Book Title: Vishsthanak Tap Vidhi
Author(s): Punyavijay
Publisher: Bhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra

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Page 88
________________ (८२) --: जगचिंतामणि चैत्यवंइन :जाँचतामणि! जगनाह ! जगगुरु ! जगरक्वण ! जगबंधइ! जगसत्थवाह! जगभाव विअक्खण! ,अठावयसंठविअरूव! कम्मठ्ठ विणासण! ; चउवीसंपि जिणवर जयंतु अप्पडिहय सासण! १ कम्मभूमिहिं कम्मभूमिहिं पढसंघणि, उक्कोसय सत्तरिसय, जिणवराण विहरंत लब्भइ; नवकोडिहिं केव लोण, कोडिसहस्स नवसाहु गम्मइ संपइ जिणवर वीस मुणि बिहु कोडिहिं वरनाण, समणह कोडि सहस्सदुअ, थुणिजइ निच्च विहाणि. २ जय उ सामिय ! जयउ सामिय रिसह सत्तुंजि; उजिति पहुनेमिजिण ! जय उ वीर! सच्चउरिड़मण ! भरुअच्छहि मुणिसुचय ! मुहरि पास दुह दुरिअ खंडण ! अवर विदेहि तित्ययरा बिहु दिसि विदिपि जिके वि, ती आणागय संपइअ नंदु जिण सवेवि. ३ सत्ताणवइ सहस्सा, लक्खाछप्पन्न अट्ठकोड़ीओ; बत्तीसय बासीयाई, तिअलो चेइ गंदे. ४ पनरस कोडि सयाई, कोडि बायाल लक्ख अडवना छत्तीस सहस असीइं, सामय बिबाई पणमामि. ५ जं किचि नाम तित्थं सग्गे पायालि मागुसे लोए; जाई जिणं बिंबाई ताई सव्वाइं नंदामि १ नमुत्थुणं अरिहंताणं, भगवंताणं १ आइगराणं, तित्थयराणं सयंसंबुद्धाणं २ पुरिसुत्तमाणं, पुरिससोहाणं, पुरिसवरपुंडरीआणं पुरिसवर गंध हत्थीणं ४ लोगुत्तमार्ण, लोगनाहाणं, लोगहिआणं, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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