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________________ (४५) ११३ श्री पाहुडपाहुड श्रुतज्ञानाय नमः १४ ,, पाहुडपाहुडलमालश्रुतज्ञानाय नमः १५ , पाहुडश्रुततानाय नमः १६ , पाहुड समासश्रुतज्ञानाय नमः १७ , वस्तुश्रुतज्ञानाय नमः १८ , वस्तुसमासश्रुतज्ञानाय नमः १९ ॥ पुर्वश्रुतज्ञानाय नमः २० , पूर्वसमासश्रुतज्ञानाय नमः आ पदनुं शुभ भाववडे आराधन करवाथी रत्नचूड तीर्थकर पद पाम्या छे. १0 वीशमा तीर्थपदना आराधन नी वीधि. तीर्थयात्रा प्रभाव छ. शासन उन्नति काज. रमानंद विलासता. जय जय तीथे जहाज़. आ पदनी २० नवकारवाली ॐ नमो तित्थस्स मे पदबडे गगवी. आ पदनी आरोधना माटे काउस्सग्ग ३८ लोगस्सनो फरवो. खमासमण ३८ नीचे प्रमाणे बोलीने आपवा. १ सर्वया प्राणातिपातविरतिवत् श्रीसाधतीर्थगुणाय नमः २ सर्वथा मृपावादविरमणवतू श्रीसाधुतीर्थगुणाय नमः ३ सर्वथा अदत्तादानविरमणवत् श्रीसाधुतीर्थगुणाय नमः ४ सर्वथा मैथुनत्यागवत् श्रीसाधुतीर्थगुणाय नमः ५ सर्वथा परिग्रहत्यागवत् श्रीसाधतीर्थगुणाय नमः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003286
Book TitleVishsthanak Tap Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay
PublisherBhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra
Publication Year1979
Total Pages102
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size4 MB
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