Book Title: Vishsthanak Tap Vidhi
Author(s): Punyavijay
Publisher: Bhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra

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Page 73
________________ (१७) गणीजे, करियाणं तवस्स करीजे; गोयम जिणाणं लहीजे ॥ चारित्र नाण श्रुत तित्थस्स कीजे, त्रीजे भव तप करत सुणीजे, अ सवि जिन तप लीजे ॥ २ ॥ . पुक्खगवर दीवड्ढे, धायइसंडेय जंबुहीवे य, भरहेग्वय विदेहे, धम्माइ गरे नम॑सामि १ तमतिमिर - पड़ल-विद्ध ं सणस्स, सुरगणनरंद महियस्स, सीमाधरस्स गंदे, पष्फोडिय मोहजा लस्स. २ जाइ-जरा-मरण-सोग पणासणस्स, कल्लाण पुक्खलविसाल-सुहा-वहस्त को दव दाणव- नरिंदगणच्चियस्स धम्मस्स सारमुवलब्भ करे पमायं, ३ सिद्ध भो! पयओ णमो जिणमओ नंदी सया संजभे, देव-नाग-सुवन्न- किन्नर गण-स्सकभूअ - भावचिअ लोगो जत्थ पइटुओ जगमिणं तेलुक्कमचासुरं, धम्मो वड्ढउ सामओ विजयओ धम्मुत्तरं वड्ढउ ४ , सुअस्स, भगवओ करेमि काउस्सग्गं. गंदणवत्तियाओ पूअणवत्तिया सक्कार-वंत्तियाए, सम्माण - वत्तियाए, बोहिलाभ वतियाए, निरुठणसग्ग-बत्तिया सद्धाए मेहाअ घिई धारजाओ अगुप्पेहाओ बड्ढमाणीओ ठामि काउस्सग्गं. क अन्नत्थ ऊस सिअ णं, नीस सिगं खासिअ गं छीअगं जंभाअणं उड्डुअणं वायनिसग्गेणं भमलीओ पित्त-मुच्छा, सुहुमेहि अगसंचालह सुमेहि खेल संचालेहि सहुमेहि दिट्टिसंचाहि अवमाइ हि आगारेहिं अभग्गो अविराहिओ हुज्ज ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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