Book Title: Vijaychand Kevali Charitra Author(s): Chandraprabh Mahattar Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha View full book textPage 5
________________ 436HPREHURIPHARMAISHUDHURIABROSOSIAL ॐ नमः सर्वज्ञाय। अष्टप्रकारी पूजानपर आठ दृष्टांतयुक्त श्रीविजयचंदकेवलीचरित्र। आर्या 4 सयलसुरासुरकिंनर विडाहरनरवरिन्दथुअचलणम्। जच्चसुवन्नशरीरं पणमह वीरं महावीरं // 1 // & कमलासने निसन्नं कमलमुहं कमलगनसमवन्नं। जुवनजणजणियतोसं जिनवाणिं नमह जत्तीए॥ अनि पुरं रयणउरं जारहखेत्तस्स मनयारंमि।तब परिवस राया रिउमद्दण नाम विकायो॥३॥ ना से अणंगरई रश्व रूवेण पउमदलनयणा / विसए मुंजताणं ताणं पुत्तो समुप्पन्नो // 4 // नामेण विजयचंदो चंदोश्व सयलजणमणाणंदो। बहुदेसनासकुसलोनजाओ अस्थि से दोन्नि पढमा य मयणसुंदरिनामे उश्या य कमलसिरि नामा। ताणुप्पन्ना पुत्ता कुरुचंदो तहय हरिचंदो॥ अह अमया कयाई विहरंतो तब आगो सूरि।तस्स परिवंदणचं वच्चश्रायासपरिवारो // 7 // सुणिऊण य परिकहियं संसारासारयं महाराज। सपए उविजं पुत्तं गिण्ह दिकं गुरुसमीवे // 7 // है विजयचंदो य पछा पाले कुलकमागयं रऊं। कुसुमपुरं वरनयरं देश तो विएटुचंदस्स // 1 सुन्नि / 2 नामा / 3 (हरिचंस्य)॥ OSIGUROSHIRISHISHIRAISHUSHUSHAHARA MHAc.Gunratnasuri M.S. Jun Gun AaradhakPage Navigation
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