Book Title: Upasakdasha Shrutam
Author(s): Abhaydevsuri
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 60
________________ उपासक दशाम. णियसाहस्सीणं नाव अन्नसिं च बहूर्ण देवाण य देवीण य मज्झगए एवमाइक्खइ ४ । एवं खलु देवाणु-४ ॥२९॥ प्पिया, जम्बुद्दीवे दीवे भार वासे चम्पाए नयरीप कामदेवे समणोवासए पोसहसालाए पोसहिए दम्भ संथारोवगए समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तियं धम्मपणत्तिं उवसम्पजित्ताणं विहरइ । नो खलु से सका केणइ देवेश वा जाव गन्धव्वेण वा निग्गन्थाओ पावयणाओ चालित्तप या खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा । तयण अहं सक्कस्स देविन्दस्स देवरपणो एयभटुं असद्दहमाणे ३ इहं हहमागए । तंअहो । ण देवाणुप्पिया, इड्डी ६ लद्धा ३, तं दिट्ठा णं देवाणुप्पिया इडी जाव अभिसमन्नागया । तं खामेमि णं देवाणुप्पिया खमं तुम रुहन्ति णं देवाणुपिया नाइं भुजो करणयाए नि कह पायवडिए पञ्जलिउडे । एयमट्ठे भुजो मुजो खामेइ, २ ता जामेव दिसं पाउठभए. तामेव दिस पडिगए ॥ ११२ ॥ विकुळ-वैक्रिय कसा। अनरिक्षपतिपन्न - आकाशस्थितः । समितिणीकानि-पद्रष्टिकोपेतानि । सके देविन्दे ' इत्यादी यावत्करणादिद दृश्यम । वजपाणी पदारे सयाऊ सहरणकावे मयां पागतामणे वारिणद लोगाहिबई बत्तीस विमाणसयसहस्साहिबई एरावणवाहणे मुरिन्दे भग्यम्बरवत्यधर मान्ददगमालमउडे नवहमचारूचित्तचचालकुट विलिहिलमाणगण्डे भासुरवीन्दीपलम्बवणमाले सोहम्मे ४ कप सोहम्मघर्टिसए विमाणे सभाए सोहमार त्ति का दिशब्दानां च व्युत्पत्ययभेदेन मित्रार्थना द्रष्टव्या। तथाहि-यक्तियोगारछक्र:, 5२९॥ 4%964544 क-ॐॐ

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