Book Title: Upasakdasha Shrutam
Author(s): Abhaydevsuri
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 106
________________ सक. कन्ता। पणरसमस संवच्छरस्स अन्तरा वट्टमाणस्स पुवरत्तावरत्तकाले जाव पोसहसालाए समणस्स भग॥५२॥ वओ महावीरस्स अन्तियं धम्मपण्णत्तिं उवसम्पजित्ताणं विहरइ ॥ २२३ ॥ तए णं तस्स सद्दालपुत्तस्स समणोवासयस्स पुत्वरत्तावरत्तकाले एगे देवे अन्तियं पाउब्भविथा ॥ २२४ ॥ तए णं से देवे एगं महं है नीलुप्पल जाव असिं गहाय सदालपुत्तं समणोवासयं एवं वयासी । जहा चुलणीपियस्स तहेव देवो उव सग्गं करेइ। नवरं एकेके पुत्ते नव मंससोल्लए करेइ। जाव कणीयसं घाएइ, रत्ता जाव आयञ्चइ ॥२२५॥ तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए अभीए जाव विहरइ ॥२२६।। तए गं से देवे सदालपुत्तं समणोवासयं है अभीयं जाव पासित्ता चउत्थं पि सद्दालपुत्तं समणोवासयं एवं वयासी, है भो सद्दालपुत्ता! समणोवासया ! अपत्थियपत्थिया ! जाव न भञ्जसि तओ ते जा इमा अग्गिमित्ता भारिया धम्मसहाइया धम्मविइजिया | धम्मणुरागरता समसुहदुक्खसहाइया तं ते साओ गिदाओ नोणेमि, २त्ता तव अग्गओ धाएमि, २त्ता नव | 4 मंससोल्लए करेमि, रना आदाणभरियसि कडाहयंसि अहहेमि, रत्ता तब गाय मंसेण य सोणिएण य आगचामि, जा तु अदृदृहट्ट जान ववशेषिजसि !! २२७ : एणं से सदालपुत्ते सगणोवासए लेणं ,,

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