Book Title: Vishsthanak Tap Vidhi
Author(s): Punyavijay
Publisher: Bhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra
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मोगाणं ८, सव्वदरिसोणं सिव सवल मरुझ मणतमक् वयमव्वाबाह म णराबित्ति सिद्धिगइ-नामध्ोयं, ठाणं संपता नमो जिनणं चिअभयाणं ९ जे अ अइसा सिद्धा, जे भविस्संति पागएकले, संदइ अ वट्टमाणा, सब्बे तिविण नंदामि १०
७० १
( पछी उभा थइने अरिहंत चेइआणं कहेवुं ) अरिहंत केइयाणं करेमि काउस्सग्गं, वंदणवत्तियाओ पूअणवत्ति या सक्कारबत्तियाओ सम्नाणवत्तियाओ, बेहिला भवत्ति याओ freeraशयाओ, सद्धाओ, मेहाओं, धिइओ धारणाओं अणुष्पपेहाओ वड्ढमाणीओ, ठामि काउस्सगं ।
अन्तत्थ उपसिओणं नीससिणं खासिणं छीओणं जंभाई अणं उड्डुअणं नायनिसरगेणं भमलिए पित्तमुच्छाओं, सुहुमेहि अंगसंचाललेह सुडुमेहि खेलसंचालेहि सुहुमेहिं विटिठ संचालहि tantra हि आगारेहिं अभग्गो अविराहिओ हुज्ज मे फ़ाउस जब अरिहंताणं भगवंताणं नमुक्कारेण न ताव कार्य ठाण मोनेणं झाणं अव्यानं बोसिरामि ।
[ अक नवक़रानो काउस्सग्ग ] पारीने
नमर्हस सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वं साधुभ्यः कही थोय कहेंवी.
थोय
A
वीश स्थानक तप विश्वमां मोटो, श्री जिनवर व हे आपजी || "जिनपद त्रीजा भवमां, करोने स्थानक जापजी ॥ थया
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