Book Title: Vishsthanak Tap Vidhi
Author(s): Punyavijay
Publisher: Bhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra

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Page 63
________________ (५७) ६. श्री वीशस्थानक सज्माय. (सारदबुधदाइ- देशी) अरिहंत प्रथम पदे, लोगस्स चोवीश बार, बीजे पद सिद्धा अडवन पनर विचार, पवयणपदे नव सग, सूरि पद छत्तोश, थिविरे दश वाचके, द्वादश वली पणवीश. ॥१॥ त्रुटक-तिम इगवीस अने सगवीश, साधुपद आराधो; नाण पदे पण दंसणं सतसठि, विनयपदे दश साधो, चरितपदे खट् सतर कहीजे, बंभ पदे नव जाणो, किरिया तेर अणे पणवीसा, बारस तप मुनि आणो, ॥२। गोयम पदे इगदस लोगस दश जिन नाम, चरितपदे सगदस, नाणे पण अभिराम इम वली पण लोगस, श्रुतपदे काउसग कोजे, पण लोगस वीश, तीर्थपदे प्रणमीजे. ॥३॥ त्रुकट तिम कीजे दोय सहस गुणनस्यु, स्थानक आराधीजे, वीश वार इग विधिश करतां, तीथंडर पद लीजे, नाम फेर दीसे बहु ग्रंथे, पण परमारथ अक, उभय टंक आवश्यक जयणा, कोजे धरिये विवेक. ॥४॥ काउसग्गनो विधि जे दाख्यो, तप आराधन हो, शास्त्रमाही ते नवि दीसे तोही परंपरा विगते, चोथे अथवा छ8 स्थानक, करतां लहोजे पार, धीरविमल कवि-सेवक नय कहे, तप शिवसुख दातार. इति श्री वीश स्थानक तपनी विधि: शुभ मुहूर्ते गुरु समोक्षे आ तप विधिपूर्वक शरु करवो. अक ओली छ महिनामां पूर्ण करवी जोइ. न थाय तो ते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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