Book Title: Vishsthanak Tap Vidhi
Author(s): Punyavijay
Publisher: Bhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra

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Page 53
________________ २३ क्षुद्रतातुच्छतादोषरहित अतिगंभीर उदारतागुणमाहित स्वपरभेदरहित परजनआदिसर्वजनोपकारि श्रीदेशविरतिरूप श्रीतीर्थगुणाय नमः २४ पूर्वभवकृतदयाधर्मफलेन सर्वजनदर्शनीय सर्वागउपांगसं पूर्णाग शुद्धसंघर्याण धर्मप्रभावक देशविरति श्रीतीर्थग णाय नमः २५ पापकर्मजित जगन्मित्र सुखोपासनीय सौम्यप्रकृति श्री देश विरतिरूप श्रीतीर्थगुणाय नमः २६ द्रव्यक्षेत्रकाभानैः लोकविरुद्ध धर्मविरुद्धवर्जनरूप श्रीदेश विरतिरूप श्रीतीर्थगुणाय नमः २७ मलिनक्लिष्टक्रूरतादोषरहित सदयमोज्ञरूप श्रीदेशविर तिरूप श्रोतीर्थगणाय नमः २८ इहपरलोकापायदायक राग, द्वेष, जन्म, जरा, मरण, दुर्गतिपातनरूप अड़सठ लौकिक तीर्थवर्जक श्रीदेशविरतिरूप श्रीतीर्णगुणाय नमः २९ सर्वजनावंचक विश्वसनीय प्रशंसनीय भानैकसनजनघर्मो द्यमकारि देशविरति श्रीतीर्थगुणाय नमः ३० स्वकार्यगौ गगणक परकार्यमुख्यकर साधक सर्वजनउपा देयवचनरूप दाक्षिण्यवद् देशविरति श्रीतीर्थगुणाय नमः ३१ यथातथ्यधर्मज्ञापक परविषयअद्वषप्रकृति अनर्थवर्जक सौ भ्यरूपदृष्टिमध्यस्थ देशविरति श्रीतीर्थगुणाय नमः Jain Education International For Private & Personal Use Only ____www.jainelibrary.org

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