Book Title: Upang Prakirnak Sutra Vishaykram
Author(s): Jain Pustak Pracharak Samstha
Publisher: Jain Pustak Pracharak Samstha

View full book text
Previous | Next

Page 71
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूर्य०२३ औ०१९ रा० २० जी०२१ प्रज्ञा०२२ ॥६८॥ CENA: सीवणं तुन्नणं भरणं सीसघडीनिग्गालं सीसोऽधि वेरिओ सीहे कुटुंबयारस्स सुअधम्मसंघसाहु सुअणाणसागराओ सुकम्मि सोणियम्मि य जं० २० नि० २६ प्रकी०२७ सुदिगुण निमित्तणं” UNIAN सुगहियसावगधम्मा सुगिहियजिणवयणामय० सुचिरमवि संकिलि? सुज्नइ दुक्करकारी २७-८२२ | सुणह गणिए दस दस २७-४४९ | सुयसागरा विणेऊण २२-४प्र० २७-५४५ सुणह जह जिणवयणा० २७-१८९५ सुरगणइड्डिसमग्गा २७-१२३० २७-७२७ | , सुयसारनिहसं २७-१२३७ | सुरगणसुहं समतं २२-१७२ २७-५७३ | सुदंसणा अमोहा य २२-५२ २७-१२२१ २१-२७ सुविहिअगुणवित्थारं २७-६०७ २७-९४० २७-११०९ सुविहिअनिझाए २७-३३० २७-१९सू० सुदि?ण निमित्तर्ण । सुविहिय ! अईयकाले २७-१६१९ २७-५३२ सुद्धमि अ सोहणगे २५-(५०९टी०) | सुद्ध सुसाहुमग्गं २७-७४१ सुविहिय! इमं परणं २७-१२५६ २७-१९८७ |सुद्धे सम्मत्ते अविरओऽवि २७-३४२ सुब्वति य अणगारा २७-१७८२ २७-१२८८ | सुबहुस्सुयावि संता सुसीमा कुंडला चेव २७-२२८ सुबहुंपि भावसलं २७-२४६० सुहपरिणामो निच्चं २७-५९ सुहुमस्स णं भंते ! अंतरं २१-२३३सू० | सुभद्दा य विसाला य . . .. ठिती० २१-२३१सू० २७-४१२ सुहुमंपि भावसलं २७-३३३ २७-१२४६ सुयदिट्टिवायकहियं २७-१७५५ | सुहुमे णं भंते ! सुहुमेत्ति २१-२३२सू० २७-९४१ / सुयरयणनिहाणं २२-२ | मुहुमित्ति० पुढविकालो२२-२५०सू० सुट्टवि जिआसु सुट्टवि , मग्गिजंतो सुण जह पच्छिमकाले सुण वागरणावलियं ॥१८॥ For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183