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________________ क्रियाशुद्धि कोजीओजी, चौदमे तप निरधार; पन्नरमे गौंयम नमोजी, सोलमे जिनवर भाण. मन ५ सत्तरमे संजम भजो ज्ञान लहो गुण खाण ; सूत्र सिद्धांत ओगणीशमेजी, वीशमे तीरथनी जाव. मन०६ चोवीश पंदर बारनोजी, छत्रीस दस पणवीशः मंगवी पण सडसँठतणोजी, दस सित्तर नव पणवीश मन०७ बार अडवीश चोवीस सत्तरजी, इगवन पीस्तालीश पांच, अनुक्रमें काउस्सग्ग जे करेजी, ते पामें शिव वास. मन० ८ खट मासे अम कीजीयेजि, ओली एक सुजाण, पडिकमां दोय टंकनाजी; पडिलहण वे बारः मन० ९ देववंदन त्रण टंकनाजी, देवपूजे त्रिकाल, गुणण गणो मन थिर करीजी, गुरु वंयावच्च सार. मन० १० तपथी सवी संकट टलेंजी तपथी जाये क्लेश ; तपथी मनवांछित फलेजो; दुःख न पामे लेश. मन० ११ शुध्ध मने आराधतांजी; तीर्थकर पद जास; मोहन मुनिना हेमनेजी; द्यो समकित दुण पास. मन० १२ ४ श्री वीश रथानकनु स्तवन हारे मारे प्रणमुं सरस्वती माँग्रे वचन विलास जो, वीशेरे तप स्थानक महिमा गाइशं रे लोल; हारे मारे प्रथम अरिहंत पद लोगस्स चौवीश जो बीजे रे सिद्ध स्थानक पंदर भावशू रे लोल. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003286
Book TitleVishsthanak Tap Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay
PublisherBhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra
Publication Year1979
Total Pages102
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size4 MB
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