SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 54
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (४८) ३२ श्री धमतत्त्वज्ञापक शुभकथाकथक विवेकगुणोद्दीपक अशुभ कथावर्जक देशविरत श्रीतीर्थगुणाय नमः ३३ श्री आप्तधर्मशील परिवारकुटुंबअनुकूल विनरहित धर्म साधने साहय्यकारि सुगक्षि देशविरति श्रीतीर्थगुणाय नमः ३४ अतीतानागवर्तमानहेतु कारणकार्यशि सर्वथा स्वाहित कार्यकरणरूप दीर्घदर्शि देशविरति श्रीतीर्थगुणाय नमः ३५ सर्वपदार्थगुणदोषज्ञायक सुसंगि विशेषज्ञ देशविरति श्रीतीर्थगुणाय नमः ३६ वृद्धपरंपराज्ञायक सुसंगतिरूप वृद्धानुगामि देशविरति श्रीतीर्थगुणाय नमः ३७ सर्वगणमूल रत्नत्रयो तत्त्वत्रयशुद्धिप्रापक विनयरूप देश विरति श्रातीर्थगुणाय नमः ३८ श्रीधर्माचास्य बहुमानकर्ता स्वल्पमपि उपकारकारिन्यो आवस्मारक परापकारकरणतत्पर कृतज्ञ सदापरहितोपदेशकरण शील श्री देशविरति श्रीतीर्थगणाय नमः आ पदनु आराधन करवाथी मेरूप्रभ तीर्थकर थया छे. वीतमा पदनो अराधना करीने जैन तीर्थोनी यात्रा, श्रीसंघपूजा, स्वामीवात्सल्य, तीर्थोद्धार. रथयात्रा, दीनदुःस्थित अनाथादि सुखीकरण विगेरे कार्यों करीने जैन शसननी उन्नति करवी. जैनधर्मने दीपाववो. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003286
Book TitleVishsthanak Tap Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay
PublisherBhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra
Publication Year1979
Total Pages102
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy