Book Title: Upasakdasha Shrutam
Author(s): Abhaydevsuri
Publisher: Atmanand Jain Sabha
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६ अदरसामन्तणं वीईवयमाण, बहुजणसद निसामह । बहुजणा अन्नमन्नस्स एवमाइक्वइ १। "एवं खलु, दे.
वाणुप्पिया! समणम्स भगवओ महावीरस्स अन्तवासी. आणन्द नाम समणाबासए पांसहसालाए अपच्छि, म जाव अणवकङमाण विहरइ ॥७९॥ तए ण तस्स गोयमम्म बहुजणम्स अन्तिए एयं सोचा निसम्म अयमेयारूवे अज्झथिए । " नं गच्छामि गं, आणन्दं समणोवासयं पासामि "। एवं सम्पेहेइ. रत्ता जेणव कोल्लाए सन्निवेसे, जेणव आणन्द समणावासए. जेणव पोसहसाला, तणेव उवागच्छइ ८० ॥ तए णं से आणन्दे समणांवासए भगवं गोयमं एजमाणं पासइ, २त्ता हट्ठ जाव हियए भगवं गोयमं व.
दइ नमसइ, रत्ता एवं वयासी । " एवं खलु, भन्ते, अहं इमेणं उरालेणं जाव धमणिसन्तए जाए, नो - संचाएमि देवाणुप्पियस्स अन्तियं पाउब्भवित्ता णं तिक्खुत्तो मुद्धाणेणं पाए अभिवन्दित्तए। तुब्भेणं, भ.
ते! इच्छाकारेणं अणभिओगेणं इओ चेव एह, जा णं देवाणुप्पियाणं तिक्खुत्तो मुद्धाणेणं पाएसु वन्दामि नमसामि" ॥ ८१ ॥ तए णं से भगवं गोयमे, जेणेव आणन्दे समणोवासए तेणेव उवागच्छइ ॥ ८२ ॥ तपणं से आणंदे भगवओ गोयमस्स तिक्खुत्तो मुद्धाणेण पाएसु वन्दइ नमसइ, २त्ता एवं वयासी । “अ

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