Book Title: Vishsthanak Tap Vidhi
Author(s): Punyavijay
Publisher: Bhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra

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Page 46
________________ (४०) अष्टादश अभिनवज्ञानपद आराधन वि ज्ञानवृक्ष सेनो भविक, चारित्र समकित मूल अजर अमरपद फल लहो ज़िनवरदवी फूल आ पदवी २० नवकारवाली ॐ नमो अभिनवनाणस्र पदवडे गणवी, आ पदना आराधननो काउस्सग्ग ५ अथवा ५ लोगस्सनो करवो. आ पदना खमासमण ५१ नीचे प्रणा बोलीने आपवा. नमः नम नमः नमः » تم नमः नमः م १ श्री आचारांगसूत्र श्रुतज्ञानाय २ ॥ सूअगडांगसूत्र श्रुतज्ञानाय ३” स्थानांगसूत्र श्रुतज्ञानाय , समवायांगसूत्र श्रुतज्ञानाय , भगवतीसूत्र श्रुतज्ञानाय , ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र "मरागसूत्र श्रुतज्ञानाय , उपासकदशांगसूत्र श्रुतज्ञानाय , अंतगडदशांगसूत्र श्रुतज्ञानाय , अनुत्तरोववाइअंगसूत्र श्रुतज्ञानाय , प्रश्रव्याकरणांगसूत्र श्रुतज्ञानाय , विपाकांगसूत्र श्रुतज्ञानाय १२ , उववाइउपांगसूत्र श्रुतज्ञानाय م नमः नमः م م नमः नमः नमः ه مه Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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