Book Title: Upang Prakirnak Sutra Vishaykram
Author(s): Jain Pustak Pracharak Samstha
Publisher: Jain Pustak Pracharak Samstha
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ऑ०१९भित्तपरिनामरणं दुविहं २७-२८५ | भवसिद्धिए ण पुच्छा २२-२५२सू० |मिनमुत्तो नरपसु रा० २० भत्तिं च कुणसु तिब्वं
| भंजिय परीसहचमू . २७-६१० | मिनिंदियपंचिंदिय: जी० २१ भई सुबहुसुयाणं
२७-१३७८ | भंतेत्ति कालेणं भंते कुमारे २६-८सू० |भिंगा भिंग्गप्पभा चेव मज्ञा०२२ भयब केहिं लिंगेहिं
,, दिव्या देविड्डी० कहिं० २०-२६सू० भुत्तूणवि भोगसुहं ॥५ ॥ भरहस्स चत्तारि एगिंदि० २५-६९सू० भालुकीए करणं
२७-४३५
भुयगपुरोहियडको भरहे अ इत्थ देवे महिड्डीए २५-७२सू० भावनमुक्कारविवज्जिआई. २७-३५४ | भूईगहणं जह नकयाण भवगहणभमणरीणा. २७-२७७ भावाणुरायवेमाणुराय० २७-३३९ | भूए अस्थि भविस्संति भवण. इसिवालिय० २७-२२३२ भाविज भावणाओ . २७-१८७४ भूयत्येणाहिगया. भवण कप्पवईणवि २७-११२७ | भासएणं पुच्छा २२-२४७सू० | मेदबिसय संठाणे भवणवई दो इंदा , | भासगपरित्तपजत्त
'भोगंकरा भोगवई भवणवइविमाणवईणं
भोगाणं परिसंखा भवणवइवाणमंतर २७-२०९० भासाको य पभवति २२-१९२ | भोमेजवणयराणं २७-११२२ भासा णं भंते किमादीमा ४२२-१६५सू०
मउए निहुअसहावे भवण० सब्बिड्डी परिय० २७-१२३१ भासासरीरपरिणाम
मए कयं इमं कर्म भवणेहिं व वणेहि य २७-१८११. भासुरसुवनसुंदर
मगतिहिहि तो भयसयसहस्सदुलहे २७-१४४० भिक्खाचरणत्ताणं २७-८७७ ममि बंधवार्ण भवसंसारे सवे २७-१८४ | भणिमणिभणंतसई -२७-५६१ | मझे वेअहस्स उ
RSEX REPRERNEAREERXXX
२१-१५il २७-१६१८
चं०/२४ २५-५०
जं० २५ २७-१६२७
नि. २६ २७-१७४७
प्रकी०२७ २७-५८९ २७-७४५ २२-१२१ २२-२२३
२७-६८ २७-२२३५ २७-७८२ २७-२५७ २७-३३५ २७-१८१९ - २५-२
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