________________ **************************************** संयम-साधना, स्वाध्याय और गुरु-सेवा के साथ-साथ परम पूज्य आचार्य श्री ने लोक* मंगल के अनुष्ठानों में भी अपना भरपूर सहयोग समर्पित किया है। शिक्षा, सेवा एवं चिकित्सा के क्षेत्र में आपकी प्राणमयी प्रेरणाएं समाज को सतत प्रेरित करती रहीं। आपकी प्रेरणा से जहां 'मुनि माया-* * राम जैन अस्पताल' जैसा आधुनिक चिकित्सा क्षेत्र में अग्रणी संस्थान निर्मित हुआ, वहीं अनेक + डिस्पैंसरियां, विद्यालय एवं जैन धर्म-स्थानकों का भी निर्माण हुआ। पूज्य आचार्य श्री का सम्पूर्ण व्यक्तित्व उत्कृष्ट सृजनधर्मिता की मिसाल है। स्वयं की साधना * में सतत जागरूक रहते हुये आप स्वस्थ समाज के निर्माण में प्रतिपल संलग्न रहते हैं। पूज्य आचार्य श्री एक प्रबुद्ध चिन्तक, सर्जक एवं कलम कलाधर होने के साथ-साथ * प्रवचन-प्रभावना में भी विचक्षण एवं विलक्षण हैं। आपकी प्रवचन शैली सारगर्भित, तत्वान्वेषिणी, + मधुर एवं सरसता से पूर्ण है। आपको सुनते हुये श्रोता आध्यात्मिक रस से सराबोर हो उठते हैं। सामाजिक एवं अकादमिक संस्थाओं ने आचार्य श्री के समुज्ज्वल व्यक्तित्व को संघशास्ता, * * विद्यावाचस्पति (पी-एच.डी.) विद्यासागर (डी.लिट्), आगम रत्नाकर प्रभृति महनीय बहुमानों से * अभिनन्दित किया है। 27 फरवरी, 2005 को चतुर्विध श्रीसंघ ने आत्म-साधना, धर्म-प्रभावना, . * साहित्य सृजन, संस्कार निर्माण, जन-जागरण एवं जीवन-मूल्यों की स्थापना में संलग्न आप श्री को * * 'आचार्य-रत्न' के महनीय पद से भी गौरवान्वित किया। आपश्री के ओजस्वी वक्ता श्री रमेश मुनि * जी, श्री अरुण मुनि जी, तपस्वी श्री नरेन्द्र मुनि जी, श्री अमित मुनि जी, घोर तपस्वी श्री हरि मुनि जी, * श्री प्रेम मुनि जी, श्री मुकेश मुनि जी, श्री मुदित मुनि जी, श्री संदीप मुनि जी शिष्य-प्रशिष्य रत्न हैं। -संपादक ******************* [10] *******************