Book Title: Upasakdasha Shrutam
Author(s): Abhaydevsuri
Publisher: Atmanand Jain Sabha
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दशाकम,
*२-४-
सपासका बइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवजाहि ॥ २०४ ॥ तए णं सा अग्गिमित्ता भारिया |
सदालपुत्तस्स समणोवासगस्स तह ति एयमट्ठ विणएण पडिसुणेइ ॥२०५!! तए णं से सदालपुत्ते सनणोबासए के दुम्बिारिसे स विइ, २त्ता एवं वयासी खिप्पामेव भो देवाणुपिया, लहुकरणजुत्तजोइयं समवुसालिहर माल हियशि जम्णयामयकल वजोत्तपइविसिट्टी रययामयघण्टसुत्त जगवरकवणव
कि एलिनीपलकयाभेला गरगोणजागएहि नाणमणिकणगण्टियाजालपगियं . .. परसा विइनिस्मि पपरलक्वणायवेयं जुत्तामेव धस्सियं जाणावर उबहवे. सत्ता ममयमाणत्तियं पञ्चप्पिणह ॥२०६॥ तए ण ते कोडुम्बियपुरिसा जाव पञ्चपिणन्ति ॥ नए णं सा अग्गिमिना भाग्यिाराहाया जाव गावनिकत्ता सुद्धप्पावनाई जाब अपमहग्याभरणालङ्गियसरीग चेडियाचकवाल. परिकिपणा मयं जागर महइ. रत्ना पालासपुर नगर मय मञ्ण निगडद. ताजेणेव महरम नवणे उजाण नणेव उवासरह ता डियाजालपरिजटा जेणव ममणे भगवं महावीर तत्र उवागन्छाइ, बना लिवियतो नाव कन्दर, ला नचासन्न नाइहरे नाव पश्चलिउटा ठिडश नव जगसइ ।। २०४॥
GARIE
४७॥

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