Book Title: Upasakdasha Shrutam
Author(s): Abhaydevsuri
Publisher: Atmanand Jain Sabha
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___ मतं मेहनिद गुलगुलेन्तं मणपवणजाणवेगं दिव्वं हथिरूवं विउव्वइ, २त्ता जेणेव पोसहसाला जे
णेष : मदेवे समणांवासए तेणेव उवागच्छद, रत्ता कामदेवं समणीवासयं एवं क्यासी । " हं भो काम1. दा समणोवासया. तहेव भणइ जाव न भजेसि. तो ते अज अहं सोण्डाए गिण्हामि, २ त्ता पोसहसा
लाओ नीणेमि, २ता उड्डं वहासं उबिहानि, २त्ता तिक्वेहि दन्तमुसलेहि पडिच्छामि, २त्ता से - अहे धरणितलंसि तिक्खुत्तो पाएमु लोलेमि, जहा णं तुमं अहट्टवसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविजसि ॥ १०२ ।। ताए से कामदेवे समणोवासए तेणं देवेणं हत्थिरूवेग एवं वत्ते सा
वग एवं वुत्ते समाणे, अनीएन जाव विहरइ ॥ १०३ ॥ तए णं से देवे हत्थिरूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं जाव विहरमागं पासइ, २ तामांचं पि तच्च पि कामदेवं समणोवासयं एवं क्यासी । “हं भो कामदेवा" तहेव जाव सो वि विहरहा ॥ १०४ ॥ तए णं से देवे हत्थिरूवे कामदेव लमणोवासयं अभीयं जाव विहरमाणं पासइ, २ त्ता
आसुरते ४, कामदेवं समणोवासयं सोण्डाए गिण्हेइ. २ त्ता उद्रं वेहासं उबिहइ. ५ त्ता तिक्खेहिं दन्तमु४ सलेहिं पडिच्छइ, २ त्ता अहे धरणितलंसि तिक्खुत्तो पाएसु लोलेड ॥ १०५॥ तए जसे कामदेवे समणो
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