Book Title: Upasakdasha Shrutam
Author(s): Abhaydevsuri
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 30
________________ उपासक॥ १४ ॥ खलु मे भन्ते कपइ अज्जप्पभिई अन्नउत्थिए वा अन्नउत्थियदेवयाणि वा अन्नउत्थियपरिग्गहियाणि अरितइयाई वा वन्दित्तए वा नमसित्तए वा, पुव्विं अणालत्तणं आलवित्तए वा संलवित्तेए वा. तेसिं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा दाउं वा अणुप्पदाउं वा, नन्नत्थ रायाभिओगेणं गणाभिओगेणं वलाभिओगेणं देवाभिओगेण गुरुनिग्गहेणं वित्तिकन्तारेण । कप्पड़ मे समणे निग्गन्थे फासुएणं एसणिजेणं असणपाणखाइमसाइमेणं वत्थकम्बलपडिग्गहपायपुञ्छणेणं पीढफलगसिज्जासंधारएणं ओसहभेसजेणं य पडिला भेमाणस्स विहरित "त्ति कट्टु इमं एयारुवं अभिग्गहं अभिगिहइ, रत्ता पसिणाई पुच्छ३, २त्ता अट्ठाई आदियइ २त्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो बन्दइ २त्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तियाओं दृइपलासाओ चेइयाओ पडिणिमइ, २ त्ता जेणेव वाणियगामे नयरे, जेणेव सए गिहे, तेणेव उवागच्छ्इ, २त्ता सिवानन्दं भरियं एवं वयासी । “ एवं खलु देवाणुपिया ! मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तिए धम्मे निसन्ते, सेवि धम्मे में इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए, तं गच्छ णं तुमं देवाणुपिया ! समणं भगवं महावीरं दाहि जात्र पज्जुवासहि, समणम्स भगवओ महावीरस्स अन्तिए पञ्चाणुवइयं सत्तसिक्खावइयं दुवाल दशाङ्गम. ।। १४॥

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