Book Title: Vishsthanak Tap Vidhi
Author(s): Punyavijay
Publisher: Bhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra
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(६५)
अन्नत्थ ऊससिओणं नोस सिण खासिण छोओण जंभाइण उडडुअण वायनिसगोणं भमलीओ पित्तमुच्छाओ सुमेहि अन्य संवालेहि सुहमेहि खेल संचालेह सुहुमेहि दिट्ठी संचालेहि अत्रमा अहि. आगारेहिं अभग्गो अविराहिओ हुज्ज मे काउसगो, जाव अरिहंताणं भगवंताणं नमुक्कारेणं न पारेमि, ताव कार्य ठाणं झणेणं अप्पाणं वोसिरामि. ( अंक नवकारतो काउस्सग्ग ) पारीने
नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधुभ्यः कही थोय कहेंवी. थोय
1
पूछे गौतम कीर जिणंदा, ममवसरण बेठा सुखकंदा पूजित अमर सूरिदा || केम निकाचे पद जिणचंदा, किण विध तप करतां भव फंदा, टाले दुरित दंदा || तब भाखे प्रभुजी गनदा, सुण गौतम वसुभूति नंदा, निर्मल तप अरविदा || वीश थानक तप करत महिंदा, जिम तारक समुदाये चंदा, तिम ओ सवि तप इंदा ॥ १ ॥
( पछी लोगस्स कहेवो )
लोगस्स उज्जोअगरे, धम्मतित्थयरे जिणे; अरिहंते कित्तहस्सं चउवीसंपि केवल, १ उसभमजिअं च वंदे, संभवमभिणंदणं च सुमइंच पउमप्यहं सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वंदे. २ सुविहिं जपुप्फदंतं, सीअल सिज्जस वासूपुज्ज च; विमलमणंत च जिणं, धम्मं संति च वंदामि ३ कुंथुं अरं च मल्लि
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