Book Title: Upasakdasha Shrutam
Author(s): Abhaydevsuri
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 43
________________ ___ तए णं से भगवं गोयमे आणन्देणं समणोवासएणं एवं वुत्ते समाणे, सङ्किए कटिए विइगिच्छास* मावन्ने, आणन्दस्स अन्तियाओ पडिणिक्खमइ, २त्ता जेगेर दुइपलासे चेइए, जेणेव समणे भगवं महा वीरे, तेणेव उवागच्छइ, रत्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदरसामन्ते गमणागमणाए पडिक्कमइ, २त्तार | एसणमणेसणे आलोएड. २त्ता भत्तपाणं पडिदंसेइ, २त्ता समणं भगवं महावीरं वन्दइ नमसइ. २त्ता एवं 18 वयासी । “एवं खल भन्ते! अहं तुभेहिं अब्भणुण्णाए। तं चेव सव्वं कहेइ जाव । तए णं अहं सङ्किए । ३ आणन्दम्स समणोवासगस्स अन्तियाओ पडिणिक्खमामि, २त्ता जेणेव इहं तेणेव हवमागए। तं गं | भन्ते! किं आणन्देणं समणोवासपणं तस्म ठाणस्स आलोएयव्वं जाव पडिवज्जेयव्वं. उदाहु मए ?" ॥ गोयमाइ समणे भगवं महावीरे भगवं गायमं एवं क्यासी। " गायमा. तुमं चेव णं तस्स ठाणम्स आलोएहि जाव पडिवजाहि, आणन्दं च समणोवासयं यम, खामहि ॥८६॥ * गागमाइ ति' हे गीतम नवमामव्येनि ॥ ६॥ ताण से भगवं गायम समणस्स भगवआ महावीरस्स " तह ति" एयमद्र विणएणं पडिसुणेइ, २त्ता तस्स ठाणस्स आलोएड जाव पडिवजइ. आणन्दं चमवासयं एयमद्रं स्वामेइ ॥ ८७ ॥ तए ण STOMEREKKINNER

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