Book Title: Upasakdasha Shrutam
Author(s): Abhaydevsuri
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 53
________________ ARRIER 5 २त्ता दोच्चं पि तचं पि कायदे एवं वयामी । “ह भो कामदेवा समणावासया अप्पत्थियपत्थिया, जइ णं तुम अज जाव यवरोविजसि ॥२७॥ नए ले कामदे समणावासए नेणं देवणं दोच्च पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे, अभीप जाव धाम झाणावगए विहाई ॥ २८ ॥ तए णं से देवे पिसायरूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं जाव विहरमाणं पासइ, त्ता आसुरते ४ निवलिय भिउडि निडाले साहटु, कामदेवं समणोवासयं नीलुप्पल जाव असिणा खण्डाखण्डि करेइ ॥ ९९ ॥ 'तिवलियं ति ' त्रिवलीको भृकुटिं-दृष्टिरचनाविशेषम । ललाटे संहृत्य-विधायेति ॥ ९९ ॥ तए णं से कामदेवे समणोवासए तं उज्जलं जाव दुरहियासं वेयणं सम्म सहइ जाव अहियासेइ ॥ १०० ॥ तए णं से देवे पिसायरू ये कामदेवं समणोवासयं अभीयं जाव विहरमाणं पासइ, २त्ता जाहे नो संचाएइ कामदेवं समणोवासयं निग्गन्याओ पाक्यणाओ बालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा, ताहे सन्ते तन्ते परितन्ते सणियं सणियं पच्चोसकर, २ ता पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ, २ ता दिव्वं पिसायरूवं विप्पजहइ, २ ता एगं महं दिव्यं हथिरूवं विउब्बइ, सत्तङ्गपइट्ठियं सम्मं संठियं सुजाय, पुरओ राम-लकर

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