Book Title: Vaishali Institute Research Bulletin 6
Author(s): L C Jain
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur

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Page 19
________________ इस युग का सर्वश्रेष्ठ विद्वान् उठ गया पं0 जगन्मोहन लाल शास्त्री श्री पं० कैलाशचन्द्र जी शास्त्री का देहावसान दि० १७ नबम्बर '८७ को हो गया, यह उनके सुपुत्र ने रांची से समाचार दिये तो मैं हतप्रभ हो गया। पंडित कैलाशचन्द्र जी का जीवन अध्ययन काल के बाद सन् १९२४ ई० से ही सामाजिक जीवन बन चुका था। स्याद्वाद महाविद्यालय के वे एक सफल प्रधानाध्यापक थे। गत ५०-५५ साल में जो विद्वान् काशी विद्यालय से निकले, समाज में ८० प्रतिशत वे ही काम कर रहे हैं। भा० दि० जैन संघ की स्थापना में उनका प्रमुख हाथ था, मुझे संघ समिति में सन् ४३-४४ से सदस्यता का स्थान प्राप्त था। स्वनामधन्य पं० राजेन्द्र कुमार के त्याग-पत्र के बाद सन् ५३ में पं० कैलाश चन्द्र जी ने प्रधानमन्त्री पद सम्हालने की प्रेरणा दी, पं० बलभद्र जी के द्वारा संघ से त्यागपत्र देने से जैन सन्देश का भी भार आया, दो वर्ष के बाद मैने पंडितजी का सहारा लिया और सन् ६८ तक मेरे सह-सम्पादक रहे । सन् ६९ में मेरे 'जैन सन्देश' के सम्पादक के पृथक् होने से पंडितजी ने पूर्णतया 'जैन सन्देश' का सम्पादकत्व सम्हाला और ८७ तक लगातार 'जैन सन्देश' के प्रधान सम्पादक के रूप में समाज की महती सेवा की। उनकी लेखनी दमदार थी, आगम पक्ष सदा उनके सामने रहता था और समाज की उन्नति उनका ध्येय था। कुरीतियों, धार्मिक शिथिलताओं की ओर उनका कड़ा कदम रहता था। विरोध और निन्दा और अन्याय भी उनको सहना पड़ा, पर पैर पीछे नहीं किये। वे शूरवीर थे दृढ़ संकल्पी थे। साहित्य-क्षेत्र में षटखण्डागम, कषाय पाहुड जैसे वरिष्ट आगम के सूत्रों की तथा उनकी कठिनतम टीकाओं का अनुवाद करने में उनका प्रमुख हाथ रहा, अनेक ग्रन्थों को स्वयं टीका की, अनेक ग्रन्थों का अनुवाद भी किया। समाज में पर्पूषण, अष्टान्हिका, महावीर जयन्ती आदि पर्वो पर तथा पंचकल्याण, वेदी प्रतिष्ठा, सभाओं के अधिवेशनों व अन्य उत्सवों पर वे जाते थे और उनके भाषण समाज को मार्ग-दर्शन देते थे। स्वनामधन्य शताब्दि में गुरुवर पंडित गोपालदास जो द्वारा जी भी जैन धर्म की सेवा, विद्वानों का निर्माण, समाजोत्थान, शास्त्रार्थ आगम अर्थ हुए, इस वर्ष उनके सभी कार्यों की सराहना, पं० कैलाश चन्द्र जी ने की वे मेरे सहपाठी थे, भाईचारा मेरे साथ उनका अपने भाई से ज्यादा था। प्रारम्भ में ७० वर्ष तक मेरा उनका जीवन भर साथ रहा। उनके स्वर्गारोहण से समाज का एक अमूल्य रत्न खो गया। जिसकी पूर्ति सम्भव नहीं है। मेरी उनके प्रति सविनय सप्रेम श्रद्धांजलि है। * कटनी, (म० प्र०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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