Book Title: Upang Prakirnak Sutra Vishaykram
Author(s): Jain Pustak Pracharak Samstha
Publisher: Jain Pustak Pracharak Samstha
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०१९ रा० २०
जी० २१ प्रज्ञा०२२
॥ १५ ॥
एयं पश्चक्खाणं
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पंडियमरणं
पावगमं
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पुणव्वसुस्स य मरणविभति
सगड सरीरं
सयं कयं मे सरागसंलेहण० सबुवएसं
सोउं सरीरस्स
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एयंसि निमित्तंसी
एयाइ विमाणाइं
एयाउ पंच वज्जिय
एयाए भावणाए एयाणि य अण्णाणि य
२७-१५३५ २७- १५५७ २७-१२५९
२७ १७७२ २७-१७८०
२५ (५०८टी०)
२७-१८९६
२७-५८६
२७-१५४०
२७-१४२२
एरंडे कुरुर्विदे परिसगुणजुत्ताणं परिसयदोस पुण्णे
एरियाण सगासे एलतयनागकेसर एवइयं तारगं
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एवतियं एव परशा असई एवमणुचिंतयंता चिंतयतो
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२७-१२०
२७-५८५ एवमणुद्धियदोसो
२७-१२८५
२७-२४६ एवं अप्पा बहुगं, सव्वत्थोवा २१-२३४सू०
२७--११०२
२७-१३५६
उडियस्तवि कयसंलेहं
२७-१४४२
२७-१३०१ २७-१३०२
करंतु सोहिं
२७-१३९७ २७-१४४३
२७-१८८४
कहिय समाही
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२२-३८
२७-५७४
२७-१८४६
२७-१५६९
२७-३१६
२१-५३
२७-१०५६
२४-५७ २७-१५८० २७-१८०३
२७- १६१४
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एवं च गओ पक्खो
अंबुद्धीचे तिदंडविरओ
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" पवयणसुयसार० पंचासीई नट्ठा
बहुप्पयारं
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"
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तु कसायग्गिं निस्सारे माणुसत्त पन्हे विजय अस्स० परिहायमाणे
"
रिमाणभ
भावियचित्तो
म अभिथुआ मसावि
मरिऊण धीरा
वडर चंदो
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२७- १६५६ २४ -७८
२७-२०९
२७-१५००
२७-१४२६
२७-५२६ २५-१०३०
२७-५०१
२७-१२४९
२७-५२५
२७-१५९८
२७-४६८
२७-१८०४
२७-७०९
२२- २१९०
२७-७०३
२१-७१
सूर्य० | २३ चं० २४ जं० २५ नि० २६ प्रकी०२७
।। १५ ।।

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