Book Title: Upasakdasha Shrutam
Author(s): Abhaydevsuri
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 76
________________ दवाइन, शासक-वित्रोटय तद्भावानुबन्धन विधेहि. विसोहेहि-अतिचारमलक्षालनेन, अकरणयाए अन्भुटेहि-वदकरणाभ्युपगर्म कुरु, अहारिह तवोकम पायच्छित पडिक जादि न पती । एतेन च निशीथादिषु गृहिणः प्रति प्रायश्चित्तस्याप्रतिपादनान्न तेषां प्रायश्चित्तमस्तीति ये प्रतिॐ पद्य ते, सन्मापास्त ६ देशेन वायश्चित्तस्य जीतव्यवहारानुपातित्वात् ॥ १४७ ॥ । तए णं से चुलणीपिया समणोवासए अम्मगाए तह ति एयमटुं विणएणं पडिसुणेइ, रत्ता तस्स | ठाणस्स आलोएइ जाव पडिवजइ ॥ १४८ ॥ तए णं से चुलणीपिया समणोवासए पढम उवासगपडिम उवसम्पजित्ताणं विहरइ । पढम उवासगपडिमं अहासुत्तं जहा आणन्दो जाव एकारसमं वि ॥ १४९ ॥ तए णं से चुलगीपिया समणोवासए तेणं उरालेणं जहा कामदेवो जाव सोहम्मे कप्पे मोहम्मवडिंसगस्स उत्तरपुरस्थिमेणं अरुणप्पभे विमाणे देवत्ताए उववन्ने । चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पणत्ता। महाविदेहे वासे सिज्झिहिद ॥ १५० ॥ निक्वेवो ॥ सत्तमस्स अस्स उवासगदसाणं तइयं अज्झयाणं समत्तं ॥ उक्खेवओ चउत्थस्स अज्झयणस्स ॥ एवं खलु जम्बु ! तेणं कालेणं तेणं समएणं बाणारसी नामं नयरी, कोटुए वेइए, जियसत्तू राया, सुरादेवे गाहावई, अड्डे, छ हिरण्णकोडीओ, जाव छ वया दसगो ॐॐॐॐॐ ॐॐॐ

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