Book Title: Vijaychand Kevali Charitra Author(s): Chandraprabh Mahattar Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha View full book textPage 6
________________ अष्टप्र. // 1 // सुरपुरनयरं ऽश्यस्स देश कुरुचंदनामधेयस्स।लेश सयं पवऊं केवलियो पायमूलंमि // 10 // विजयविहरश्मुणी महप्पा गीयबो गुरुजणेण अणुन्नायो।जग्गतवसोसियंगो गामागरमंमियं वसुहं॥ |वासारत्ते पत्ते' नीसेसं वजिऊण आहारं / पव्वयगुहाए निच्चं चि सो एगपाएण // 12 // || सिसिरे सीयं गिम्हंमिश्रायवं सहश्दूसहं धीरो।उवसग्गसहस्सेवि गिरिव नहु चलताणाओ॥18 एवं तवो विहाणं बारसवरिसाण सो चरेऊण / संपत्तो तुंगगिरि काणणवणमंमियं रम्मं // 14 तब सिलायलवटे घणघाश्चउक्ककम्मदलणळ / आरुहश् सुहलाणं निच्चलचित्तो महासत्तो // 15 // तग्गरुयकाणविमियमणाहिं गुरुसत्तजणियतोसाहिं। वणदेवयाहिं मुक्कासीसे कुसुमंजलीं तस्स१६ / काणानलेण धीरो महिऊणं घाश्कम्मवणगहणं। लोबालोअपयासं उप्पाम केवलं नाणं // 17 // उप्पन्ने वरनाणे सहसा देवेहिं बाश्यं गयणं / मुक्का य कुसुमवुही गंधोदयमीसिया सीसे॥१७॥ 12 वऊंति उंही नचंति सुरगणा तुझाउँ। गाय किंनरिसबो गुणनियरं विजयचंदस्स // 15 // || देवा शुणं ति तुझा गुरुमोहमहान जिणेऊणं / गहिया सिवसुहलली नाह तए जसैपमायव // 08 * श्य सुरसंथुयचलणो संपत्तनरामराए परिसाए।सुरकयकंचणपउमे उवविछो साहए धम्मं // 1 // “जीवो श्रणाइनिहणो चउगसंसारसायरे घोरे। जिनधम्मजाणरहिउ निवमपुकाई विसहंतो // 1 // चिंतामणिव फुलहो मणुयत्नवो सुकयकंमरहियाणं। लकेविहुमणुयनवेलहो जिणदेसिधम्मो 1 पत्तो / 2 सधं / 3 जय / R Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak TE!Page Navigation
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