Book Title: Upasakdasha Shrutam
Author(s): Abhaydevsuri
Publisher: Atmanand Jain Sabha
View full book text
________________
उपासक॥ १५ ॥
मिति ॥ वित्तिकन्तारेण वृत्तिर्जीविका, तस्याः कान्तारमरण्यं तदित्र कान्तारं क्षेत्र कालो वा वृत्तिकान्तारं निर्वाहाभाव इत्यर्थः । तस्मादन्यत्र निषेधो दानमणामादेरिति प्रकृतमिति ॥ ' परिगर्हति पात्रम । पीछे नि फलगं ति अवलम्भादि फलकम ।' भेसजं ति पथ्यम || 'अट्टाई ति उत्तरभूतानर्थानाददाति ॥ ५८ ॥
पट्टादिकम
तणं सा सिवानन्दा भारिया आणन्देणं समणोवासएणं एवं वृत्ता समाणा हट्टतुट्टा कोडुम्बियपुरिसे सदावेइ, २ ता एवं वयासी । "खिप्पामेव लहुकरण" जाव पज्जुवास ॥ ५९ ॥
लहुकरण' इत्यत्र यावत्करणालहुकरणजुत्त जोइय मित्यादिर्यानवर्णको व्याख्यास्यमानसप्तमाध्ययनवदवमेयः ॥ ५९ ॥ तणं समणे भगवं महावीर सिवानन्दाए तीसे य महइ जाव धम्मं कहेइ ॥ ६० ॥ तए णं सा सिवानन्दा समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्ति धम्मं सांच्चा निसम्म हट्ट जाव गिम्मिं पडिवजइ. २ ता तमेव धम्मियं जाणप्पवरं दुरुहइ २ ता जामेव दिस पाउदभया तामेव दिसं पडिगया ॥ ६१ ॥ भन्ते ! ति भगवं गोयम समणं भगवं महावीर चन्द्र नर्मस २ ता एवं वयासी । पणं भन्ते! आणन्दे समणांवास देवाणुप्पियाण अन्तिम मुण्डे जाव पइए ? 1 ना तिट्टे समट्ठे गोयमा ! | आणन्देणं समणांवासए वहई वासाई समणांवासगपरियाय पाउणहिइ २ ता जाव सोहम्मे कप्पे अ
दशाङ्गम.
॥१५॥

Page Navigation
1 ... 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118