Book Title: Upasakdasha Shrutam
Author(s): Abhaydevsuri
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 81
________________ नीणेत्ता, पाए नयरीए सिडाडग जाव विप्पइरित्तए, तं सेयं खलु ममं एयं पुरिस गिणिहत्तए त्ति कटु उट्ठाइए जहा सुरादेवो । तहेब भारिया पुच्छइ, तहेव कहेइ ।।१६४ ।। सेसं जहा चुलणीपियस्स जाव सोहम्मे कप्पं अरुणसिद्धे विमाणे उववन्ने । चत्तारि पलिओवमाइं ठिई। सेसं तहेव जाव महाविदेहे वासे है। सिज्झिहिइ ॥१६५|| निवखेवो । सत्तमस्स अङ्गस्स उवासगदसाणं पञ्चमं अज्झयणं समत्तं ॥ छट्ठस्स उक्खेवओ ॥ एवं खलु जम्बू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं कम्पिल्लपुरे नयरे, सहस्सम्बवणे । उजाणे, जियसत्तु राया, कुण्डकोलिए गाहावई, पूसा भारिया, छ हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ छवया दसगोसाहस्सिएणं वएणं । सामी समोसढे, जहा कामदेवो तहा सावयधम्म पडिवज्जइ । सव्वेव वत्तदया जाव पडिलाभेमाणे विहरइ ।। १६६ ॥ तए णं से कुण्डकोलिए समणोवासए अन्नया कयाइ पुद्यावाहक समयंसि जेणेव असोगवणिया जेणेवपुढविसिलाप ए तेणेा उत्रागच्छः २वा नाममुद्दगं च उ... जगं च पुढविसिलापट्टए ठवेइ, रत्ता समणस्स भगवओ महावीरस्त अन्तिय धम्मपण्णत्तिं उदसम्पज्जित्ताणं विहरइ ॥ १६७ ।। तए णं तस्स कुण्डकोलियस्स समणोवासयस्स एगे देवे

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