Book Title: Upasakdasha Shrutam
Author(s): Abhaydevsuri
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 42
________________ ASHA उपासक, त्थि णं, भन्ते, गिहिणो गिहिमज्झावसन्तस्स ओहिनाणं समुप्पजइ ?”। “हन्ता, अस्थि"। "जइ णं, भन्ते! दशम. ॥१९॥ गिहिणो जाव समुप्पजइ, एवं खलु, भन्ते! मम वि गिहिणो गिहिमज्झावसन्तस्स ओहिनाणे समुप्पन्ने । । & पुरत्थिमेणं लवणसमुद्दे पञ्चजोयणसयाइं जाव लोलुयच्चुयं नरयं जाणामि पासामि" ॥ ८३ ॥ 'गिहमज्झावसन्तस्स त्ति' गृहमध्यावसतः, गेहे वर्तमानस्येत्यर्थः ॥ ८३ ॥ तए णं से भगवं गोयमे आणन्दं समणोवासयं एवं वयासी । “ अस्थि ण, आणन्दा, गिहिणो जाव समुप्पजइ । नो चेव णं एअमहालए । तं गं तुमं, आणन्दा, एयस्स ठाणस्स आलोएहि जाव तवोकम्म पडिवजाहि" ॥ ८४ ॥ तए णं से आणन्दे भगवं गोयमं एवं वयासो। “ अस्थि णं, भन्ते! जिणवयणे सन्ताणं तच्चाणं तहियाणं सब्भूयाणं भावाणं आलोइजइ जाव पडिवजिज्जइ ? ” । “नो तिणढे समढे"। " जइ णं, भन्ते, जिणवयणे सन्ताणं जाव भावाणं नो आलोइजइ जाव तवोकम्मं नो पडिवजिजइ । तं ण, भन्ते, तुब्भे चेव एयस्त ठाणस्स आलोएह जाव पडिवजह " ॥ ८५ ॥ 'सन्ताणमित्यादय एकार्थाः भन्दाः ॥ ८५ ॥ P॥१९॥ R E

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