Book Title: Upasakdasha Shrutam
Author(s): Abhaydevsuri
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 72
________________ उपासक ॥३५॥ कडाहयंसि अदहेइ, रत्ता चुलणीपियस्स समणोवासयस्स गायं मंसेण य सोणिएण य आइञ्चइ ॥१३१॥ द.." तण णं से चुलणीपिया समणोवासए तं उज्जलं जाव अहियासेइ ॥ १३२ ॥ तए णं से देवे चुलणीपियं समणोवासयं अभीयं जाव पासइ. रत्ता दोश्च पि तच्चं पि। चुलणीपियं समणोवासयं एवं वयासी "हं भो चुलणीपिया ! समणोवासया ! अपत्थियपत्थिया! जाव न भजेसि, तो ते अहं अज मज्झिमं पुत्तं साओ गिहाओ नीणेमि, रत्ता तव अग्गओ घाएमि" जहा जेटुं पुत्तं तहेव भणइ, तहेव करेइ । एवं तचं पि कणीयसं जाव अहियासेइ ॥ १३३ ॥ सए णं से देवे चुलणीपियं समणोवासयं अभीयं जाव पासइ, रत्ता चउत्थं पि चुलणीपियं समणोवासयं एवं वयासी “ हं भो चुलणीपिया समणोवासया अपत्थियपत्थिया जइ णं तुमं जाव न भञ्जसि, तओ अहं अज जा इमा तव माया भदा सत्थवाही देवयगुरुजणणी दुकरदुक्करकारिया, तं ते साओ गिहाओ नीणेमि, २त्ता तव अग्गओ घाएमि, २ना तओ मंसमोल्लए करेमि. रत्ना | आदाणभरियसि कडाहयंसि. अइहेमि, २त्ता तव गायं मंसेण य सोणिएण य आइञ्चामि, जहा णं तुम । अदुहवसते अकाले चेव जीवियाओं ववपिजसि ।।३४ ॥ तए णं से चुलगीपिपा सत्रण वाम र ले गं

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