुरु चरण नमी करीजी, समरी सरस्वती माता, वीश स्थानक तर वरणकुंजी. समकितने अवदात, मन मोहन जिनजी, हवे झाल्यो तुम हाथ, ते नवी छोडं साहिबाजी, विना सिध्ये निज काज.
मन०१ पहेले पद अरिहा नमोजी, बीजे सिद्ध अनंत, त्रीजे पवयण मन धरोजी, चोथे सूरि गुणवंत. मन० २ थिविर नमो पद पांवमें जी, पाठक प्रवचन जाण, साधु नमो सवि सातमेजी, आठमे निरमल नाण मन० ३ समकित दरमण मन धरोजो, विनय करो गुणवंत, चारित्रपद अगीयारमेजी, बारमें धरो ब्रावत. मन० ४
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