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________________ अठ्ठावीश चउ वीश ।। सित्तेर इगवन्न पोस्तालीश, पांच लोगस्स काउस्सग्ग कहींश नोकारवाली वीश ॥ अक अंक पदे उपतास ज वीश, मास खटे अक ओली करीश, इस सिध्धांत जगोश ॥ ३ ॥ शक्ते अकासगं तिविहार, छठ्ठ अठ्ठम मासखमण उदार, पडिकमणां दोय वार ।। इत्यादिक विधि गुरुगम धार, अंक पद आराधन भव पार उजमण विविध प्रकार ।। मातंग यक्ष करे मनोहार, देवी सिद्धाइ शासन रखवाल, संघविधन-अपहार ॥ खिमाविजय जस ऊपर प्यार, शुभ भावियण धर्मे आधार, वीरविजय जयकार ।।४।। ७. श्री वींश स्थानकनी स्तुति. वश स्थानक तप विशमां मोटो; श्री जिनवर कहे आप जी ।। वांधे जिनपद श्रीजा भवमां, करीने स्थानक नापजी थया थशे मवि जिनवर आरिहा, अॅ तपने आराधीजी ।। केवलज्ञान दर्शन सुख पाम्या, सर्वे टाली उपाधिजी ॥१॥ अरिहंत सिद्ध पक्यण सूरि स्थविर वाचक साध नाणजी, दर्शन विनय चरण वंभ किरिया, तप करो गोयम ठाणजी ।। जिनवर चारित्र पंचविध नाण, श्रुत तीर्थ अह नामजी ।। ओ वीश स्थान आराधे ते पामे शिवपद धामजी ।। २ ॥ दोय काल पडिकमण पडिलेहण देवनदब ऋण वारजी ।। नोकारवाली वीश गुणोजे, काउस्सग्ग गुण अनुसारजों ॥चरसो उपवासा करो चित्त चोखे, उजमण करो सारजी। पडिमा Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003286
Book TitleVishsthanak Tap Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay
PublisherBhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra
Publication Year1979
Total Pages102
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size4 MB
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