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६४,, स्वाध्यायकरणरूप अभ्यंतर तपोयुक्ताय श्री चारित्राय
नमः
६५,, शुभध्यानकरणरूप अभ्यंतर तपोयुक्ताय श्रीचारित्राय
नमः
६६,, कायोत्सर्ग करणरूप अभ्यंतरतपोयुक्ताय श्रीचारित्राय
नमः
६७ क्रोधजयकराय श्री चारित्राय नमः ६८, मानजयकराय श्री चारित्राय नमः
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मायाजयकराय श्री चारित्राय नमः
लोभजयकराय श्री चारित्राय नमः
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आ पदनु ध्यान उज्ज्वल वर्णे करवु आ पदना आराध थी वरुणदेव तीर्थङ्कर थया छे.
[थ द्वादश ब्रह्मव्रतधारी पद आराधन विधि जनप्रतिमा जिनमंदिरां, कंचननां करे जेह.
तथ बहु फल लहे; नमो नमो शिवल सुदेह.
आ पदनी २० नवकारवाली ॐ नमो बंभवयधारिणं अ दवडे गणवी. आ पदना धाराधन माटे काउस्सग्ग १८ लोगसनो करवो. खमासमण १८ नीचे प्रमाणे बोलीने आपवा, मनमा औदा रिकविषय असेवनरूप श्रीब्रह्मचारिभ्यो नमः मनसा औदारिकविषय असेवानरूप श्रीब्रह्मचारिभ्यो नमः
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