Book Title: Upasakdasha Shrutam
Author(s): Abhaydevsuri
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 70
________________ उपासक ॥ ३४ ॥ वो इस अञ्झणस्स । एवं खलु जम्बू ! तेणं कालेणं तेणं समरणं वाणारसी नाम नयरी । कोge चेइए । जियसत्तू राया ॥ १२५ ॥ अय तृतीयं व्याख्यायते तत्सुगममेव || नवरं 'उक्खेवो त्ति' उपक्षेप उपोद्घातः तृतीयाध्ययनस्य वाच्यः । स चायम् - "जइ णं, भन्ते ! समणेण भगवया जाव सम्पत्तेर्ण उवासगदसाणं दोच्चस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पणत्ते, तच्चस्स णं भन्ते के अद्वे पणते" इति कण्ठ्यArea | तथा कचिकोष्टकं चैत्यमधीतं, कचिन्महाकामवनमिति ॥ १२५ ॥ श्यामा नाम भार्या ॥ १२६ ॥ तत्थ णं वाणारसीए नयरीए चुलणीपिया नामं गाहावई परिवसइ अड्ढे जाव अपरिभूए । सामा भारिया । अट्ठ हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ, अट्ठ बुढिपत्ताओ, अट्ठ पवित्थरपउत्ताओ, अट्ठ वया दसगोसास्सिएण वर्ण । जहा अणन्दा राईसर जाव सवकज्जबडावए यात्रि होत्था । सामी समोसढे, परिसा निग्गया, चुलीपिया वि जहा आणन्दो तहा निग्गओ । तत्र गिहिधम्मं पडिवज्जइ । गोयमपुच्छा तहे सेसे जहा कामदेवस जाव पोसहसालाए पोसहिए बम्भचारी समणस्स भगवओ महावीरस्स अनियं धम्मपत्ति उवसम्पजित्ताणं विहरइ ॥ १२६ ॥ तए णं तस्स चुलणीपियस्स समणोवासयस्स पुत्ररत्तावरतकालसमयंसि एगे देवे अन्तियं पाउ भूए ॥ १२७ ॥ ३४ ॥

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