Book Title: Vishsthanak Tap Vidhi
Author(s): Punyavijay
Publisher: Bhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra
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(५४)
।। ७ ।।
हारे प्रभावना संघ स्वामीवच्छल सार जो, उनमणा विधि कीजे विनय लोजीओरे लोल, हारे अ तपनो महिमा कहें श्री वीर जिनराय जो, विस्तारे इस संबंध गोयम स्वामोने रे लोल, होर तप करतां वली तीर्थङ्कर पद होय जो, देव गुरु इम कांति स्तवन सोहामणो रे लोल. अथ वींश स्थानकना तपनी स्तुति
।। ८ ।।
पूछे गौतम बोर जिणंदा, समवसरण बेठा सुखकंदा, पूजित अमर सूरिंदा || केम निकाचे पद जिनचंदा, किण विध तप करतां भव फंदर, टाले दुरित दंदा || तब भाखे प्रभुजी गतनिदा । सुण गौतम वसुभूति नंदा, निर्मल तप अरविंदा || वीश थानक तप करत महिंदा, जिम तारक समुदाये चंदा, तिम ओ सवि तप इंदा ।। १ ।। प्रथम पदे अरिहंत नमीजे, बीजे सिद्ध पवयण पद त्रीजे, आचारज थेर ठविजे ।। उपाध्याय ने साधु ग्रहीज, नाम दंसण पद विनय वहीजे अगीयारमे चारित्र लीजे ॥ बंधवयधारोण गणीजे, किरियाण तवस्स करीजे गौयम जिगाणं लहोजे ॥ चारित्र नाणः श्रुत तित्थस्स कीजे, त्रीजे भव तप करत सुणीजे, ओ सवि जिन तप लीजे ॥ २ ॥ आदि नमो पद सघले ठवीश, बार पन्नर बार वली छत्रीश, दंश पणवीश सगवीश || पांच ने सडसठ तेर गणोश, सतर नत्र किरिया पचवीश, बार
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