Book Title: Upasakdasha Shrutam
Author(s): Abhaydevsuri
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 69
________________ जामेव दिसं पाउभूर, तामेव दिसं पडिगए ॥ १२० ॥ ना समण भगवं महावीरे अन्नया कयाइ चम्पाओ परिणिक्वमइ, २ ना बहिया जणवयविहारं विदग्द ॥ १२ ॥ ना णं से कामदेवे समणावासए पढम उवासगपडिमं उवसम्पजित्ताणं विहरइ ।। १२२ ॥ ताणं से कामदव समणांवासए बहुहिं जाव भावेत्ता वीसं साइं समणावासगपरियागं पाउणित्ता, एकारस उवासगपडिमाओ सम्म काएणं फासत्ता, मासियाए सलहणाए अप्पाणं झसिना, सट्ठि भत्ताई अणसणाए छदेत्ता, आलोइयपडिकन्ते, समाहिपत्ते, कालमासे कालं किच्चा, सोहम्मे कप्पे सोहम्मयडिंसयस्स महाविमाणस्म उत्तरपुरस्थिमेणं अरुणाभ विमाणे देवत्ताए उववन्ने । तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाण चत्तारि पलिओवमाई ठिई पणत्ता ।। १२३॥ “से णं भन्ते!। कामदेवे ताओ देवलोगाओ आउक्खपण टिइक्खएणं अणन्तरं चयं चइत्ता, कहिं गमिहिइ, कहिं उववजिहिइ" ? । “गोयमा ! महाविदेहे वासे सिञ्झिहिइ” निक्वेवो ॥ १२४ ॥ ॥ सत्तमस्स अङ्गस्स उवासगदसाणं वीयं अञ्झयणं समत्तं ॥ 'निक्खेवओ त्ति' निगमनवाक्यं वाच्यम । तच्चेदं "एवं खलु जम्बू! समणेणं जाव सम्पत्तेण दोच्चस्स अयमटेपणने ति बेमि ॥१२४॥ See SAROKAR -SIC

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