Book Title: Vishsthanak Tap Vidhi
Author(s): Punyavijay
Publisher: Bhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra
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भरावो संघ भक्ति करो, में विधि शस्त्र मोझारजी ।। ३ ॥ श्रेणिक सत्यकी सुलसा रेवती । देवपाल अवदात जी ॥ स्थानक तप सेवा महिमा थया जगमांहि विख्यातजी । आगमविधि सेवे जे तपिया, धन्य धन्य तस अवतारजी ॥ विघ्न हरे तस शासनदेवी सौभाग्य लक्ष्मी दातारजी ॥ ४ ॥
८. श्री वीश स्थानकनी सज्झाय. अरिहंत पहले स्थाने गणोओ, बोजे पद सिद्धाणं, त्रीजे प्रवचन आचार्य चोथे, पांचमे पदवी थेराणं रे ॥ १ ॥ भको आं वीश स्थानक तप कीजे. ओली नीश करीजेरे, भ० गुणणं ॲह गणोजेरे भ० जिमी जिनपद पामोजे रे, भ० नरभव लाहो लीजे रे, भ० अ आंकणी. उपाध्याय छठे सन्न साहुणं सातमे आठमे नाण, नव मे दर्शन दशमे निणयस्स, चारित्र
अग्यारमे जाण रे, भ० ॥२॥ बारमे ब्रह्मव्रतधारीणं तेरे में किरियाणं, चौंदमें तप पंदरम गोयम, सोलसमें नमो जिणाणं रे, भ० ॥३॥ चारितस्स सत्तरमें जपीओ, अट्ठारस्समें नाणस्स, ओगणीशमे नमो सुयस्स संभारो, गोशमे
नमो तित्थस्त रे, भ० ॥४॥ अकासणादि तप देववंदन, गुण दोय हज़ार, सत्यविजय बुधशिष्य सुदर्शन, जपे अह विचार रे, भ० ॥ ५ ॥
(ज्ञाननिमलसूरिकृत)
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