Book Title: Upasakdasha Shrutam
Author(s): Abhaydevsuri
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 45
________________ जइ णं भन्ते ! समणणं भगवया महावीरणं जात्र सम्पत्तणं सत्तमस्म अङ्गस्स उवासगदसाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयम पणत्ते, दोच्चस्स णं भन्ते ! अज्झयणस्स के अड्डे पणते ? ॥१.१॥ एवं खलु जम्बू ! तेणं काले ते समचम्पा नाम नयरी होत्या । पुणभद्दे चेइए। जियसत गया। कामदेवे गाहावई । भद्दा भारिआ । हिरणकiडीओ निहाणपउत्ताआ, छ वुढिपत्ताओं, छ पवित्थरपउत्ताओ. छवया दसगोसाहस्सिए | समोसरणं । जहा आणन्दे तहा निग्गए। तहेव सावयधम्मं पडिवज्जइ । सा चैव वतव्त्रया जाव। जेट्ठपुत्तं नित्तनाई आपुच्छिता, जेणेव पोसहसाला, तेणेव उवाच्छइ, रत्ता जहा आणन्दे जाव समree भगवओ महावीरस्स अन्तियं धम्मपणत्तिं उवसम्पजित्ताणं विहरइ ॥ ९२ ॥ तए णं तस्स कामदेवस् समणोवासगस्स पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि एगे देवे मायी मिच्छदिट्ठी अन्तियं पाउ भूए ॥ ९३ ॥ अथ द्वितीये किमपि लिख्यते ' पुवरतावरत्तकालसमर्थसित्ति पूर्वरात्रवासावपररात्रश्चेति पूर्वरात्रापररात्रः स एव कालसमयः कालविशेषः ॥ ९३ ॥ तणं से देवे एवं महं पिसायरूवं विउव्वइ । तस्स णं देवस्स पिसायख्वस्स इमे एयारूवे वण्णावासे पणते । सीस से गोकिलज्जसंठाणसंठियं, सालिभसेल्लसरिसा से केसा कविलतेएणं दिव्यमाणा, मह

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