Book Title: Vishsthanak Tap Vidhi Author(s): Punyavijay Publisher: Bhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra View full book textPage 7
________________ श्री वीशस्थानक तप आराधन विधि. ___ साधु साध्वी जो अ तप करे तो जे पदना जेटल गुण होय तेटला लोगस्सनो काउस्साग, तेटला खमासमण अने में पदनी वीश नवकारवाली गणे. उपरांत अवकाश मलतो होय तो त्रण कालना देववंदन पांच शस्तव, त्रण चैत्यवंदन अने आठ स्तुतिओ बडे करे. आ तपना करनारा श्रावक श्राविका सवार सांज प्रतिक्रमण करे, वे वखत पडिलेहण करे, त्रिकाल पूजा करे, ब्रह्मचर्य पाले. असत्य, चोरी नो त्याग अने रागद्वषनी मंदता करे, बने तेटलो आरंभनो त्याग करे, न बने तो उदासीन भावथी, लूखा परिणामथी पोतानो निभाव करी ले. बाकीनी विधि-काउस्सरग, खमासमण, देवबंदन, वीश नवकारवाली विगेरे ऊपर कह्या प्रमाणे करे, शक्ति होय तो ते तप संबंधी उपवासने दिवसे देरासरमां पदना गुण प्रमाणो साथीआ करी तेनी ऊपर तेटलां फल, नैवेद्य अने द्रव्यादिक चड़ावे. अवी रीते अक अंक पदना आराधन माटे वर्तमान कालानुसारे यथाशक्ति वीश अट्टम, अथवा छट्ट, अथवा उपवास, अथवा आयंबिल, नीवी के ॲकासणा करे. अकासणाथी ओछो तप कराय नहि . प्रथम शुभ दिवस, बार, नक्षत्र, चंद्रबल जोइने गुरु पासे विधि सहित आ तप उच्चरे अने शरु करे जघन्य थी वे महिनामां अंक ओली करे, उत्कृष्ट थी छ महिनामां अक ओली पूर्ण करे. छ? अट्टमथी करनार अक वर्षमा एक ओली पूर्ण करे. तप पूरो थाय त्यारे गुरुमुखे धारी लडने यथाथशक्ति उजमण करे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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