________________ वीतरागाय नमः महाहर बन आराधना पन जीनगर, दिन-382 माँ-बापको भूलो नहि नित किया प्यार जिन्होने उन पावन चरण को भूलो नहीं। दीपक बनो उनकी राहपर मां-बाप को भूलो नही ॥धृ॥ लाख है एहसान उनके ऐसे मेहरबाँ कोई नहीं / अनंत दुख ताप साहकर तुम्हे दिखाई दुनिया नई / भले ही भूलो तुम सबको इन अमृत दाताको न भूलो। भुके रहकर तुम्हे खिलाया वो पावन चरण नित छुलो / संगदील बनकर हृदयको ठेस उनकें पहुँचाना नही / / 1 / / नाजोंसे पालकर बडा किया पलकोंपे झुलाया है तुमको। एहसान मंद रहो सदा भूलकरभी न भुलो कभी उनको। है खाँक कमाई लाख की गर भूल गये जो तुम उनको। है आँस सबही तुम उनकी जो होगी नीज सुतसे तुमको / जैसी करणी वैसी भरणी याद रहे कभी भूलो नही // 2 // खुद पीकर घुट आँसुओंके तुम्हे चैनकी नींद सुलाई है। खुद चलकर काँटोपे तुम्हारे पगपग फुल बिखैरे है / है जैसे पावन माँ-बाप जिनकी महानताका अंत नही। है सेवामें स्वर्ग उन्हीके सुख शांती भी मिले वही। धनसे मिलत सब जगतमें मां-बाप कहीं मिलत नही / / 3 / / कवि- सुधांशु अनु. हिरालाल शाह, कराड सहायक शा. तिलोकचंदजी धजिगजी भंडारी कराड