________________ प्रो. डॉ. दामोदर शास्त्री : एक परिचय राजस्थान (शेखावाटी अंचल) के अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त संस्कृतसेवी * परिवार में ई. 1942 में जन्म। लघु वय में ही वाराणसी में उत्कृष्ट विद्वानों की सन्निधि में संस्कृत-व्याकरण, न्याय, साहित्य आदि शास्त्रों का गम्भीर अध्ययन। वहीं नव्यव्याकरण में आचार्य, शास्त्री (नव्यन्याय) एवं बी.ए. परीक्षाएं उत्तीर्ण करने के अनन्तर, 1966 ई. में प्राकृत व जैनदर्शन के अध्ययन में रुचि। वैशाली (बिहार) से प्रथम श्रेणी में एम.ए. (प्राकृत व जैनविद्या) उत्तीर्ण। राजस्थान विश्वविद्यालय से एम.ए. (संस्कृत) तथा आचार्य (जैनदर्शन)-ये दोनों परीक्षाएं प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण। इनके अतिरिक्त, * एम.ए. (हिन्दी साहित्य), आचार्य (दर्शन) आदि-आदि परीक्षाएं भी उच्च अंकों से उत्तीर्ण। 1971 ई. में दिल्ली आकर जैन दर्शन के विख्यात विद्वान् डॉ. लालबहादुर शास्त्री * के पास जैन दर्शन का शास्त्रीय अध्ययन / उन्हीं के निर्देशन में ई. 1975 में विद्यावारिधि (पी-एच.डी.) उपाधि जैनदर्शन विषय में प्राप्त। विश्वेश्वरानन्द वैदिक शोध संस्थान, होशियारपुर (पंजाब).में 2 वर्षों तक ग्रन्थ-सम्पादन व शोध के अधिकारी, तथा भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली में दो वर्षों तक सम्पादन-प्रकाशन कार्य में संलग्न रहकर अध्यापन कार्य में प्रविष्ट / महावीर विश्वविद्यापीठ, नई दिल्ली में (1971 ई. से) 2 वर्षों तक प्राकृत व जैनदर्शन विभाग के अध्यक्ष, श्री लालबहादरशास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ (मानित * विश्वविद्यालय) नई दिल्ली में (1975-1991 ई.) जैन-दर्शन विभाग के प्राध्यापक और 1985 ई. में * उपाचार्य व अध्यक्ष के रूप में कार्यरत। 1991 ई. में राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान (मानित विश्वविद्यालय), * नई दिल्ली के जयपुर परिसर में जैन दर्शन विभाग के उपाचार्य व अध्यक्ष के रूप में कार्यरत। ई. * 1995 में उक्त संस्थान के अन्तर्गत ही राजीव गांधी संस्कृत विद्यापीठ, शृंगेरी (कर्नाटक) में प्रभारी * 'प्राचार्य' के पद पर कार्यरत। (ई. 2004 में संस्थान की सेवा से विमुक्त।) ई. 2007 से जैन विश्व * भारती (मानित विश्वविद्यालय), लाडनूं (राजस्थान) में जैनविद्या एवं तुलनात्मक धर्म व दर्शन * विभाग में प्रोफेसर के रूप में कार्यरत। करीब 34 वर्षों तक स्नातक व स्नातकोत्तर कक्षाओं में जैनदर्शन व प्राकृत के अध्यापन-शोध में * कार्य में संलग्न रहते हुये, अनेक कृतियों व निबन्धों के सृजन, सम्पादन व प्रकाशन का कार्य किया। * * 'अखिल भारतीय प्राच्य विद्या सम्मेलन' में प्राकृत व जैनविद्या विभाग की (1928 ई. में) अध्यक्षता ******************* [11] *******************