Book Title: Upasakdasha Shrutam
Author(s): Abhaydevsuri
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 38
________________ दशाप ॐ उपासक- & विहिपुव्वं ॥११॥” 'अट्ठवं ति' अष्टमी स्वयमारम्भवजनप्रतिमां। तद्रूपमिदम्। “वज्जइ सयमारंभ, सावजं न कारवेइ पेसेहि। वित्तिनिमित्त पुन्वयगुणजुत्तो अट्ट जा मासा ॥१२॥ 'नवमं ति' नवमीं भृतकोप्यारम्भवर्जनप्रतिमाम् । सा चेयम् । “पेसेहिं आरम्भ, सावज्ज कारवेइ नो ॥१८॥ गुरुयं । पुब्बोइयगुणजुत्तो, नव मासा जाब विहिणाओ ॥१३॥'दसमं ति' दशमी उद्दिष्टभक्तवर्जनप्रतिमाम । सा चैवम् ॥ "उद्दिट्टकर्ड भत्तं, विवज्जए किमुय सेसमारम्भ। सो होइ य खुरमुण्डो, सिहलिं वाधारए कोई ॥१४॥ दव्वं पुट्ठो जागं, जाणइ वयइ य नो वेइ (?)। पुव्वोदिगुणजुत्तो, दस मासा कालमाणेणं ॥ १५ ॥ 'एक्कारसमं ति'। एकादशी श्रमणभूतप्रतिमाम । तत्स्वरूपं चैतत । "खुरमुण्डो लोएण रयहरण ओग्गई (पडिग्गह) च घेत्तूणं। समणभूभो विहरइ, धम्म कारण फासन्तो॥१६॥ एवं उक्कोसेणं, एक्कारस मास जाव विहरेइ । एक्काहाइपरेंगे, एवं सव्वत्थ पाएण ॥ १७ ॥ इति ।। ७१ ।। 'उरालेण' मित्यादिवर्णको मेघकुमारतपोवर्णक इव व्याख्येयः। यावदनवकाङ्कविहरतीति ।। ७२ ॥ तए णं तस्स आणन्दस्स समणोवासगस्स अन्नया कयाइ पुव्वरत्ता जाव धम्मजागरियं जागरमाणस्स A अयं अज्झथिए ४ । एवं खलु अहं इमेणं जाव धमणिसन्तए जाए। तं अस्थि ता मे उट्ठाणे कम्मे वले वीरिए पुरिसकारपरकमे महाधिइसंवेगे। तं जाव ता मे अस्थि उठाणे सद्धाधिइसंवेगे, जाव य मे धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे जिणे सुहत्थी विहरइ, ताव ता मे सेयं कलं जाव जलन्ते अपच्छिममारणन्तियसलेहणाझसणाझसियस्स, भत्तपाणपडियाइक्खियस्त, कालं अणवकङमाणस्स, विह १८॥

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