Book Title: Vishsthanak Tap Vidhi
Author(s): Punyavijay
Publisher: Bhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra

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Page 78
________________ (७२) अंग संचालेहि सुहुमेहि खेल संचालहि सहुमेहि दिट्ठि संचालेहि अवमाइओहि आगारेहि अभग्गो अविराहिओ हुज्ज में काउस्सग्गो, जाव अरिहंताणं भगवंता नमुक्कारे न पारेमि, बाव कायं ठाणेणं मोणेण झणेण अप्पाण वोसिरामि. (अक नवकारनो काउस्सग्ग) पारोने बीजो थोय कहेवी। अरिहंत सिद्ध पवयण सूरि स्थाविर, वाचक साँध नाणजी, दर्शन विनय चरण बंभकिरिया, तप करो गोयल ठाणजी। जिनवर चारित्र पंचविध नाण, श्रृत तीर्थ अह नामजी ।। अॅ वीश स्थानक आराधे ते शिवपद धामजी ।। २ ॥ ( पछी पुक्खरवरद्दीवडूढ़े कहे ) पुक्खरवरदीवड्ढे धायइ संडे य बुदीवे य, भरहेरवय विदेहे, धम्माइगरे नमसामि । ॥१॥ तमतिमिरपडलविद्धसणस्स, सुरगणनरिंदमहिअस्स सीमाधरस्स बंदे पप्फोडिय मोहजालस्स । जाई जरा मरण सोग पणोसणस्स, कल्लाण पुक्खल विसाल सुहावहस्स, को देव दागव नरिंद गणच्चियस्स धम्मस सारमुलब्भ करे पमाणें । ॥३।। सिद्धे भो पयओ णमो, जिणमों नंदी सया संजमे, देवं नाग सुवन किन्नर-गणस्सन्भूअ भावच्चिों, लोगो जत्थ दईटिठिो जगमिण तेलुक्कमच्चासुर, धम्मो वड्ढउ सासओ विजयओ धम्मुत्तर ६ डूउ ॥ ४ ॥ सुअस्स भगवाओ करेमि काउस्सग्गं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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