Book Title: Upasakdasha Shrutam
Author(s): Abhaydevsuri
Publisher: Atmanand Jain Sabha
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उपासक समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाइ बहिया जणवयविहारं विहरइ ॥ ८८ ॥ तए णं से आणन्दे समणो-दशा ॥२१॥ वासए बहहिं सीलवएहिं जाव अप्पाणं भावेत्ता, वीसं वासाइं समणोवासगपरियागं पाउणित्ता, एकारस
है य उवासगपडिमाओ सम्मं कारणं फासित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झुसित्ता, सर्द्धि भत्ताइं अणसणाए
छदेत्ता, आलोइयपडिकन्ते, समाहिपत्ते, कालमासे कालं किच्चा, सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडिंसगस्स महाविमाणस्स उत्तरपुरस्थिमे णं अरुणे विमाणे देवत्ताए उववन्ने । तत्थ णं अत्थेगइयाणे देवाणं चत्तारि पलिआवमाइं ठिई पणत्ता । तत्थ णं आणन्दस्स वि देवस्स चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पणत्ता ॥ ८९ ।। "आणन्दे णं भन्ते ! देवे ताओ देवलोगाओ आउखएणं ३ अणन्तरं चयं चइत्ता, कहिं गच्छिहिइ ? कहिं । उवजिहिइ ? " । “गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ" ॥ निक्खेवो ॥ ९० ॥
सत्तमस्स अङ्गस्स उवासगदसाणं पढम अज्झयणं समत्तं ।। 'निक्वेव ओ नि' निगमनं. यथा " एवं खलु जम्बु समणेणं जाव उवासगढमाणं पढमस्स अझयणम्म अयमढे पणने ति बेमि" ॥१०।। उपाशकदशानां प्रथमाध्ययनविवरणं ममातम ||
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